पुलिस सुधार पर पॉलिटिक्स अब शायद गुजरे समय की बात हो जाए| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर पुलिस सुधार पर टिक गई है| मोदी ने गुजरात दौरे में पुलिस के आधुनिकीकरण और सुधार पर राज्यों से आवाहन किया|
देश में पुलिस सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर कार्यवाई पहले से चल रही है, लेकिन यह किसी अंजाम तक नहीं पहुंच सकी| राज्यों में पॉलिटिक्स के तार पुलिस के सुधार को बाधित करते रहते हैं, अब नरेंद्र मोदी की पुलिस सुधार की पुकार कम से कम भाजपा शासित राज्य तो तेजी से लागू करेंगे ऐसी उम्मीद है|
प्रधानमंत्री मोदी ने जिस दिन लखनऊ में पुलिस महानिदेशकों की बैठक ली और पुलिस कमिश्नर सिस्टम की तारीफ की उसी दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मध्य प्रदेश के 2 शहरों, इंदौर और भोपाल में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की घोषणा की| जिसे तत्परता के साथ लागू भी कर दिया गया| अब मोदी की पुलिस सुधार की जरूरत की अपील को भी मध्य प्रदेश सरकार शीघ्रता से लागू भी कर सकती है|
मध्यप्रदेश में पुलिस सुधार की पॉलिटिकल विल तो कम नहीं है, लेकिन कई बार पुलिस तंत्र ही अपने सुधार को अंजाम तक पहुंचाने में कमजोर साबित हो जाता है| आज पुलिस तमाम तरह के संसाधनों की कमी से जूझ रही है| फिर भी पुलिस मॉर्डनाइजेशन के लिए सरकार द्वारा दिए गए बजट का उपयोग करने में पुलिस असफल रही है| नियंत्रक महालेखा परीक्षक के 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वर्ष के लिए प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि पुलिस बल के आधुनिकीकरण के लिए उपलब्ध राशि का 77.77% खर्च नहीं किया जा सका|
बजट में आधुनिकीकरण के लिए 23.93 करोड़ का प्रावधान था, लेकिन इसमें से 18.10 करोड़ खर्च नहीं किये जा सके| संसाधनों का रोना है लेकिन बजट होने के बाद भी पुलिस आधुनिकीकरण के प्रयास नहीं होना निश्चित ही चिंतनीय है| इसके लिए कौन दोषी है? पुलिस तंत्र दोषी है या शासन स्तर पर कमजोरियों के कारण राशि का उपयोग नहीं हो पाया? कोई भी कारण हो लेकिन पुलिस सुधार के लिए पॉलिटिकल विल तो स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है क्योकि बजट में इसके लिए राशि का प्रावधान किया गया|
गृह विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2020-21 में भारत सरकार द्वारा पुलिस आधुनिकीकरण के लिए स्वीकृत 45.18 करोड़ की योजना के अंतर्गत कोरोना महामारी में 10 एंबुलेंस, गर्मियों में पानी के लिए 20 वाटर टैंकर, खरीद कर उपलब्ध कराए गए| इस योजना के अंतर्गत बलवा नियंत्रण, विधि विज्ञान प्रयोगशाला संबंधी उपकरण और कुछ जिलों में साइबर लैब की स्थापना होना भी बताया गया है| आधुनिकीकरण के नाम पर दंगा रोधी सामग्री, अश्रु गैस, आवश्यक शस्त्र, गोला बारूद और मैदानी इकाइयों में आरक्षक एवं प्रधान आरक्षक के लिए स्पोर्ट्स कैप की व्यवस्था किए जाने का उल्लेख प्रशासनिक प्रतिवेदन में किया गया है|
प्रदेश में संसाधनों की कमी की स्थिति यह है कि लैब की कमी के कारण 11,000 से ज्यादा डीएनए सैंपल की जांच 2 सालों से लंबित है| इनमें 80% दुष्कर्म के मामले हैं| इसका मतलब है कि दुष्कर्म पीड़ित 9000 महिलाएं न्याय के लिए टकटकी लगाए बैठी हुई हैं| सैंपल की जांच समय पर नहीं होना क्या सिस्टम का अपराध नहीं है? एक ओर संसाधनों की स्थिति इतनी भयावह है और दूसरी तरफ आधुनिकीकरण के लिए बजट में उपलब्ध राशि लैप्स हो रही है! इसके लिए क्या किसी पर जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की जानी चाहिए ? आज अपराधों की प्रकृति और प्रवृत्ति बदल रही है, प्रदेश में करोड़ों के साइबर फ्रॉड होने की जानकारी विधानसभा में दी गई है| साइबर अपराधों की जांच सामान्य पुलिसकर्मी द्वारा क्या संभव है? इसके लिए अलग से साइबर पुलिस बनाने की क्या जरूरत नहीं है? पुलिस कर्मियों का प्रशिक्षण भी समय की आवश्यकता है|
