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गेम चेंजर स्कीम में बढ़ती रहेगी राशि

सार

    सब चुनावी वादे तो पूरे नहीं होते लेकिन लाड़ली बहनों से किये वायदे से मुकरना किसी सरकार के बस की बात नहीं है. मध्य प्रदेश में लाड़ली बहनों की राशि तीसरी बार बढ़ी  है. एक हजार से शुरू होकर पहले 1250/- रूपये और अब बढ़कर ₹1500 प्रतिमाह तक पहुँच गयी है..!!

janmat

विस्तार

    यह बढ़ोतरी यही नहीं रुकेगी अगले चुनाव के पहले सत्ता में रहना है तो पिछला चुनावी वादा निभाना होगा. तीसरी बार बढ़ी हुई राशि की पहली किस्त सीएम मोहन यादव ने बहनों के खातों में ट्रांसफर कर दी है.

  अभी तो वायदा अधूरा है. फिर भी सरकार कह रही है, जो कहा, वह किया. वायदा तो तीन हजार रूपये प्रति माह का किया गया था, लेकिन अभी तो आधा ही मिला है. यह बात जरूर है कि, राशि बढ़ाने की घोषणा वर्तमान सीएम ने की और उसे निभाया है, इसलिए अपनी बात पूरी करने के लिए क्रेडिट जरूर लिया जा सकता है.

    लाड़ली बहनों की राशि में बढ़ोतरी को भी अभ्युदय मध्यप्रदेश कहा जा रहा है. इस योजना के उदय का क्रेडिट तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जाता है. योजना उन्होंने लॉन्च की. यह चुनाव के पहले की है और पार्टी की जीत में इस योजना का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है.

    महिलाओं की योजनाओं को लेकर राष्ट्रीय ट्रेंड मध्य प्रदेश से ही शुरू हुआ था. लाड़ली लक्ष्मी योजना के बाद मध्यप्रदेश में ही लाड़ली बहना योजना लांच की गयी थी. उसके बाद तो फिर कई राज्यों में इसको अपनाया गया. एमपी के बाद जिन भी राज्यों में चुनाव हुआ वहां महिलाओं की योजना ने परिणामों को दिशा दी. बिहार में भी महिला रोजगार योजना गेम चेंजर साबित होने जा रही है. ऐसा एग्जिट पोल और ओपिनियन इशारा कर रहे हैं.

    महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ऐसी योजनाएं कारगर हो सकती हैं लेकिन राज्य की आर्थिक स्थिति के सशक्तिकरण में इससे बड़ी बाधा पहुंचती है. चुनावी वादों का बड़ा शोर होता है लेकिन सरकार का जोर भविष्य की रणनीति पर ज्यादा होता है. लाड़ली बहना की राशि तो बढ़ रही है, लेकिन गेहूं और धान पर किसानों को बोनस देने का वादा पूरा होना बाकी है. अब तो राज्य सरकार सरकारी खरीद में भी अक्षमता बता रही है.

    उचित मूल्य पर गेहूं और धान खरीदने में राज्य सरकार के असमर्थता के बारे में सीएम मोहन यादव ने केन्द्रीय मंत्री को पत्र भेजा है. जो वायदा किया था तब राज्य के खजाने के बारे में सोचा भी नहीं गया  लेकिन अब उसको पूरा करते समय खज़ाने का ध्यान आ रहा है.

    भावांतर योजना लागू करके सोयाबीन की कीमत किसानों को देने की पहल सरकार ने की है. इससे ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार पर उचित मूल्य पर खरीदी का मामला डालने की कितनी भी कोशिश की जाए लेकिन राज्य सरकार किसानों से किया वादा पूरा करने से पीछे हट नहीं पाएगी. सार संक्षेप यह है कि चुनावी वादों को पूर्ति के अर्थ विज्ञान से नहीं जोड़ा जाता.

