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राजनीति का सिकंदर कमलनाथ भी अतृप्त

सार

चुनाव की आहट के साथ पत्ते फेंटने का काम शुरू हो जाता है। साम दाम दंड भेद, सब तरह के नुस्खे आजमाने शुरू हो जाते हैं। सरकार गंवाने के बाद भोपाल में जमे कमलनाथ कह रहे हैं कि ये विधानसभा चुनाव जीतना उनके लिए आख़िरी मौका है। आखिरी मौके का एहसास शायद उन्हें इसलिए हुआ है कि अगले चुनाव में उम्र उनका साथ नहीं देगी।

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विस्तार

किसी को भी आख़िरी का एहसास हो तो इसे अध्यात्म में अच्छा संकेत माना जाता है लेकिन राजनीति में इसे आख़िरी इच्छाओं के रूप में देखा जाता है। अंत का अनुभव होने के बाद आखिरी मौके का एहसास राजनीति में अंतिम इच्छा पूर्ति के दांव के रूप में देखा जाता है। भारतीय राजनीति में कमलनाथ ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने राजनीति के सारे सुख भोग लिए हैं। शायद आज भारत के सबसे वरिष्ठतम राजनेताओं में कमलनाथ शामिल हैं। लंबे समय तक सांसद रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले कमलनाथ केंद्र में वर्षों तक मंत्री पद पर रह चुके हैं। राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभालने की उनकी इच्छा भी पूरी हो गई है। भले ही बहुत थोड़े समय के लिए मौका मिला हो लेकिन मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड तो बन ही  गया है। 

ऐसा कोई राजनेता शायद ही होगा जो राजनीतिक रूप से इतना सफल हो और अपने परिवार को भी राजनीति में स्थापित करने में सफल रहा हो। कमलनाथ ने अपनी पत्नी को भी सांसद निर्वाचित कराया था और उनके बेटे भी अब सांसद हैं। इतनी सारी राजनीतिक उपलब्धियों के बाद भी राजनीतिक तृप्ति नहीं होने को क्या कहा जाएगा?

अध्यात्म ऐसा मानता है कि मन की दौड़ सतत चलती रहती है। कोई भी उपलब्धि तृप्ति नहीं देती बल्कि हर तृप्ति नई अतृप्ति को जन्म देती है। सामान्य जीवन में तो कई बार तृप्ति का एहसास हो भी जाता होगा लेकिन राजनीतिक जगत में तो अतृप्ति ही दिखाई पड़ती है। धर्म और अध्यात्म में कई आदर्श और प्रेरक व्यक्तित्व मिल जाएंगे जिन्होंने तृप्ति पाई है और उनके आदर्शों पर चलते हुए लोग आज भी मन की शांति का प्रयोग कर जीवन की धन्यता का आनंद उठा रहे हैं। राजनीति में आज तक ऐसा कोई भी आदर्श नहीं रहा है जिसने राजनीतिक उपलब्धियों और सफलताओं से तृप्ति हासिल कर उनका बलिदान करके प्रेरणादाई व्यक्तित्व सामने रखा हो। 

कमलनाथ के लिए यह विधानसभा चुनाव जीतने का छिपा लक्ष्य मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करना है। बुढ़ापे के इस दौर में भी कुर्सी के लिए ही चिंतन-मनन और प्रयास को क्या जीवन की सफलता माना जाएगा? कमलनाथ के पास कभी भी ना तो पद की कमी थी ना प्रतिष्ठा की कमी थी और ना पैसे की कमी रही है। कॉर्पोरेट और राजनीति दोनों में सफलता के झंडे गाड़ने वाले भारतीयों की संख्या देश में बहुत कम है। कमलनाथ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कॉर्पोरेट में भी उपलब्धि हासिल की है और राजनीति में भी। इसके बाद भी अतृप्ति का भाव क्या कहा जाए?

