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भाजपा में असंतोष के शोले...

सार

इंदौर जिला भाजपा में कांग्रेस में रहे नेता को आईटी सेल का जिला संयोजक बनाने से असंतोष की जो आग भड़की तो उसे अनुशासन और शोकाज नोटिस के पानी से बुझाने की कोशिश हो रही है।

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विस्तार

भोपाल: मध्य प्रदेश में सत्ता और विपक्षी दल अजीब सी कश्मकश में है। कांग्रेस - भाजपा दोनो ही अब तक के सबसे कठिन दौर से गुजरते लग रहे हैं। कहीं नेता-कार्यकर्ता उपेक्षा और असंतोष की आग में जल रहे हैं तो कहीं अवसाद में डूबते दिख रहे हैं। कुछ बागी हो रहे हैं तो कुछ आत्महत्या तक कर रहे हैं। 

हालात विस्फोटक हैं और चिंता की बात यह है कि जिम्मेदार कम्बल ओढ़ कर मजे ले रहे हैं। मनोनीत जिला अध्यक्ष में कई ऐसे हैं जो पार्टी की सेवा में कम प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं के ऐसे निजी व पारिवारिक कामों में ज्यादा मसरूफ रहते हैं आमतौर पर जो एक नौकर कर सकता है। स्वाभिमानी कार्यकर्ता बस यही पिछड़ जाता है।  

इंदौर जिला भाजपा में कांग्रेस में रहे नेता को आईटी सेल का जिला संयोजक बनाने से असंतोष की जो आग भड़की तो उसे अनुशासन और शोकाज नोटिस के पानी से बुझाने की कोशिश हो रही है। 

प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता उमेश शर्मा ने नाराजगी जताते हुए कहा था हम अनुशासित हैं लेकिन गुलाम नहीं है... यह बात भले ही उमेश शर्मा के मुंह से निकली हो लेकिन यह लाखों भाजपा कार्यकर्ताओं के मन की बात है। इसे जितनी जल्दी भाजपा नेतृत्व समझेगा नुकसान उतना ही कम होगा।

कांग्रेस को देखें तो वहां पूर्व मुख्यमंत्री रहे दो नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच दरार में पार्टी को चिंता में डाल दिया है। अभी ये दोनो नेता पूर्व पश्चिम हैं लेकिन हालात नहीं सुधरे तो दोनो में आंकड़ा 36 का भी हो सकता है।

भाजपा इवेंट की पार्टी बन रही है उसमें मैनेजर और मीडिया डर मेडिएटर अर्थात दलालों और दल बदलुओं का बोलबाला है। बस इसी चिट्ठी को तार समझने की जरूरत है। इंदौर की ही बात करें तो युवा के नाम पर गौरव रणदिवे जिला अध्यक्ष बना दिए गए। 

दिग्गजों से भरपूर इंदौर में लोकसभा अध्यक्ष रही सुमित्रा महाजन, कैलाश विजयवर्गीय, उषा ठाकुर, रमेश मेंदोला मालिनी गौड़ गोविंद मालू गोपीकृष्ण नेमा जैसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है इन सबके बीच रणदिवे को संतुलन बना कर चलना नेतागिरी से कम नहीं है।  

सारे दिग्गजों के बीच समन्वय के लिए उनकी काबिलियत भी दाव पर लगी थी। दुर्भाग्य से रणदिवे इसमें कामयाब नहीं हो पाए ऐसा लिखना एक तरह से उनकी योग्यता पर निर्णय सुनना नहीं है लेकिन भाजपा के लिए यह नुकसान जरूर है। इसमें रणदिवे की गलती कम उन्हें चुनने वालों की शायद ज्यादा है। 

यहां से उनका राजनीतिक कैरियर आगे के लिए टेक ऑफ करने वाला था लेकिन जो हालात हैं उसके हिसाब से उन्हें इमरजेंसी लैंडिंग मोड पर आना पड़ सकता है। पार्टी ने जिद्दी रवैया अपनाया तो हो सकता है जिलाध्यक्ष का फायदा हो लेकिन संगठन को जरूर खामियाजा उठाना पड़ सकता है। 

पिछले दो-तीन साल मे  देखें तो कई जगह भाजपा ने रणदिवे तैयार कर लिए है । नोसीखिए और रंग रूटों की तरह अनाड़ी भी साबित हो रहे हैं। अभी तो ठीक चुनाव में इससे भारी दिक्कत होने वाली है। नई नवेले नेताओं को पार्टी की परिपार्टी और परंपराओं का ज्ञान कम है इसलिए उन्हें सबको साथ लेकर चलने में अपने पद और अहंकार से समझौता करना कठिन हो रहा है। 

यही वजह है कि ऐसे नए नेताओं के कामकाज को लेकर असंतोष बगावत तक जाता दिख रहा है। येभाजपा प्रवक्ता उमेश शर्मा की  मुखरता ने उन्हें पार्टी में हाशिए पर लाए जा रहे नेताओं की आवाज बना दिया हैं।

