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मोदी के फेस पर ही लड़े जा रहे हैं सभी चुनाव, मिशन 23 वाले राज्यों में मोदी ही दिलाएंगे फतह?

अतुल विनोद अतुल विनोद
Updated Thu , 27 Jul

सार

मीडिया में ऐसी सुगबुगाहट है कि भाजपा ने मिशन 23 वाले राज्यों के लिए जो रणनीति तय की है उसमें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा| मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा और सरकार बनने पर नया नेतृत्व विधायक दल तय करेगा, वैसे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी यही है| ऐसा इसलिए सोचा गया होगा क्योंकि भाजपा निरंतर नये नेतृत्व को आगे लाती रही है|

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विस्तार

हर चुनाव अलग रणनीति से लड़े जाते हैं| हाल ही में यूपी सहित चार राज्यों में मुख्यमंत्रियों का चेहरा तय कर भाजपा ने चुनाव लड़ा था| चारों राज्यों में निवर्तमान  मुख्यमंत्रियों को ही फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया| यहां तक कि उत्तराखंड में सीएम का चेहरा चुनाव हार गया था, उसके बावजूद पार्टी ने उन्हीं को मुख्यमंत्री बनाया| अब जिन राज्यों में चुनाव संभावित हैं उनमें पहले गुजरात और हिमाचल में चुनाव होना है| गुजरात में तो पार्टी मुख्यमंत्री सहित पूरा मंत्रिमंडल बदल कर नई टीम के साथ चुनाव में जा रही है| 

हिमाचल प्रदेश में सरकार के नेतृत्व में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है| जबकि वहां Anti-incumbency दिखाई पड़ रही है| उप चुनाव के समय भी पार्टी को वहां हार का मुंह देखना पड़ा था| इसके बाद मिशन-23 में राजस्थान छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं|

मीडिया में ऐसी सुगबुगाहट है कि भाजपा ने मिशन 23 वाले राज्यों के लिए जो रणनीति तय की है उसमें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा| मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा और सरकार बनने पर नया नेतृत्व विधायक दल तय करेगा, वैसे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी यही है| ऐसा इसलिए सोचा गया होगा क्योंकि भाजपा निरंतर नये नेतृत्व को आगे लाती रही है| नरेंद्र मोदी को भी प्रधानमंत्री पद के लिए तराशा गया था| मध्य प्रदेश पर हम नजर डालें तो शिवराज सिंह चौहान को 2005 में जब मुख्यमंत्री बनाया गया था तब उन्हें किसी पद पर काम करने का अनुभव नहीं था| सांसद, विधायक और पार्टी पदाधिकारी  के रुप में वह सक्रिय और प्रभावी रूप से काम कर रहे थे| आलाकमान ने उनमें छिपी संभावनाओं को देखते हुए मध्य प्रदेश का नेतृत्व उन्हें सौंपा था| पार्टी की समझ कितनी कारगर रही वह इसी बात से साबित होती है कि शिवराज सिंह चौहान ने उत्तर भारत में 17 साल मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड कायम किया है| भाजपा ने जहां-जहां नए नेतृत्व को मौका दिया उन सब ने सफलता दिलाई है|

नूतनता प्रकृति का नियम है| बसंत के बाद पतझड़ आता है| पुरानी पत्तियां झड़ जाती हैं और नई पत्तियां सुशोभित हो जाती हैं| 

नवीनता  प्रकृति का स्वभाव है| आजकल 3 घंटे की फिल्मों की बजाए आधा आधा घंटे की वेब-सीरीज ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं| ऐसा इसलिए क्योंकि दर्शक नवीनता को पसंद कर रहे हैं| चाहे प्रकृति हो, विज्ञान, प्रौद्योगिकी हो, नवीनता नहीं होगी तो उनका स्वरूप नष्ट हो जाएगा|

