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डेमोक्रेटिक प्रोसेस में घट रही मुसलमानों की भागीदारी

सार

 बीजेपी तो नहीं हारी लेकिन मुस्लिम समाज राजनीतिक लड़ाई हार गया. मुस्लिम पापुलेशन के मुताबिक किसी भी राज्य में उनकी समानुपातिक भागीदारी नहीं है. बीजेपी तो मुस्लिम प्रत्याशी उतारती नहीं है लेकिन जिन दलों का मुस्लिम वोट बैंक है, वहां भी प्रत्याशियों के उतारने में लगातार कमी आ रही है. बिहार चुनाव में राजद, कांग्रेस और जेडीयू ने पिछले चुनाव की तुलना में बहुत कम मुसलमान को प्रत्याशी बनाया है. 

janmat

विस्तार

      राजनीतिक इस्लाम मतलब बीजेपी को हराना. इस पर एक मुस्लिम स्कॉलर का कथन महत्वपूर्ण है कि, मुस्लिम समाज बीजेपी को हराते हराते खुद हार गया है.

   बीजेपी तो नहीं हारी लेकिन मुस्लिम समाज राजनीतिक लड़ाई हार गया. मुस्लिम पापुलेशन के मुताबिक किसी भी राज्य में उनकी समानुपातिक भागीदारी नहीं है. बीजेपी तो मुस्लिम प्रत्याशी उतारती नहीं है लेकिन जिन दलों का मुस्लिम वोट बैंक है, वहां भी प्रत्याशियों के उतारने में लगातार कमी आ रही है. बिहार चुनाव में राजद, कांग्रेस और जेडीयू ने पिछले चुनाव की तुलना में बहुत कम मुसलमान को प्रत्याशी बनाया है. 

 यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि,  राजनीतिक इस्लाम ने हिंदू आस्था को कमजोर किया है. राजनीतिक इस्लाम या इस्लामवाद एक ऐसा विचार है, जिसमें इस्लाम को राजनीतिक पहचान और कार्रवाई का स्रोत माना जाता है. 

  इसमें इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार राज्य और समाज के गठन की वकालत की जाती है. भारत में इसे वोट बैंक और तुष्टीकरण के रूप में भी देखा जाता है. लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया में इस अवधारणा ने देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. देश में दो ही राजनीतिक विचारधारा है. दल कितने भी हों लेकिन विचारधारा के रूप में हिंदुत्व की विचारधारा का प्रतिनिधित्व बीजेपी कर रही है तो कांग्रेस सहित बाकी सारे दल राजनीतिक इस्लाम कोअपनी विचारधारा का महत्वपूर्ण भाग मानते हैं.

  पिछले एक दशक से देश की राजनीति इन्हीं दो धुरियों  के बीच विभाजित है. किसी भी चुनाव में किसी भी सीट पर मुसलमानों के लिए दल से महत्वपूर्ण बीजेपी को हराने वाला प्रत्याशी होता है. देश में सक्रिय रूप से केवल असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ही ऐसा दल है जो मुसलमानों के लिए गठित और संघर्ष के लिए जाना जाता है.

   मुस्लिम समाज द्वारा बीजेपी को अपना दुश्मन मानने के कारण उनका बहुत राजनीतिक नुकसान दिखाई पड़ता है. इस समाज से कोई भी बड़ा राजनेता किसी भी राजनीतिक दल में स्थापित नहीं हो पाया. वोट बैंक के रूप में भले ही इनका उपयोग किया जाता है लेकिन ध्रुवीकरण के डर के कारण अब तो सेक्यूलर दल भी सीमित संख्या में हीं मुस्लिम प्रत्याशियों को मौका दे रहे हैं.

  बिहार का ही उदाहरण दिया जाए तो वहां मुस्लिम पापुलेशन लगभग 17% है. राजद, कांग्रेस महागठबंधन में 9% आबादी वाले समूह के नेता को उपमुख्यमंत्री के रूप में उम्मीदवार घोषित किया लेकिन किसी भी मुस्लिम को उपमुख्यमंत्री के रूप में उम्मीदवार बनाना उचित नहीं समझा गया. इसका कारण यह है कि अगर ऐसा किया जाता तो हिंदुओं का ध्रुवीकरण हो जाता और महागठबंधन को लाभ होने की बजाय राजनीतिक नुकसान हो जाता.