संक्षेप में कहा जाए तो भाजपा का निष्ठावान और स्वाभिमानी कार्यकर्ता वर्ष 2003 के बाद से जब पार्टी सत्ता में आई तब से उपेक्षित महसूस कर रहा है। पार्टी में दल बदल कर आए कार्यकर्ताओं को जब उनसे ऊंचा ओहदा दिया जाने लगा तो उसे यह सहन करना मुश्किल लग रहा है। 

लेकिन यह बात जिम्मेदारों की समझ में कम आ रही है और वह उसका यह दुख दूर करने में असहाय और असमर्थ लग रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समूह सिर्फ मतदान के दिन वोट घर से निकालने और उन्हें मत डलवाने तक सक्रिय रहता है और उसके बाद वह अपने काम में लग जाता है उससे पार्टी और नेताओं की रोजमर्रा की गतिविधियों से कोई लेना देना नहीं होता है। 

भाजपा कार्यकर्ताओं की दूसरी श्रेणी ऐसे समूह की है जो चुनाव का ऐलान होते ही पार्टी को जिताने में खुद संगठनों और नेताओं के पास जाकर जिम्मेदारी लेता रहा है और चुनाव प्रचार कर मतदान के बाद वह अपने रोजगार धंधे में लग जाता है तीसरी श्रेणी उन कार्यकर्ताओं की है जो 365 दिन पार्टी के लिए काम करते हैं उन्हें पद से कम अपनी पार्टी और नेताओं की चिंताओं से ज्यादा मतलब रहता है। 

ऐसे कार्यकर्ताओं की प्रतिभा को देखकर पार्टी मंडल और जिलों में संगठन के पद देकर काम कराती है और कभी कभी पार्षदों के टिकट देकर उन्हें चुनाव भी लगाती है आमतौर से इन्हीं में से जो कार्यकर्ता पार्टी की कसौटी पर खरा उतरा था उसे विधायक और अन्य चुनाव उम्मीदवार बनाया जाता था। 

दूसरी पार्टी छोड़कर आने वाले नेतागण कम से कम उस वफादार नेता से ऊपर नहीं होते थे। इसके अलावा जनता से जुड़े कामों और कभी-कभी उसके नीचे काम भी प्राथमिकता से संगठन और सरकार में कराए जाते थे। लेकिन 2003 के बाद धीरे धीरे पार्टी के वफादार कार्यकर्ता किनारे होते गए और दल बदलू, दलाल, चापलूस नेताओं की भरमार हो गई। 

ऐसे अवसरवादी नेताओं को जब सरकार के साथ संगठन में पद मिलना शुरू हुए तो अनुशासन में रहने वाला देव दुर्लभ कार्यकर्ता बगावत करने के साथ आत्मघात जैसे कदम उठाने लगा। कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर पहले वरिष्ठ नेता और संगठन मंत्री उनकी तरफदारी किया करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है। अधिकतर अपना हित साधने और इज्जत बचाने में लगे हैं। 

बीस फरवरी 2018 में लिखा था, इवेंट के भंवर में फंसी भाजपा... 

कॉरपोरेट कल्चर की पॉलिटिक्स ने धुर दक्षिणपंथी भाजपा के ताने-बाने को ध्वस्त सा कर दिया है। राजनीति में पारिवारिक माहौल और प्रखर राष्ट्रवाद की भावना में इवेंट मैनेजमेंट ने ऐसी घुसपैठ की है कि संघ और उसके संस्कार संगठन व सत्ता के दरवाजे खड़े सिसकियां लेते दिख रहे हैै। अपने खांटी कार्यकर्ताओं के साथ कभी जश्न-ए-शिकस्त मानने वाली भाजपा उत्सव मनाने के लिए आउटसोर्स करती दिखती है। 

मात्र चौदह साल में भाजपा इस कदर बदली कि पुराने कार्यकर्ता अगर बुक्के फाड़ कर भी दर्दे दिल बयां करें तो किसी को फुरसत मिलेगी इसकी उम्मीद कम ही है। असल में इतनी बात कहने के पीछे चंद मिसालें भी हैैं और उससे शायद ही कोई नाइत्तफाकी रखे।

गौर से पढि़ए... पहले शादी ब्याह से लेकर जन्म दिन मनाने सत्यनारायण की कथा में पंजीरी बनाने और बांटने का काम मिलजुलकर होते थे। मोहल्ले की बहन बेटियों से लेकर मेहमान तक मदद करते थे। शादियों से लेकर मैयत और तेरहवीं तक में भोजन बनने से पंगत परोसने का काम भी किराए की टीम से नहीं मोहल्ले के लोग ही करते थे। तब हरेक काम आनंद था। 