हाल ही में भोपाल में 4 आतंकी पकड़े गये हैं| ये लम्बे समय से भोपाल के युवाओं को घेर रहे थे लेकिन इनकी जानकारी पुलिस को नहीं थी, ATS को भी 2 साल बाद इनकी भनक लगी| बताया जाता है कि इन्होने अब तक कई युवाओं को अपने साथ जोड़ा है आगे चलकर इस मानसिकता से क़ानून व्यवस्था को गम्भीर चुनौती हो सकती है| प्रधानमंत्री मोदी ने पुलिस सुधार की जरूरत बताते हुए कहा कि अभी पुलिस के बारे में यही धारणा है कि उससे दूर रहना चाहिए| पुलिस पर राजनीतिक नियंत्रण मुख्य रूप से नियुक्तियों और तबादलों को तय करके हासिल किया जाता है|
कानून व्यवस्था और सख्त प्रशासन आज राजनीतिक फायदे का सौदा साबित हो रहा है| उत्तर प्रदेश के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के सख्त प्रशासन को बुलडोजर के रूप में जनता का भरपूर समर्थन मिला है| कानून और व्यवस्था पर लोकप्रिय उम्मीदों को विफल करने में अब पॉलिटिकल पार्टियों को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ रही है| उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकाल के दौरान सामने आई अराजक घटनाओं से जनता डरी हुई थी और इसी कारण दोनों दलों को चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा|
पुलिस के लिए कामकाजी स्वायत्तता जैसे न्यूनतम मापदंडों को पूरा करने के अलावा पॉलिटिकल लोग पुलिसिंग को गुणात्मक सुधार से भी वंचित कर रहे हैं| यौन अपराध जिनमें बेहतर फॉरेंसिक और गवाहों के संवेदनशील होने की आवश्यकता होती है उनमें भी दोष सिद्धि की दर बहुत कम होती है| इसका खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है| बढ़ते साइबर अपराध की मांग है कि पुलिस को इन अपराधों की रिपोर्टिंग और जांच को आसान बनाने के लिए तकनीकी और भौतिक इंटरफेस दोनों को एक साथ अपग्रेड करना चाहिए|
भारत में पुलिसिंग की स्थिति का पता २०१९ की रिपोर्ट से चलता है| 44% पुलिस दिन में 12 घंटे से अधिक काम करती है| पुलिस को साप्ताहिक अवकाश भी ठीक तरह से नहीं मिलता| बड़ी संख्या में पुलिस के पद रिक्त होते हैं| इस तरह की स्थिति अच्छी तरह से प्रशिक्षित पुलिस बल को बढ़ावा देने योग्य नहीं है| पुलिस सुधार और आधुनिकीकरण के लिए प्रधानमंत्री ने जो बात की है वह तभी संभव हो सकता है जब राजनीति का नजरिया बदले|
मध्यप्रदेश में आदिवासी बहुल पेटलावद में घनी बस्ती में विस्फोटक से 78 लोगों की जान गई और इसके लिए पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया में किसी को भी दोषी नहीं पाया गया| पुलिस जांच पर यह कितना बड़ा सवाल है! लेकिन यह सब तभी सुधर सकता है, जब पुलिस को पर्याप्त संसाधन मिले, पुलिस का समुचित प्रशिक्षण हो, पुलिस में राजनीतिक हस्तक्षेप बंद हो, जांच प्रक्रिया अधिकतम वैज्ञानिक हो, साइबर जांच प्रणाली और तकनीकी का अधिकतम उपयोग हो|
मध्य प्रदेश ने विकास और सुधार के कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए देश में मॉडल पेश किए हैं| मध्य प्रदेश पुलिस सुधार का भी मॉडल बन सकता है| इसके लिए पॉलीटिकल विल के साथ ही पुलिस और सिविल तंत्र को सामूहिक रूप से कमिटेड प्रयास करने की जरूरत है| मध्यप्रदेश के लिए आज सर्वाधिक अनुकूल समय है जब स्थाई सरकार और नेतृत्व है| अनुभव से परिपक्व राजनीतिक नेतृत्व प्रगतिशील और सुधार के कदमों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई पड़ता है|