• India
  • Fri , Oct , 24 , 2025
  • Last Update 08:44:PM
  • 29℃ Bhopal, India

बीजेपी में निर्विवाद, कांग्रेस में परिवारवाद 

सार

बीजेपी के नए अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने अपनी टीम बना ली है. पार्टी में ना कोई असंतोष दिख रहा है. ना नाराजगी में कोई इस्तीफा दे रहा है. जब जीतू पटवारी की कार्यकारिणी बनी थी तो यह सब हुआ था..!!

janmat

विस्तार

    उनकी टीम पर परिवारवाद के आरोप लगे थे. जीतू की कार्यकारिणी इतनी जम्बो थी कि उसको टीम नहीं, गुटों का गठबंधन कहा गया था. हेमंत खंडेलवाल की नई टीम में उनकी कोई पसंद नहीं कहीं जा सकती. सब संगठन की पसंद है. बड़े नेताओं की पसंद है. एक्टिव चेहरों को महत्व दिया गया है. जिनको नई टीम में जगह नहीं मिली है, उन्हें भी ऐसा आभास नहीं दिया गया है कि उन्हें हटाया गया है.

    कैडर बेस पार्टी का चेहरा नई कार्यकारिणी में देखा जा सकता है. पुराने अध्यक्ष की टीम से ना तो पूरी तरह से परहेज किया गया है और ना ही सभी को रिपीट किया गया है. हेमंत खंडेलवाल को अध्यक्ष बनाने में भले ही मुख्यमंत्री मोहन यादव की भूमिका मानी जा रही थी, लेकिन नए अध्यक्ष ने पार्टी के सभी बड़े नेताओं के साथ समन्वय कायम रखा है. उनके पिता लंबे समय तक पार्टी में कोषाध्यक्ष रहे. कोषाध्यक्ष मतलब विश्वसनीयता का संगठन का पसंदीदा चेहरा. हेमंत खंडेलवाल भी कार्यकारिणी के गठन में इस विश्वसनीयता और सबके साथ समन्वय के अपने आचरण को प्रतिपादित किया है. बीजेपी और कांग्रेस संगठन में यही अंतर है. वहां पार्टी अध्यक्ष से चलती है और बीजेपी में अध्यक्ष संगठन के अनुसार चलता है. 

    बीजेपी में संगठन महामंत्री की राष्ट्रीय और राज्यों में व्यवस्था संघ नियंत्रित है. संगठन महामंत्री संघ से ही आते हैं. अध्यक्ष केवल एक चेहरा और संगठन का प्रतीक होता है. संगठन के सारे सूत्र संगठन महामंत्री के जरिए संचालित होते हैं. इसमें फेरबदल अध्यक्ष की मर्जी से नहीं होता. संगठन महामंत्री में फेर-बदल संघ की इच्छा से होता है. जब तक संगठन मंत्री पद पर काम करता है, इसका मतलब है कि वह संघ की इच्छा है. भाजपा संगठन में संघ की इच्छा के विरुद्ध कोई भी आवाज असंभव मानी जाती है. इसीलिए जब भी कोई टीम गठित की जाती है, तब विवाद कम ही होते हैं.

    कांग्रेस में टीम गठन में अध्यक्ष की कुछ सीमा तक निर्णायक भूमिका हो सकती है, लेकिन बीजेपी में यह भूमिका संगठन की होती है. अध्यक्ष अपनी मर्जी से किसी भी व्यक्ति को टीम में शामिल नहीं कर सकता. अध्यक्ष केवल सुझाव दे सकता है, जिसे संगठन की परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. अगर उसे उपयुक्त समझा जाएगा, तभी टीम में जगह मिलेगी. अध्यक्ष ने नाम दिया है, इसीलिए उसे टीम में शामिल कर लिया जाएगा, यह केवल कांग्रेस में संभव हो सकता है.

