जीएसटी में बहुप्रतिक्षित सुधार देश के सामने आ गया है. अब इसमें 5% और 18% के दो ही स्लैब बचे हैं. अन्य स्लैब समाप्त कर दिया गए हैं. इसके अंतर्गत आने वाली वस्तुओं के टैक्स कम हो गए हैं..!!
पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में जीएसटी सुधार का ऐलान किया था. जीएसटी एक देश, एक टैक्स का पहला सुधार था, जिसे अब अनुभवों के बाद न्यू जनरेशन के सुधारो के साथ लागू किया जा रहा है. प्रसन्नता की बात यह है कि, इन सुधारो पर सभी राज्यों की सहमति है. विपक्षी शासित राज्य भी इस सुधार के लिए तैयार हुए हैं. इससे लोकतंत्र खुश हुआ है.
इस सुधार से विभिन्न वस्तुओं पर टैक्स में आई कमी के कारण राज्य सरकारों को जो टैक्स आय में क्षति पहुंचेगी, उसकी भरपाई के लिए केंद्र और राज्य सरकारें प्रयास करेंगी. जीएसटी सुधार का लाभ देश के लोगों को मिलना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि, राज्य सरकारें इस पर सतर्कता से नजर रखें. ऐसा ना हो जाए कि, उद्योग जगत टैक्स में आई कमी का लाभ उठाए और जमीन पर जनता को इसका लाभ सुनिश्चित न हो पाए.
आठ साल पहले जीएसटी लागू किया गया था. लगातार उसमें सुधार की मांग हो रही थी. इतने दिनों के बाद इस दिशा में कदम उठाया गया है. नवरात्रि से टैक्स में राहत प्रभावशील हो जाएगी. इसके कारण आम लोगों की जरूरत की कई वस्तुएं सस्ती हो जाएंगी. इस टैक्स सुधार में स्वास्थ्य, जीवन बीमा और जीवन रक्षक दवाओं को टैक्स फ्री कर दिया गया है.
रोज इस्तेमाल होने वाली चीजें भी इस सुधार से सस्ती हो जाएंगी. रोटी, कपड़ा, मकान से जुड़ी वस्तुओं पर टैक्स में राहत मिलने से इनकी दरें कम होगी. वाहन भी सस्ते होंगे. शिक्षा सामग्री, स्वास्थ्य क्षेत्र, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और किसानों से जुड़ी वस्तुएं जीएसटी सुधार से सस्ती होंगी. इसकी प्रतिक्षा बहुत लंबे समय से की जा रही थी. दिवाली पर आम लोगों को जहां महंगाई से राहत मिलेगी तो वही इससे व्यापार भी गुलजार होंगे.
टैक्स में सुधार से पब्लिक को लाभ हो, महंगाई कम और व्यापार उद्योग जगत का विकास हो, इस पर राजनीति खुश नहीं हो सकती. राजनीति की खुशी तो चुनावी परिणाम से आती है. इसीलिए ऐसा माहौल बन गया है कि, सकारात्मक क़दमों का भी राजनीतिक विरोध किया जाए. जीएसटी सुधार अभियान पर भी राजनीति हो रही है.
कांग्रेस जैसा कह रही है कि उनके वोट अधिकार यात्रा में लगाए आरोपों से ध्यान भटकाने के लिए यह कदम उठाया गया है. उनका यह भी आरोप है कि बिहार चुनाव में जनमत को प्रभावित करने के लिए राहत का यह कदम सरकार ने उठाया है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि, सरकार हर कदम जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए ही उठाती है. विपक्षी आरोप भी इसी लक्ष्य के साथ लगाते हैं कि, उनके पक्ष में जनमत बने. टैक्स के ऐतिहासिक सुधारों का बिहार के चुनाव में प्रभाव पड़ेगा. विपक्ष विशेष कर राहुल गांधी इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी के साथ राजनीतिक रूप से सफल नहीं हो पाते क्योंकि उनका हर कदम तात्कालिक होता है. इसका दीर्घकाल में क्या प्रभाव होगा, इस पर उनका कोई चिंतन नहीं होता.
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कांग्रेस के हर एक्शन के दूरगामी प्रभाव को देखते हुए अपने एक्शन को निर्धारित करने में कोई गलती नहीं करते. कांग्रेस जब जीएसटी लागू किया गया था, तब भी उसने इसका राजनीतिक विरोध किया था. कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस सरकार द्वारा लाये जा रहे जीएसटी कानून का विरोध किया था. फेक्चुअली यह करेक्ट हो सकता है लेकिन आज नरेंद्र मोदी जीएसटी के जनक के रूप में देश में पहचाने जा रहे हैं.
राजनीति में हर मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष की भाषा अलग होती है. मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के जीएसटी पर विचार अलग रहे होंगे लेकिन प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने इसे अपना मुख्य एजेंडा बना लिया. उस पर ईमानदारी से काम किया. तमाम बाधाओं को पार करते हुए आज जीएसटी सेकंड जेनरेशन तक ले जाने में सफल हुए हैं.
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही हैकि, वह व्यक्तिवादी विरोध करती है. जीएसटी को कांग्रेस गब्बर सिंह टैक्स कहती रही है. जिस टैक्स को कांग्रेस गब्बर सिंह टैक्स कहती रही है उसमें राहत मिलने पर उसका वेलकम ही करना चाहिए. लेकिन विरोधी प्रतिक्रिया आना यही बताता है कि, इस पर कांग्रेस दिगभ्रमित है.
देश में टैक्स प्रणाली में व्यापक सुधार की जरूरत है. मोदी सरकार इस दिशा में काम कर रही है. आयकर नियमों में सुधार किया गया है. अधिक टैक्स के कारण देश में पूंजी निवेश प्रभावित होता है. दुनिया के कई देश हैं, जिन्हें टैक्स हेवन के रूप में माना जाता है. वहां बिना किसी विशेष प्रयास के ही दुनिया के निवेशक निवेश करते हैं.
टैक्स प्रणाली ही राजनीति का मुख्य मुद्दा होना चाहिए. लेकिन भारत में इसका चुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. कृषि क्षेत्र अभी टैक्स मुक्त है. टैक्स के क्षेत्र में नए सुधारो की जरूरत है, जिसमें मध्यम वर्ग को भी टैक्स से मुक्त किया जा सके.
भारत में विकास दर मजबूत है. मुद्रा स्फीति कम है और रुपया स्थिर है. आर्थिक सुधारो के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति बढ़ाना जरूरी है. गयारह साल पहले मोदी को ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी, जो बहुत ही खराब स्थिति में थी. विकास धीमा था. मुद्रास्फीति अधिक थी. रुपया अस्थिर था. राजकोषीय और चालू खाता घाटा असहनीय रूप से उच्च था. खराब ऋण की समस्या निवेशकों का विश्वास खो रही थी. बहुत भयावह मुद्रा स्फीति की संभावना दिखाई दे रही थी. इन सारी परिस्थितियों में आज न केवल सुधार हुआ है बल्कि बेहतरी आई है.
इतिहास में किसी भी अन्य नेता की तुलना में प्रधानमंत्री मोदी के पास ज्यादा राजनीतिक पूंजी है. मोदीनामिक्स से देश की इकोनॉमी संतोषप्रद ढंग से आगे बढ़ रही है. अर्थव्यवस्था के मामलों को राजनीति से दूर रखा जाएगा तो सुधारो की गति तेजी से बढ़ेगी.