एमपी पुलिस का चेहरा डराने वाला है. कहीं पुलिस खुद पिट रही है, तो कहीं बेगुनाहों को मौत के घाट उतार रही है. कहीं सुरक्षा देने के बदले खुद लूटने में लगी है, तो कहीं उसे अपनी जान बचाना भी मुश्किल हो रहा है..!!
अनुशासित पुलिस डेमोक्रेटिक हो गई है. उसकी सेवा सामने वाले की पावर से तय होती है. अगर कोई निहत्था है तो उसको मौत के घाट उतार दिया जाएगा. और कोई पावरफुल है तो उसकी चाकरी की जाएगी.
राजधानी भोपाल में एक युवा इंजीनियर को पीट-पीटकर मौत के घाट उतारने वाली पुलिस का लक्ष्य देश भक्ति और देश सेवा है. देश मतलब यहां के लोग और भक्ति मतलब लोगों के प्रति सद्भावना, उनकी सुरक्षा होती है. ईमानदारी से ड्यूटी ही सबसे बड़ी सेवा है. लगता है पुलिस की भक्ति और सेवा बदल गई है. समाज को भय मुक्त करने वाली पुलिस लोगों को भय ग्रस्त कर रही है. जिस घर के इकलौते चिराग को पुलिस ने बुझा दिया है उसके लिए तो एमपी पुलिस यमराज पुलिस हो गई है. हिरासत में मौतें पुलिस का डरावना चेहरा पेश कर रही हैं.
आम आदमी वैसे भी पुलिस से डरता है. पुलिस पर उसका कभी भी भरोसा नहीं होता. बहुत मजबूरी में ही पुलिस के पास जाता है. पुलिस थानों का जो रवैया होता है, वह निराशा को और बढ़ाता है. पुलिस में एफआईआर लिखवाना कलाबाजी से कम नहीं है. इंजीनियर की हत्या की घटना में भी एफआईआर में लीपा-पोती की कोशिश की गई. जब मारपीट का वीडियो वायरल हो गया तब फिर दोषी पुलिसकर्मियों पर एफआईआर की गई, उनकी गिरफ्तारी हुई.
जब भी कोई ऐसी वीभत्स घटना होती है तो जैसे पहले से एसओपी तैयार रहती है. पुलिसकर्मियों का सस्पेंशन हो जाता है. लाइन अटैच कर दिए जाते हैं. हर दिन पूरे प्रदेश में कहीं ना कहीं पुलिस कर्मियों के लाइन अटैच और सस्पेंशन की घटनाएं होती रहती हैं. लेकिन मीडिया में केवल यही सामने आता है, उनकी बहाली भी हो जाती है. यह पुलिस की आंतरिक कार्यप्रणाली बन गई है. पुलिस की आवश्यकता समाज और नागरिकों की सुरक्षा के लिए उनके पास पावर है. हथियार हैं, वर्दी की ताकत है.
मध्य प्रदेश की पुलिस संवेदनशीलता के मामले में दूसरे राज्य की पुलिस से बेहतर मानी जाती है. इस तरह की घटनाएं उसकी छवि धूमिल करती हैं. पुलिस के आचरण के खिलाफ़ शिकायत के लिए केवल पुलिस की आंतरिक कार्यप्रणाली ही उपलब्ध है. पुलिस से शिकायत के निवारण के लिए एक स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है. मध्य प्रदेश में पिछले दिन प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में जिलों में समिति का गठन इसके लिए किया गया है. यह समिति कभी भी कारगर नहीं हो सकती.
राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति निरंतर सवालों के घेरे में रहती है. इसकी जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की होती है. लेकिन पुलिस प्रशासन इस जिम्मेदारी को निभाने की बजाय दूसरी सेवा में इतना व्यस्त रहता है, कि उसको शायद समय ही नहीं मिलता. राज्य में पुलिस पर हमले की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. हर साल ऐसी घटनाएं होती हैं, जब पुलिसकर्मी घायल होते हैं. यहां तक कि उनकी हत्या हो जाती है. अभी हाल ही में पन्ना जिले में जांच पर गई पुलिस पर हमला किया गया.