आज राजनीति में बदलाव का दौर चल रहा है। युवा चेहरे राजनीति को आगे ले जाने का काम कर रहे हैं। ऐसे समय में भी नेताओं का अपने लिए यह स्वार्थीपन नहीं तो और क्या है कि आख़िरी मौका भी वर्तमान के लिए छोड़ना नहीं चाहते। मध्यप्रदेश के 15 महीनों के अनुभव को देखते हुए कमलनाथ को आख़िरी मौका मिलेगा कि नहीं मिलेगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर उन्होंने युवा चेहरों के लिए अपने आखिरी मौके को छोड़ने का साहस दिखाया तो जरूर उपलब्धि का नजारा देखने का मौका उन्हें मिल सकता है। 

राजनीति आज फाल्स ओपिनियन बनाकर सत्ता तक पहुंचने का माध्यम बन गई है। फाल्स ओपिनियन बनाने में जो कुछ भी उपयोग हो सकता है उसको करने से कोई भी चूकना नहीं चाहता। चाहे वह आख़िरी मौका होने का दांव लगाना हो या वायदों की झड़ी लगाना हो। कोई भी अपने किए गए पुराने वादों और सरकार में आने पर उनकी सच्चाई पर कुछ भी कहने से कतराता है। कमलनाथ का उदाहरण देखें तो पिछले चुनाव में उन्होंने वायदा किया था कि डीजल और पेट्रोल पर 5% वैट घटाया जाएगा। जब उनकी सरकार बनी तो वैट घटाना तो दूर कमलनाथ सरकार ने 5% टैक्स बढ़ा दिया था। राजनीति आज झूठ के सहारे ही अपने पांव जमा रही है। 

राजनेता हर चीज में लोगों को सांत्वना बांटते हुए दिखाई पड़ जाएंगे। सच्चाई यह है कि सांत्वना तो झूठ से ही मिलती है। सत्य कभी सांत्वना नहीं देता। सफल राजनेता सांता क्लॉज की तरह नैतिक-अनैतिक लाभ देते हुए दिखाई पड़ते हैं। राजनीतिक जगत में मतदाताओं को कोई भी चीज देने का वादा या देना, मतदाताओं को तृप्त करने के प्रयास से ज्यादा सत्ता पाने या सत्ता पर बने रहने की अतृप्त इच्छा को पूरा करने की कोशिश ही होती है। 

राजनीति में रिटायरमेंट की अवधारणा शायद इसीलिए प्रभावी नहीं हो सकी है क्योंकि कोई भी अपनी उपलब्धियों से तृप्त होकर उसे छोड़ने का साहस नहीं दिखा पाता। जनता पराजित कर दे या पार्टी अवसर ना दे, तभी मजबूरी में नेता घर बैठते  हैं नहीं तो कोशिश यही होती है की अंतिम यात्रा भी तिरंगे में लिपट कर हो तो अच्छा है। 
 
बुढ़ापे में भी संतुष्टि का भावना ना हो तो इसका मतलब है कि जीवन की पूरी यात्रा विफल हो गई है। जन्म से शुरू जीवन की यात्रा की परिपक्वता वृद्धावस्था है। इस अवस्था में भी अतृप्ति और आसक्ति मजबूती के साथ खड़ी रहे तो पता चलता है कि जीवन की दिशा भटक गई है। नौजवानों के लिए मौके को छोड़ना, आखिरी मौके की सबसे अधिक सार्थकता है। 

राजनीति शास्त्र ने अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को भी बदल दिया है। आवश्यकता को आविष्कार की जननी कहा जाता था। मांग होने पर पूर्ति अर्थशास्त्र का नियम था। आज यह दोनों शीर्षासन कर रहे हैं। विज्ञापन के इस युग में आविष्कार आवश्यकता का पिता बन गया है और पूर्ति पहले की जाती है बाद में विज्ञापन के जरिए मांग को पैदा किया जाता है। 

यही हालत राजनीति में हो गई है। आवश्यकता राजनीति में युवा चेहरों की है लेकिन बुजुर्ग राजनीति का चेहरा बने हुए हैं। मांग भले ही ना हो लेकिन पूर्ति बाजार में बुजुर्गों की दिखाई पड़ रही है। कमलनाथ का एक समझदारी भरा फैसला उनके राजनैतिक जीवन को सार्थक और भविष्यगामी साबित करने के लिए पर्याप्त हो सकता है वैसे तो अतृप्ति ही जीवन का कटु सत्य है।