राजनीति में नवीनता, नयापन लाने के लिए नए नेतृत्व की जरूरत सर्वविदित है| प्रधानमंत्री ने भारत की राजनीति में परिवारवाद को देश के लिए घातक बताया है| केवल परिवारवाद ही नहीं व्यक्तिवाद भी कई बार राजनीति और पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होता है| भाजपा के पार्टी संविधान में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पार्टी अध्यक्षों के लिए एक निश्चित कार्यकाल निर्धारित किया गया है| यह शायद इसीलिए किया गया है कि नए-नए लोगों को काम करने का मौका मिले| जब पार्टी में ऐसा विचार पहले से मौजूद है तो फिर उसकी सरकारों में इस तरह के विचार क्यों नहीं लागू किए जाने चाहिए| पार्टी में जो भी नेता हैं उनके अनुभव का लाभ नए नए पदों पर लिया जा सकता है|

मध्यप्रदेश में 2005 में शिवराज सिंह मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए थे| बीच के 15 महीने कांग्रेस सरकार का कार्यकाल छोड़ दें तो वह सतत रूप से प्रदेश का नेतृत्व कर रहे हैं| मध्यप्रदेश में उन्हें राजनीति का महानायक माना जाता है| सहज, सुलभ और मेहनत की पराकाष्ठा से उन्होंने मध्यप्रदेश में पहले की सारी राजनीतिक धारणाओं को तोड़ दिया है| मध्यप्रदेश की एक पीढ़ी जन्म लेकर जवान हो गई है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान इसीलिए विराजमान हैं कि उन्होंने मध्य प्रदेश को अपना मंदिर एवं स्वयं को उसका पुजारी न केवल माना है बल्कि जिया भी है|

तमाम सारी प्रशंसा के बाद भी नयापन हमेशा हर परिस्थिति में स्वीकार्य और सर्वमान्य स्थिति होती है|

जिन राजनीतिक दलों में नयापन नहीं आया उनकी स्थिति क्या है, यह स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है| कांग्रेस परिवारवाद और व्यक्तिवादी नेतृत्व पर निर्भर रही और आज कांग्रेस किस दौर में पहुंच गई है? मध्यप्रदेश में ही देखें तो कांग्रेस के पास नेतृत्व का संकट है, 75 साल के बुजुर्ग को अगले चुनाव में फेस बनाने की बात जरूर पार्टी कर रही है, लेकिन युवाओं के दौर में पार्टी का यह अप्रोच फ्रूटफुल होगा ऐसा लगता नहीं है| 

नयापन कितना जरूरी है, यह इससे समझा जा सकता है- आदमी एक रास्ते से बोर हो जाता है, एक तरह के खाने से बोर हो जाता है, लंबे समय तक एक तरह की जड़ता से बेचैनी बढती है| सब कुछ अच्छा चल रहा है फिर भी जड़ता से मन परेशान हो जाता है| युवाओं में जॉब बदलने का ट्रेंड है वो ऐसी ही जड़ता तोड़ने का मनोविज्ञान है| 

हमें प्रकृति हर समय, हर दिन नवीनता का संदेश देती है| राजनीति में इस तरह की नवीनता तो नहीं आ सकती, लेकिन पार्टी पदों के लिए निर्धारित कार्यकाल के समान, सरकारी पदों पर कार्यकाल घोषित या अघोषित रूप से अमल में लाया जा सकता है|

मध्य प्रदेश के जो राजनीतिक हालात बने हुए हैं, उसमें तो भाजपा के लिए अनुकूल वातावरण दिखता है, जो कांग्रेस सत्ता में आने के बाद भी अपने घर में टूट-फूट के कारण सरकार से चली गई, उसमें आगे भी टूटन की संभावनाएं लगातार बनी हुई हैं| भाजपा की कोई कितनी भी आलोचना करे लेकिन उसके विरोधी भी उसकी संगठन शक्ति और नया नेतृत्व उभारने की रणनीति के कायल हैं|