ये हमले कोई सामान्य घटना नहीं हैं, इसके पीछे पुलिस में बढ़ती अनुशासनहीनता जिम्मेदार है. तो आम जनमानस में पुलिस की गिरती छवि भी इसका कारण मानी जा सकती है. पुलिस का अनुशासन तार-तार दिखाई पड़ता है. पुलिस जिस तरह से राजनीति के सामने विवश दिखाई पड़ती है, उससे भी पुलिस की प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही है. राजनीति में पुलिस की निर्भरता दिखती है. उसके कारण पुलिस के प्रति नाराजगी भी बढ़ती है.
पुलिस सुधार के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने कितनी बार निर्देश दिए हैं. हर बार राजनीतिक सरकारें कानून प्रक्रिया के नाम पर पुलिस पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश करते हैं. पुलिस भी इन्हीं प्रक्रियाओं को अपने लिए सुविधाजनक और समृद्धि कारक मानती रही है. राजनीति के आगे पुलिस प्रशासन वैसा ही बेबस महसूस करता है जैसा कि सिविल प्रशासन.
पुलिस सुधार के नाम पर डीजीपी का सेवा काल भले ही दो साल फिक्स कर दिया गया है, लेकिन इसका प्रभाव पुलिस प्रशासन में सुधार लाने में सफल साबित नहीं हो पाया है. पूरा पुलिस प्रशासन राजनीतिक तंत्र की सेवा सम्मान में ही अपना समय इसलिए बिताता है, कि इसी में उनकी बेहतर सेवा शर्तें होती हैं. करप्शन भी पुलिस प्रशासन को जनमानस में खलनायक के रूप में स्थापित कर रहा है.
पुलिस आधुनिक हो रही है. लेकिन उसका आचरण सामान्य शिष्टाचार की सीमाएं तोड़ रहा है. पुलिस की जांच प्रणाली निष्पक्षता पर आधारित नहीं रह गई है. पुलिस पर सिवनी में हवाला में लूट की घटना ने मध्य प्रदेश पुलिस प्रशासन की छवि को दागदार बनाया है. इन सारी घटनाओं को अकेली घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए. बल्कि पुलिस प्रशासन में इस तरह की पनपी मानसिकता के रूप में देखा जाना चाहिए. यह मानसिकता किसी एक व्यक्ति की नहीं है. जब यह पूरा तंत्र इस मानसिकता पर काम करने लगता है तो फिर कोई भी अनुशासित फोर्स अपना महत्व खोने लगती है.
पुलिस ऐसी व्यवस्था है जिसके बिना समाज चल नहीं सकता है. दूसरी कोई सेवा तो कुछ समय नहीं भी उपलब्ध हो तो काम चल सकता है लेकिन पुलिस की जरूरत हर समय समाज में बनी रहती है. पुलिस सुधार समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है. पुलिस की सेवा शर्तें भी सुधरनी चाहिए. पुलिस का आचरण भी बदलना चाहिए. पुलिस कस्टडी में या पुलिस की निर्दयता से किसी की भी हत्या से बड़ा कोई दूसरा पाप नहीं हो सकता. जो सुरक्षा की गारंटी हैं, वहीं मौत देने लगें तो फिर पुलिस यमराज की सहयोगी बन जाती है.
ना पिटो और ना ही पीटो बल्कि सम्मान से जियो और जीने दो. यह पुलिस का मोटो होना चाहिए. पुलिस नौकरी से ज्यादा सेवा का फील्ड है. पुलिस की ताकत का उपयोग समाज हित में ही किया जाए.
अगर पुलिस ही इसका उपयोग अपने हित में करने लगेगी तो फिर वह वक्त दूर नहीं होगा, जब पुलिस को अपनी सुरक्षा की चिंता करनी पड़ेगी.