नौजवानों में इससे समाज सेवा व नेतृत्व भाव भी पैदा होता था। जिन परिवारों में लड़के-लड़कियों की तादाद ज्यादा होती थी उनकी पूछ-परख भी होती थी। रौब-दौब भी होता था। प्रकारांतर में यही संख्या बल समाज के साथ सियासत में भी काम आता था। आगे चलकर राजनीतिक दलों में इन्हें कार्यकर्ता का नाम दिया। 

संघ के प्रचारक व पूर्णकालिक जनसंघ से लेकर जब भाजपा में आए तो उन्हें काडर बेस संगठन का नाम दिया गया। वामपंथियों में भी इसका चलन है, मगर चर्चाओं में संघ परिवार ज्यादा सुर्खियों में रहता आया है। मगर अब सब कुछ कारपोरेट कल्चर में तब्दील हुआ और फिर मानव मन की जगह मशीनों ने ले ली। 

कम्प्यूटर मोबाइल से भावना और एहसास सब छिन लिया। रह गया तो सिर्फ मजहब। गिव एंड टेक। इसलिए मिस्ड काल के मेंबर भाजपा में जेट स्पीड से बदलते युग के माई-बाप बन गए। मनी और मेनुप्लेशन ही महत्वपूर्ण हो गया। गिरोहबंदी कर ईमानदारी, समर्पित कार्यकर्ता, अप्रासंगिक बना दिए गए। 

यही वजह है कि 14 फरवरी 2018 को भोपाल के जम्बूरी मैदान पर एक लाख किसानों को लाने का इवेंट तय किया गया। अनुमान है प्रति किसान तीन सौ रुपये का खर्च भी निश्चित हुआ। (इवेंट मैनेजर नाराज न हो) यदि मानवीय भावनाएं इवेंट बनाती तो खराब मौसम, ओला, बारिश के कारण इसे स्थगित कर देती। मगर इवेंट मैनेजर या कंपनियों के लाभ हानि से जुड़ा धंधा होता है। 

व्यापार करने वाले घाटा सहन नहीं करते। सो करीब तीन करोड़ का यह किसानी जलसा रद्द नहीं हुआ। बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि पूरे प्रदेश के किसानों के लिए बड़ा अपशकुन और मौत के फरमान जैसी थी। मगर इवेंट मैनेजरों की पार्टी से इसे संपन्न कराकर ही दम ली। 

अलग बात है कि इसमें लगभग 25 हजार (बहुत उदार होने पर) कथित किसानों ने ही भाग लिया। भाजपा कार्यकर्ता, जिला व मोर्चा तक के पदाधिकारी कम ही नजर आए। मुद्दे की बात यह थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसान कल्याण की बड़ी घोषणा गेहूं खरीदी समर्थन मूल्य में 265 रु. प्रति क्विंटल की जबरदस्त वृद्धि करने वाले थे। 

अब गेहूं दो हजार रु. प्रति क्विंटल सरकार खरीदेगी। साथ ही पिछले साल की गेहूं खरीदी पर दो सौ रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से अतिरिक्त भुगतान भी करेगी। इतना बड़ा ऐलान तब हुआ जब शिवराज सरकार का हाथ तंग है। उन्हें इसके लिए बधाई मगर संगठन के छोर पर भाजपा का दिल और दिमाग दोनों ही तंग हैैं। 

इवेंट और इलेक्शन मैनेजमेंट के जरिए आधारहीन अचंभो की एक नई फौज अलबत्ता पूरे प्रदेश में जलकुंभी या कुकुरमुत्तों की तरह फैल रही है। जलकुंभी जैसे झील के पानी पर फैल उसे पीने के साथ गंदा भी कर देती है। ठीक वही दशा भाजपा की हो रही है। इसे काबू में करने वाले संगठन मंत्री भी असफल हो रहे हैैं।

इवेंट मैनेजमेंट का दूसरा बड़ा हिस्सा है प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चे का पूरे प्रदेश में दीनदयाल ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित की। करीब तीस लाख युवाओं ने इसमें भाग लेकर विश्व रिकॉर्ड बना दिया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी प्रदेश युवा मोर्चा ने प्रशंसा प्राप्त की। प्रतियोगिता की सफलता के लिये पीएम के रुख को देखते हुए प्रदेश सरकार भी सक्रिय हो गई थी। कुछ दिन में इसके नतीजों की घोषणा करने का वादा किया गया। प्रतियोगिता जीतने वालों को हजारों इनाम देना तय हुआ था लेकिन कॉपी जांचने की तिथि निकल गई नतीजे घोषित नहीं हुए। 

लिहाजा परीक्षा देने वाले दीनदयालों के लिए इनाम भी नहीं बंटे दरअसल ये सब इवेंट ही है। जिनका हल्ला ज्यादा और उनकी अहमियत कम होती है। यहां फिर कार्यकर्ता की याद आएगी जो अब पार्टियों के लिए दुर्लभ हैै। वह तो कहीं माचिस की डिबिया में बंद अपने को सुरक्षित रखा होगा।