    जीतू पटवारी अध्यक्ष बनने के दस महीने बाद अपनी टीम बनाने में सफल हुए. हेमंत खंडेलवाल ने टीम के गठन में अपने पूर्ववर्ती अध्यक्षों का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है. उन्होंने चार महीने के भीतर अपनी टीम गठित कर ली है. इसके पहले के अध्यक्ष इतने कम समय में अपनी टीम गठित नहीं कर पाए थे. इससे एक संकेत साफ है, कि नए अध्यक्ष ने पार्टी के सभी बड़े नेताओं को विश्वास में लेकर टीम गठित की है. उनका एजेंडा संगठन का एजेंडा है. उनका व्यक्तित्व भी ऐसा नहीं है, कि भविष्य की राजनीति की जमावट में समय लगाया जाए.

    कांग्रेस में तो एक बार जो अध्यक्ष पद पर बैठ जाता है वह पहले दिन से ही सीएम उम्मीदवार बन जाता है. वैसे कांग्रेस का इतिहास यही बताता है कि वहां चुनाव के पहले नया अध्यक्ष बनाया जाता है. पिछले चुनाव के पहले कमलनाथ को मध्य प्रदेश सौंपा गया था. उसके पहले भी हर चुनाव के पहले नए अध्यक्ष को मौका मिलता रहा है. कांग्रेस में अध्यक्ष ही फंड मैनेजमेंट और चुनाव मैनेजमेंट का जिम्मेदार होता है, जबकि भाजपा में संगठन की व्यवस्था काम करती है.

    वहां कोई भी अध्यक्ष केवल अध्यक्ष बनने से सीएम पद का आकांक्षी नहीं बन जाता है. बीजेपी में मुख्यमंत्री के चयन में जो भी प्रक्रिया काम करती है, उसमें नया नेतृत्व विकसित करने की शैली दिखाई पड़ती है. उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के चयन के समय यह सब न्यू लीडरशिप के रूप में सामने आए थे. 

    हेमंत खंडेलवाल की नई टीम पार्टी संविधान के मुताबिक गठित की गई है, जबकि कांग्रेस में टीम में विभिन्न पदों की संख्या गुटों के नेताओं के दबाव के हिसाब से बढ़ा दी जाती है. जिन चेहरों को हेमंत खंडेलवाल ने टीम में शामिल किया है, उनके परफॉर्मेंस पहले से ही परखे हुए हैं. बीजेपी में कांग्रेस जैसा पार्टी नेताओं के स्थापित गुट नहीं होते हैं, लेकिन नेताओं से जुड़े कार्यकर्ताओं के चेहरे पहचाने जा सकते हैं. इसी आधार पर नई टीम को आंका जा रहा है.

    टीम के चेहरे परफॉर्मेंस के आधार पर सफल या असफल कहे जा सकते हैं. कैडर बेस पार्टी कैडर ओरिएंटेड होती है. तमाम खामियों के बावजूद बीजेपी दूसरे राजनीतिक दलों से नए नेतृत्व विकसित करने के मामले में अलग दिखाई पड़ती है. एक परिवार के कई नेता पार्टी में सक्रिय हो सकते हैं. लेकिन दूसरे दलों जैसा एक ही परिवार के नियंत्रण में बीजेपी किसी भी राज्य में नहीं देखी जा सकती है. 

    नई टीम अगली चुनावी विसात पर काम करेगी. पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन के दौर में पुराने और नए नेताओं के बीच संतुलन महत्वपूर्ण साबित होगा. अध्यक्ष स्वयं विधायक हैं. अगला चुनाव भी लड़ेंगे. नई टीम संगठन केंद्रित होना जरूरी है. राजनीतिक दलों में विरोधियों से ज्यादा अंतर्विरोध नुकसानदेह साबित होते हैं.

    नई टीम को कार्यकर्ताओं को जोड़ने पर ध्यान रखना होगा. कैडर की कैडर द्वारा कैडर के लिए रणनीति ही बीजेपी का भविष्य तय करेगी.