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छू होते बसंत -फागुन और अभी से गर्मी के तीखे तेवर 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 28 Apr

सार

यह सब चिंता का विषय है कि मनुष्य की लिप्साओं ने वायुमंडलीय पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए धरती को संकट के कग़ार पर ला छोड़ा है..!!

janmat

विस्तार

पता ही नहीं लगा इस बार बसंत कैसे छू -मंतर  हो गया और फागुन भी दौड़ कर अंतिम पायदान पहुँच  गया। गर्मी के तीखे तेवर अपने ज्वाला बरसा रहे हैं। यह सब चिंता का विषय है कि मनुष्य की लिप्साओं ने वायुमंडलीय पर्यावरण को प्रदूषित करते हुए धरती को संकट के कग़ार पर ला छोड़ा है। 

विगत वर्षों से अनवरत बढ़ता वायुमंडलीय तापमान आज एक चिंताजनक मुद्दा बन चुका है। विगत वर्ष ग्रीन हाउस गैसों, भूमि व जलीय तापमान तथा ग्लेशियरों एवं समुद्री बर्फ के पिघलने में हुई रिकार्डतोड़ वृद्धि का उल्लेख करते हुए, हाल ही में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के संबंध में रेड अलर्ट जारी किया। इसके तहत, वर्ष 2023 को अब तक का सर्वाधिक गर्म वर्ष घोषित किया गया।

विशेषज्ञों के मुताबिक़, गत वर्ष भी ग्रीष्मकालीन अवधि अन्य वर्षों की अपेक्षा अधिक रही। ग्लेशियरों के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखने में आया, ध्रुवीय बर्फ पिघलने के समस्त रिकार्ड ध्वस्त होते दिखाई पड़े। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने ‘वैश्विक जलवायु की स्थिति’ रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए, बहुप्रतीक्षित जलवायु लक्ष्य को ख़तरे में बताया।

यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस के अनुसार, मार्च 2023 से फरवरी 2024 तक, 12 माह की अवधि में तापमान 1.5 डिग्री सीमा से आगे निकल गया, जो औसतन 1.56 सैल्सियस (2.81 फॉरेनहाइट) रहा है। 2023 में वर्ष की रिकॉर्ड गर्म शुरुआत ने 12 महीने के औसत स्तर में वृद्धि कर दी।

तापमान का निरंतर बढ़ना, धरती पर संकट के संदर्भ में एक स्पष्ट चेतावनी है। जीवाश्म ईंधन जलने से कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर इसका प्रमुख कारण रहा। 2023 के मध्य 90 फीसदी से अधिक महासागरीय जल में कम से कम एक बार लू का अनुभव किया गया। ग़ौरतलब है, 1950 के बाद से ग्लेशियरों में बर्फ रिकॉर्ड स्तर पर गायब हो रही है। अंटार्कटिक समुद्री बर्फ घुलकर, अब तक के सबसे छोटे आकार में पहुंच गई है।

इस वायुमंडलीय विक्षोभ के विषय में भारतवर्ष भी अपवाद नहीं। 1970 के बाद से ग्लोबल वार्मिंग को लेकर, अमेरिका स्थित क्लाइमेट सेंट्रल के शोधकर्ताओं द्वारा भारत के संदर्भ में किए गए विश्लेषण के मुताबिक़, भारत में सर्दियों का मौसम तेज़ी से गर्म हो रहा है; वसंत ऋतु की अवधि लगातार सिमट रही है। देश के कई भागों में तो वसंत ऋतु जैसे गायब ही हो चुकी है। शोधकर्ताओं के अनुसार, सिकुड़ता वसंत भविष्य में पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है।

जैसा कि इस वर्ष उत्तर भारत में जनवरी की ठंड के साथ कुछ दिन हल्की गर्मी भी महसूस की गई, वहीं फरवरी में बढ़ती गर्मी के साथ मार्च में रहने वाली गुलाबी ठंड गायब रही। कुछ दिन की हल्की ठंडक को छोड़कर मौसम सामान्यत: गर्म रहा, जिसका सीधा असर फरवरी-मार्च में फूल खिलने की प्रक्रिया पर पड़ा। गेंदा, कनेर, गुड़हल, गुलाब में तीव्र बदलाव देखने को मिले।

अध्ययन के तहत, इस वर्ष राजस्थान में जनवरी-फरवरी के तापमान में 2.6 डिग्री सेल्सियस का अंतर रहा। केंद्रशासित प्रदेशों तथा कुल नौ राज्यों राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा उत्तराखंड में जनवरी-फरवरी के दौरान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक का अंतर देखा गया। पूर्वोत्तर राज्यों, मणिपुर में यह 2.3 डिग्री व सिक्किम में 2.4 डिग्री सेल्सियस रहा। मौसमी चक्र में यह बदलाव वसंत लुप्त होने की आशंकाओं का प्रतीक है।

अध्ययन के अनुसार, समस्त परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही देखने को मिल रहे हैं। वर्ष 1850 के बाद से वैश्विक औसत तापमान 1.3 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ गया है, जिससे जलवायु प्रभावित हुई। तभी वर्ष 2023 रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहा।

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के महासचिव सेलेस्टे साउलो के अनुसार, पेरिस समझौते में सभी देशों द्वारा पृथ्वी के तापमान में वृद्धि को औद्योगीकरण के पूर्व के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फॉरेनहाइट) से अधिक नहीं होने देने पर सहमति जताने के बावजूद आज पृथ्वी 1.5 डिग्री सेल्सियस की निचली (लक्ष्मण रेखा) सीमा के समीप होना, निश्चय ही चिंताजनक है। यानी विनाशकारी प्रवृत्ति को उलटने हेतु किए गए प्रयास अपर्याप्त हैं।

निरंतर बढ़ता वायुमंडलीय तापमान पर्यावरणीय संतुलन के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। वर्ष पर्यंत जमे रहने वाले हिमखंड पिघलने से जहां जलीय आपदाओं में वृद्धि हुई है, वहीं आने वाले दिनों में जलसंकट उपस्थित होने की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। पर्यावरणीय संतुलन पर गहराता संकट वास्तव में मानवीय स्वार्थ का ही परिणाम है, जिसका ख़मियाज़ा विभिन्न रूपों में समूची सृष्टि को चुकाना पड़ रहा है। हमारी अनंत लिप्साओं ने आज पृथ्वी ग्रह को विनाश के निकट पहुंचा दिया है। यदि अब भी हम प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाते अथवा वायुमंडलीय तापमान को गंभीरतापूर्वक नहीं लेते तो वह दिन दूर नहीं, जब धरती के अस्तित्व का संकट गहरा हो जाएगा!