   प्रत्याशियों के चयन में भी यही आधार होता है. राजनीतिक इस्लाम बीजेपी को हराना चाहता है लेकिन उनकी यही कट्टरता दूसरे संप्रदाय में उनके समर्थन को मजबूत करती है. अगर राजनीतिक भागीदारी के रूप में मुस्लिम समाज की भूमिका का आंकलन किया जाएगा तो जो भी सेकुलर दल हैं उनमें भी इस समाज के नेता मुख्य भूमिका में नहीं देखे जाएंगे.

    जो भी नेता सक्रिय दिखेंगे वह दोयम दर्ज के ही होंगे. कई वर्षों से देश के किसी भी राज्य में मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं हो सका है. मध्य प्रदेश जैसे राज्य में दशकों से चल रही भाजपा सरकार में कोई मुस्लिम मंत्री भी नहीं रहा है. वर्तमान में भी मध्य प्रदेश सरकार में मुस्लिम रिप्रेजेंटेशन नहीं है.

   कांग्रेस और बीजेपी का राजनीतिक द्वंद ही देश की पहचान से जुड़ा हुआ है. बीजेपी भारतीयता की पहचान को आगे बढाना चाहती है तो कांग्रेस अपने वोट बैंक मुस्लिम पहचान को पर्सनल कानूनों के जरिये संविधान में शामिल करती है. बीजेपी ने मुस्लिम समाज के लिए जो भी सुधार किए हैं, चाहे वह तीन तलाक समाप्त करने का मामला हो, वक्फ़ कानून में संशोधन, सीएए या एनआरसी हो, सब प्रयासों में पर्सनल कानूनों के बजाय भारत का कानून लागू करने का प्रयास दिखाई पड़ता है. समान नागरिक संहिता का विषय भी बीजेपी का मुख्य एजेंडा है.

    योगी आदित्यनाथ ने हलाल की व्यवस्था पर भी प्रहार किया. उनका कहना है कि, उत्तर प्रदेश में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. उन्होंने लोगों से अपील की है कि ऐसा कोई भी प्रोडक्ट नहीं खरीदें जिसमें हलाल का उल्लेख किया गया. उनका कहना है कि यह एक धार्मिक षड्यंत्र है. इससे लगभग पच्चीस हजार करोड़ का धन प्रबंधन राजनीतिक इस्लाम के लिए किया जाता है.

      इसका उपयोग धर्मांतरण, लव जिहाद और आतंकवाद के लिए किया जाता है. व्यापार में किसी धर्म की मान्यता का सर्टिफिकेशन बिना किसी कानूनी प्रोटेक्शन के कैसे चलाया जा सकता है. एक तरफ जब होटल और ढावों की असली पहचान काँवड़ यात्रा के समय बताने का प्रयास किया जाता है तब उसकी इसलिए आलोचना होती है कि, व्यापार में किसी भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. फिर हलाल धार्मिक विचार बिना कानून के कैसे क्रियान्वित किया जा सकता है. 

  

     मुस्लिम समाज बीजेपी को हराने के लिए कट्टर है तो उसके विपरीत दूसरे समाज उसे जिताने के लिए कट्टर होते जा रहे हैं. इस राजनीति के कारण बीजेपी को हराने का मुस्लिम समाज का लक्ष्य पूरा होता दिखाई नहीं पड़ रहा है. हारने की बजाय बीजेपी का विस्तार होता जा रहा है. यह विस्तार राजनीतिक इस्लाम को अपने नजरिये  पुनर्विचार करने का मौका देता है.

  मुस्लिम आज जिस भी दल का समर्थन कर रहे हैं, लगभग वह सारे दल हिंदुओं के नेतृत्व में ही चल रहे हैं. 

जब हिंदू व्यक्तित्व के दलों में ही अपनी भूमिका तलाशनी  है तो फिर क्यों एक तरफा किसी एक राजनीतिक दल के 

खिलाफ कट्टरता दिखाई जाए. 

  जो भी मुद्दे हैं उनका धर्म से ऊपर उठकर कानून के दायरे में हल करना ही समाज और देश हित में रहेगा.