कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस फैसले से अभिव्यक्ति की आजादी के अतिक्रमण की बात से इनकार किया है। कुछ लोगों ने आधुनिक प्रगतिशील समाज में रूढ़िवादी रवैये को खारिज किया। वहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि फैसले से प्रतिभावान लड़कियों को बेहतर मौके मिलेंगे इस बात में ही दम है |
क्या कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्णय से वो घालमेल रुक पायेगा जो देश में ‘हिजाब’ और ‘शाल’ के नाम से खड़ा किया गया था ? अब साफ हो गया है कि “शिक्षण संस्थाओं में यूनिफॉर्म लागू करना कानूनी दृष्टि से उचित है। इससे संविधान में दी गई निजता व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होता|” कर्नाटक हाईकोर्ट ने इसे संवैधानिक अधिकार बताने वाली छात्राओं की याचिका भी खारिज कर दी।सब जानते हैं यह मुद्दा पूरे देश में , कर्नाटक स्थित उडुपी के दो सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों की कुछ छात्राओं ने कालेज प्रबंधन द्वारा कक्षाओं में हिजाब पहनने से शुरू हुआ था | विवाद हमेशा की तरह दो भागों में बडाया गया ‘हिजाब’ ‘शाल’ से शुरू हुआ विवाद देश के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा | इस विवाद के पटाक्षेप के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। साथ ही इस तरह के परिधान धारण करना संवैधानिक अधिकार बताया गया था।
इस मामले को तीन जजों की पीठ को सौंपा गया था। सभी पक्षों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ में शामिल जजों न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित व न्यायमूर्ति जे.एम. काजी ने २५ फरवरी तक सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रखा था। बीते दिन पीठ ने निष्कर्ष दिया कि व्यक्तिगत अभिरुचि शैक्षणिक अनुशासन का अतिक्रमण नहीं कर सकती। इस फैसले का केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने स्वागत किया। कहा गया कि देश-राज्य की प्रगति के लिये प्रतीकात्मक विवादों से परे छात्रों को अपने मुख्य कार्य पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। वहीं छात्राओं के वकील का कहना है कि मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट ले जायेंगे। वहीं दूसरी ओर कहा जा रहा है कि धर्म व उसकी मान्यताओं से इतर, देश का संविधान सर्वोच्च है।विवाद यूँ बना था , फरवरी के मध्य में जब उडुपी के गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर वीमेन की छात्राओं को हिजाब पहनने से रोका गया तो उन्होंने कालेज प्रशासन के फैसले को नहीं माना और अदालत की शरण ली थी। जब इस मामले का विरोध हुआ तो कुछ छात्र भगवा शॉल डालकर प्रदर्शन करने लगे।
अचानक उठे विवाद ने देश के सामने तमाम सवाल खड़े कर दिए , और यह प्रकरण उडुपी से निकलकर पूरे कर्नाटक और फिर पूरे देश में विवाद का केंद्र बन गया। इस दौरान कई राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भी मुद्दे की तपिश महसूस की गई। तब इस विवाद के मूल में राजनीतिक निहितार्थों की बात कही गई। मामले ने तूल पकड़ा तो कई राजनीतिक दल भी इसमें अपना नफा- नुकसान तलाशने लगे। तभी मामले की सुनवाई कर रही पीठ ने भी कहा कि अकादमिक सत्र के बीच में अचानक यह मुद्दा क्यों उठा? लगता है कि इसके पीछे किसी का हाथ है। निस्संदेह, अशांति पैदा करने व सद्भाव को प्रभावित करने के लिये ऐसा किया गया था । वहीं राज्य सरकार कहती रही है कि पहले से तय यूनिफॉर्म ही कालेज में पहनी जा सकती है। साथ ही लड़कियों को छूट दी गई कि वे स्कूल आते-जाते वक्त हिजाब पहन सकती हैं मगर कक्षा में इसे उतारना होगा जिसे छात्राओं ने स्वीकार नहीं किया। कर्नाटक के कई स्कूल-कॉलेजों में हिजाब के समर्थन व विरोध में प्रदर्शन हुए। कुछ जगह तोड़फोड़ व पथराव की घटनाएं भी हुईं। स्कूल, कालेज बंद किये गये और राज्य में निषेधाज्ञा लागू की गई। वहीं इस मुद्दे पर विवाद बढ़ने के बाद कुछ कानून के जानकारों ने इसे धर्म से इतर व्यक्तिगत अधिकार का मुद्दा बताया। साथ ही कहा गया कि ड्रेस कोड निर्धारित करना स्कूल का अधिकार तो है लेकिन इसके क्रियान्वयन से मौलिक अधिकार का हनन नहीं होना चाहिए। कुछ लोग इसे संस्थान की स्वतंत्रता व निजी स्वतंत्रता का द्वंद्व बताने लगे। वहीं बुद्धिजीवी कहने लगे कि हिजाब के पक्ष व विरोध में खड़े छात्रों का पहला काम पढ़ाई करना है। कुछ लोगों ने पोशाक के चयन को अभिव्यक्ति का हिस्सा बताया।
अब कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस फैसले से अभिव्यक्ति की आजादी के अतिक्रमण की बात से इनकार किया है। कुछ लोगों ने आधुनिक प्रगतिशील समाज में रूढ़िवादी रवैये को खारिज किया। वहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि फैसले से प्रतिभावान लड़कियों को बेहतर मौके मिलेंगे इस बात में ही दम है | पोशाक का चयन अभिव्यक्ति का हिस्सा नहीं हो सकता और शैक्षणिक संस्थाओं में तय वेषभूषा से इस तरह के परिधान धारण करना संवैधानिक अधिकार तो हो ही नहीं सकता |