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सत्कर्म से आत्म निर्भरता, स्वदेशी भाव

सार

स्वदेशी मूवमेंट स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र था. अंग्रेजों के खिलाफ इसने देश को जगाया. आज जिस स्वदेशी की बात हो रही है, वह देश की आत्मनिर्भरता का मंत्र है..!!

janmat

विस्तार

    स्वदेशी अपनाना इतना आसान नहीं है. विदेशी भाव शरीर के साथ ही मन पर हावी हो गया है. उसको अचानक नहीं छोड़ा जा सकता. जब स्वदेशी की अपील पीएम नरेंद्र मोदी कर रहे हैं तो फिर इसको कट्टर राष्ट्रवाद से जरूर जोड़ा जाएगा. वैसा हो भी रहा है.

    सोशल मीडिया पर उन नेताओं की वेशभूषा पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो बात तो स्वदेशी की करते हैं लेकिन धारण विदेशी कर रहे हैं.

    सबसे पहले प्रयास यह होना चाहिए कि, स्वदेशी को सियासत की नजर से नहीं देखा जाए. यह तो आजादी के पहले दिन से ही गवर्नेंस का मूल मंत्र बनना चाहिए था. अगर ऐसा हुआ होता तो आज स्वदेशी राजनीति नहीं हर नागरिक की आत्मा होती. गुलामी की मानसिकता हम छोड़ ही नहीं पाए हैं. अभी भी बहुत सारे ऐसे प्रतीक चिन्ह मौजूद हैं, जो गुलामी की याद दिलाते हैं. 

    देश ना तो अंग्रेजों के बने पूरे कानून बदल पाया है. बदलाव जरूर हुए हैं, लेकिन इसकी गति तेज होनी चाहिए. राजपथ को कर्तव्य पथ बहुत पहले बन जाना चाहिए था. स्वदेशी पार्लियामेंट के निर्माण में इतनी देरी की आवश्यकता नहीं थी.

    स्वदेशी को राष्ट्रीय परिपेक्ष में स्वीकार करना पड़ेगा. इसे भाजपा, कांग्रेस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नजरिया से देखने की कोशिश की जाएगी तो फिर दूसरे महत्वपूर्ण विषयों जैसे यह भी राजनीति ही बनकर रह जाएगी. 

   अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर टैरिफ लगाया. उनके साथ व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है लेकिन टैरिफ के कारण भारत को होने वाले नुकसान को देखते हुए एक बार फिर स्वदेशी को अभियान के रूप में शुरू किया गया है. ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार हो रहा है. देश में राजनीतिक बदलाव के बाद लोकल फार ग्लोबल और वोकल फार लोकल, मेक इन इंडिया, हथकरघा क्षेत्र को प्रोत्साहन इसी दृष्टि से दिए गए हैं कि, स्वदेशी को प्राथमिकता मिले.

    दुनिया आज एक गांव के रूप में कनेक्ट है. रीजनेबल कीमत और क्वालिटी का कोई भी प्रोडक्ट किसी न किसी रूप में दुनिया में अपना स्थान हासिल कर ही लेगा. भारत आत्म निर्भरता के लिए जो प्रयास कर रहा है उसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं. मैन्युफैक्चरिंग के फील्ड में हम काफी आगे बढ़े. डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग आत्मनिर्भरता के करीब पहुंच रही है. हमारे हथियारों ने आपरेशन सिंदूर में दुनिया को अपनी ताकत दिखाई. 

    मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं. देश में आजादी के बाद गवर्नेंस की एक सोच और दिशा चल रही थी. जब उसमें बदलाव आया, गवर्नेंस की विचारधारा बदली तब ऐसे बदलाव हुए जिनको जनादेश ने बार-बार स्वीकारा है.

    इंडियन टैलेंट पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाये हुए हैं. हमारे देश में टैलेंट की कमी नहीं है. हमारी समस्या गुड गवर्नेंस का अभाव और करप्शन का कैंसर है. हम देश को लेकर विभाजित हैं. देश की राजनीति विकास से ज्यादा विभाजनकारी नीतियों पर काम करती है. औद्योगिकरण में हम पिछड़े हुए हैं. अमेरिका द्वारा एच वन वीजा पर मोटी फीस लगाए जाने से भारत की चिंता यही दर्शाती है कि, हमारे  टैलेंट को भारत में अवसर दिखाई नहीं दे रहे हैं. 

    बीजेपी के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री बाकायदा अभियान के तहत बाजारों में जाकर स्वदेशी की अलख जगाने की कोशिश कर रहे हैं. विपक्षी राजनेताओं द्वारा इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आना यह बताता है कि, इसे भी राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है. विपक्ष शासित राज्यों में स्वदेशी पर कोई बात नहीं हो रही है. 

    हमारा स्वदेशी भाव कैसे मजबूत होगा, जब हम भाषा के नाम पर विभाजित है? क्षेत्र के नाम पर बंटे हुए हैं? राजनीति के नाम पर अलग-अलग सोचते हैं? देश हमारी प्राथमिकता नहीं है बल्कि राजनीतिक एजेंडे में हम उलझ कर रह जाते हैं.      

    आजादी के समय स्वदेशी आंदोलन के लिए रवींद्रनाथ टैगोर का लिखा वंदे मातरम गीत संजीवनी बना था. भारत आज वंदे मातरम पर ही बंटा हुआ है. स्वदेशी भाव कहां से आएगा जब राजनीति का ब्रांड वैल्यू टी-शर्ट तक सिमट जाता है. तो फिर यह साफ़ है कि स्वदेशी सोच कहां से आएगी. 

    स्वदेशी को राष्ट्रीयता से ज्यादा देश की आत्मनिर्भरता की नजर से देखना जरूरी है. हमें ऐसे उत्पादों का निर्माण करना  हैं, जो क्वालिटी और कीमत के मामले में जो दुनिया का मुकाबला कर सकें. कोई भी नागरिक बाजार में स्वदेशी सामान महंगी कीमत पर खरीदने के लिए कैसे तैयार होगा. 

    स्वदेशी महात्मा गांधी का एजेंडा रहा है. जो लोग गांधी की लेगसी का दावा करते हैं वह आज स्वदेशी से कतराते हैं. केवल नारों से स्वदेशी आंदोलन खड़ा नहीं हो सकता. इसके लिए देश के हर नागरिक को अपना योगदान देना होगा.

    स्वदेशी का भाव हर नागरिक के मन, वचन और कर्म में उतरना होगा. यह राजनीति से नहीं होगा बल्कि  इमानदारी और सेवा से होगा. जब लोग स्वयं से निराश हैं, स्वयं से जो प्रेम नहीं कर सकता, वह स्वदेश से क्या प्रेम करेगा. जो स्वयं को प्रेम नहीं करेगा, वह स्वदेशी को कहाँ अपनाएगा?

हर नागरिक को कविता के इस भाव को अपनी आत्मा बनाना पड़ेगा

जो भरा नहीं है भावों से

जिसमें बहती रसधार नहीं

वह हृदय नहीं है पत्थर है

जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं