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जिस देश का बचपन कुपोषित हो....!

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 20 Apr

सार

वैश्विक भूख सूचकांक के ताजे आंकड़ों के अनुसार भारत में भूख की समस्या गंभीर है| उचित पोषण नहीं मिलने के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं|

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विस्तार

एक फ़िल्मी गाना केंद्र सरकार की कुछ समय पूर्व जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट देख कर याद आ रहा है “जिस देश का बचपन भूखा हो उसकी जवानी क्या होगी ?” सरकार दावा आत्म निर्भर भारत का है रिपोर्ट के संकेत इससे उलट और डरावने हैं| जिस देश के २६ प्रतिशत बच्चे तथा ३० प्रतिशत से अधिक बच्चियां कुपोषित हो उसका भविष्य कैसा होगा इसका ही अनुमान डराने वाला है | 

यह हमारी व्यवस्था पर बदनुमा दाग ही है कि खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भारत उन देशों की सूची में है, जहां आबादी के एक हिस्से को पेट भर भोजन नहीं मिल पाता है| देश के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए रेखांकित किया है कि भूख और कुपोषण परस्पर संबद्ध हैं तथा यह सरकार की जिम्मेदारी है कि जिन्हें भोजन मयस्सर नहीं है, उन्हें खाना मुहैया कराये|

इसके लिए अदालत ने ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक रसोई की शृंखला बढ़ाने की जरूरत को रेखांकित किया है| केंद्र सरकार की ओर से अदालत को बताया गया था कि देश में भूख से कोई मौत नहीं हुई है, पर खंडपीठ ने विभिन्न सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए इसे मानने से इनकार कर दिया|हकीकत में यह जानकारी राज्य सरकारों द्वारा दी गयी सूचना पर आधारित थी| 

इससे भी गंभीर और बेहद चिंताजनक बात यह है कि कई मामलों में राज्य सरकारें अपनी जवाबदेही से बचने के लिए सही तथ्य नहीं बताती हैं| इस रवैये में सुधार की जरूरत है| केंद्र सरकार को भी ऐसी सूचनाओं की पुष्टि कर लेनी चाहिए| देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि चुनाव के समय राजनीतिक दल बड़े-बड़े लोकलुभावन वादे करते हैं| कई राज्यों में सामुदायिक रसोई योजना भी लागू है| ऐसे में पार्टियों को भोजन मुहैया कराने की योजनाओं के साथ अपने वादों को जोड़ना चाहिए| वैसे तो सरकारें इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में अरुचि दिखाती स्पष्ट नजर आती हैं | यहाँ सवाल देश के भविष्य का है , सबको गंभीर होना होगा|

वैश्विक भूख सूचकांक के ताजे आंकड़ों के अनुसार भारत में भूख की समस्या गंभीर है| उचित पोषण नहीं मिलने के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं| कहने को शिशु मृत्यु दर में कमी आती जा रही है, पर कुपोषित बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी चिंताजनक है| कुछ समय पहले प्रकाशित केंद्र सरकार की राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया गया है कि २६ प्रतिशत बच्चे तथा ३० प्रतिशत से अधिक बच्चियां कुपोषित हैं, ये आंकड़े सरकारी हैं,वास्तविकता इससे अधिक बड़ी और गंभीर है |

यूँ तो वंचित वर्गों के लिए सामुदायिक भोजनालय खोलने के लिए राज्य सरकारों ने सहमति दी है, पर उनकी मांग है कि केंद्र सरकार खाद्यान्न के वर्तमान आवंटन में दो प्रतिशत की वृद्धि करे तथा रसोई चलाने के लिए आवश्यक मानव संसाधन के लिए वित्तीय प्रावधान करे| केंद्र सरकार खाद्यान्न का आवंटन बढ़ाने के लिए तैयार है, पर वित्तीय सहयोग देने में उसने असमर्थता जतायी है| वैसे तो केंद्र सरकार अपने स्तर पर १३१ सामाजिक कल्याण योजनाएं चला रही है तथा अनेक कार्यक्रमों के तहत लाभार्थियों को धन भी हस्तांतरित हुआ है, परन्तु यह धन हितग्राहियों को कम बिचौलियों को ज्यादा मिला है |

ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार वित्तीय सहयोग के मुद्दे और पारदर्शिता के मुद्दे पर गंभीरता से विमर्श करे तथा वैकल्पिक उपायों से इस समस्या का हल किया जाये जो किया जा सकता है| सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार राज्य सरकारों को भूख, भूखमरी और कुपोषण से संबंधित सभी और सही सूचनाएं अदालत को देनी चाहिए| केंद्र और राज्य सरकारों को अपने-अपने स्तर पर प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना, राष्ट्रीय पोषण मिशन तथा अन्य कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से लागू करने को प्राथमिकता बनाना चाहिए तथा सुनिश्चित करना चाहिए कि कोरोना दुष्काल की तीसरी लहर में ८०- ९० करोड़ गरीबों को दिये जा रहे मुफ्त राशन का वितरण हो ठीक से हो, जिससे देश के बच्चों का पोषण सूचकांक सुधरे |