प्रतिदिन- राकेश दुबे - सरकारी और निजी फर्म सीएमआईई के बेरोजगारी के आंकड़ों में कोई अंतर नहीं है, और ये आंकड़े बताते हैं कि १५ साल से ऊपर आयुवर्ग के जो लोग काम तलाश रहे हैं उनकी संख्या ४० करोड़ के पार है। हालत यह है न्यू इंडिया में नौकरियां नहीं हैं और स्व रोजगार के अवसर चंद बड़े लोग पैदा होते ही खत्म कर रहे हैं।
प्रतिदिन- राकेश दुबे
देश के प्रधानमंत्री, विदेश में भारत सरकार की रोजगार नीति की तारीफ कर रहे हैं| इसके बावजूद देश में बेरोजगारों की संख्या ४० करोड़ के पार हो गई है| यह आंकड़ा हवा में लगाया गया अंदाज नहीं है| सरकारी और निजी फर्म सीएमआईई के बेरोजगारी के आंकड़ों में कोई अंतर नहीं है, और ये आंकड़े बताते हैं कि १५ साल से ऊपर आयुवर्ग के जो लोग काम तलाश रहे हैं उनकी संख्या ४० करोड़ के पार है। हालत यह है न्यू इंडिया में नौकरियां नहीं हैं और स्व रोजगार के अवसर चंद बड़े लोग पैदा होते ही खत्म कर रहे हैं।
सरकार फैसले भी कैसे लेती है, इसकी बानगी “अग्निवीर” है| पहले सरकार ने फैसला पहले ले लिया और इसके नतीजों के बारे में बाद में सोचना शुरु किया। जो सिर्फ प्रयोग के तौर पर सेना में भर्ती की प्रक्रिया के एक छोटे से हिस्से में होना था, अचानक उससे पूरी प्रक्रिया को ही बदल डाला गया। अब तक किये गए संशोधन कहते हैं कि जिन भी लोगों ने यह योजना बनाई उनने और लागू करने से इसके परिणाम के बारे में गहनता से विचार किया ही नहीं।
रोजगार के मुद्दे पर हिंसा होने की आशंका थी। सब जानते हैं इसी साल, इसी तरह की घटनाएं उन्हीं जगहों पर हुई थीं, जब रेलवे में भर्ती की प्रक्रिया में घालमेल हुआ था। इस योजना के जरिए उन युवाओं को संदेश दे दिया गया कि दो साल से (महामारी के कारण भर्ती प्रक्रिया बंद थी) सेना में भर्ती होने की जो युवा तैयारी कर रहे थे, अब वह मौका नहीं मिलेगा। उन्हें अब उस तरह सेना में सेवा का मौका नहीं मिलेगा जिस तरह उनके पिता या पुरखों ने सेना में सेवाएं दीं और सम्मान से रिटायर होकर आजीवन फौजी का तमगा लिए रहे।
यह एक संकेत ऐसा है जिससे लगता है कि सरकार को इस योजना लागू करने के बाद समस्याएं सामने आने का अनुमान था, और वह यह है कि प्रधानमंत्री ने खुद इस योजना को लॉन्च नहीं किया। इस योजना के लिए सरकार ने रक्षा मंत्री और सैन्य प्रमुखों को मैदान में उतारा| लगभग २२५ साल की भर्ती प्रक्रिया की परंपरा को रातोंरात बदलने वाली इस मास्टरस्ट्रोक योजना का की जानकारी देश को देने श्रेय लेने में प्रधानमंत्री क्यों चूक गये? उन्हें ही घोषणा करना चाहिए था।
अब यह योजना उसी कड़ी में शामिल हो गई है जिसमें कृषि कानून, सीएए, नोटबंदी और लॉकडाउन जैसी घोषणाएं शामिल हैं जिन्हें सरकार ने घोषित और लागू पहले कर दिया और फिर इसके परिणामों के बारे में बाद में सोचा। सवाल है कि क्या अग्रिपथ योजना का हश्र भी कृषि कानूनों और सीएए की तरह होगा जिन्हें या तो वापस ले लिया गया या विरोध के चलते ठंडे बस्ते में डाल दिया गया|
देश में बेरोजगारी के मुद्दे पर आंदोलन पहले भी हुए हैं, आज बेरोजगारी या बेकारी ऐसा मुद्दा है जिससे आत्मग्लानि होती है। ऐसे लोगों को जमा करना और सड़क पर उतारना आसान नहीं है जो काम न करने वाले लोगों के साथ खुद को जोड़ना चाहें। और अगर वे साथ आ भी जाएं तो वे अपनी भावनाओं और गुस्से बेतरतीब तरीके से सामने रखते हैं न किसी किसी शांतिपूर्ण संगठित आंदोलन के रूप में। इस अग्निपथ योजना में कई किस्म की खामियां हैं जबकि खूबी सिर्फ यह है कि इससे खर्च कम करने में मदद मिलेगी।
बेरोजगारी की समस्या बेहद गहरी है और आसानी से खत्म होने वाली भी नहीं है। इसी महीने सरकार द्वारा जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे में सामने आया है कि देश में नई नौकरियां सृजित होने के बजाए कम हो रही हैं। पूरे १७ प्रतिशत लोग जिन्हें रोजगार वाला माना गया है वे बिना वेतन के घरेलू काम की श्रेणी है| कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह छद्म बेरोजगारी है। अर्थात जो लोग काम छोड़कर शहरों से गांवों में आ गए हैं वे दावा तो कर रहे हैं कि वे कृषि कर रहे हैं, लेकिन दरअसल उन्हें यह बताने में संकोच हो रहा है कि वे बेरोजगार हैं।