      राज्यों की अर्थव्यवस्था कर्ज़ों पर आधारित हो गई है. फिर भी चुनावी वायदे करते समय कोई पीछे नहीं रहना चाहता. हर आने वाले चुनाव में वायदे नए और भारी हो जाते हैं. बिहार के चुनाव में तो एक गठबंधन ने राज्य के हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा कर लिया है. दूसरा गठबंधन भी ज्यादा पीछे नहीं है. उसने भी एक करोड़ नौकरी और रोजगार का वादा किया है.

    लाड़ली बहना बीजेपी की सत्ता के लिए जरूरी बन गई है. यह अकेली ऐसी योजना है, जिस पर अगर ईमानदारी से सरकार काम करती रही और चुनाव के पहले वादे के मुताबिक ₹3000 प्रतिमाह देना प्रारंभ कर दिया तो फिर बीजेपी की सरकार को चुनावी शिकस्त देना आसान नहीं होगा.

    भले ही इस योजना को लागू करने का क्रेडिट शिवराज सिंह को जाता हो लेकिन सीएम  मोहन यादव ने इसको क्रियान्वित करने में राजनीतिक ईमानदारी दिखाई है. उन्होंने ऐसा समझ लिया है कि, इसी योजना ने पार्टी को जिताया था और भविष्य के चुनाव में भी यह बहुत बड़ा सहारा बन सकती है. 

    वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के बाद भी अगर राज्य सरकार इस योजना में वृद्धि को इतनी प्राथमिकता दे रही है तो यह चुनावी जीत का इन्वेस्टमेंट ही कहा जाएगा.

    अगले चुनाव के पहले नारी वंदन अधिनियम भी लाड़ली बहना योजना को सपोर्ट कर सकता है. 

     मध्य प्रदेश ने वूमेन लीड डेवलपमेंट की  दिशा पकड़ ली है, अब कोई भी पॉलिटिक्स इसको बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर सकती. आधी आबादी की लगभग, आधी आबादी को इस योजना में हर महीने राशि मिलती है. गरीब परिवार में इतनी बड़ी राशि बहुत मायने रखती है. इससे महिलाओं का सशक्तिकरण स्वाभाविक है. 

    चुनावी वायदे राज्यों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं. मध्य प्रदेश सरकार गेहूं और धान की उचित मूल्य पर खरीदी से बचने की कोशिश इसीलिए कर रही है क्योंकि खरीदी एजेंसी भारी कर्ज में आ गई है. ऐसा बताया जा रहा है कि, नागरिक आपूर्ति निगम खरीदी के चलते लगभग सतत्तर हजार करोड़ के कर्जे में आ गया है.

    इस का इतना ब्याज चुकाना पड़ रहा है कि अब संस्था का सर्वाइवल ही संकट में आ गया है. सरकार की जो संस्थाएं कभी आर्थिक रूप से सक्षम हुआ करती थी, वह सब चरमराने की हालत में पहुंच चुकी हैं.  

    अभ्युदय का डिक्शनरी मतलब उन्नति, संपन्नता, सौभाग्य, ऊंचा उठना, सफलता, समृद्धि, उत्तरोत्तर वृद्धि और विकास बताया गया है. यह सब सतत प्रक्रिया है. इसको किसी एक व्यक्ति से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. राज्य की उन्नति स्थापना के समय से ही अब तक के प्रयासों से जुड़ी है. राज्य की प्रगति और विकास को एक व्यक्ति के अभ्युदय से जोड़ना सारगर्भित नहीं हो सकता.

    लाड़ली बहना स्कीम शिवराज का ब्रेन चाइल्ड है लेकिन यह बीजेपी का सत्ता में रहने का मंत्र बन गया है. इसके क्रियान्वयन पर पूरी नजर रखने की जरूरत है. किसी भी पात्र लाड़ली बहन को राशि नहीं मिलती तो उसे भी उसमें शामिल किया जाए. यह चुनावी निवेश है और आज का निवेश कल का फायदा बनेगा.