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नई सरकार आने से खत्म नहीं होते पुरानी सरकारों के इतिहास 

सार

इतिहास में हमारी जड़े हैं। हमारी संस्कृति और स्मृतियां हैं। इतिहास से जुड़े विवाद सार्वभौमिक और सर्वविदित हैं। भारत में तो मुगल सल्तनत और अंग्रेजी साम्राज्य के गुलामी और उस दौर की बर्बरताओं और ऐतिहासिक स्मृतियों को न केवल याद रखा जाता है बल्कि ऐसे स्मारकों और चिन्हों को बदलने के लिए संघर्ष किया जाता है। आजादी के इतिहास पर भी भारत एकमत नहीं है। अलग-अलग सरकारें और राजनीतिक दल आजादी के इतिहास को रेखांकित करते हैं..!

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विस्तार

आजादी के पहले के इतिहास पर तो विवाद स्वीकारा जा सकता है क्योंकि वह सब गुलामी के दौर का था। जो भी लिखा पढ़ा और बताया गया है, वह भारत के नजरिए से नहीं उस दौर के शासकों और चिंतकों के नजरिए से गढ़ा और लिखा गया है। चाहे ताजमहल का विवाद हो, चाहे कुतुबमीनार का विवाद हो, चाहे लाल किले का विवाद हो, चाहे अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवाद, मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का विवाद हो, काशी में ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद हो, इतिहास की बर्बरता और नष्ट की गई संस्कृति को पुनर्जीवित करने के संघर्ष से ही उपजा है। 

शिक्षा संस्कृति और आजादी के नायकों के संदर्भ में इतिहास अगर सही नजरिए से लिखा गया होता तो बहुत सारे विवादों  की आज कोई जगह नहीं होती।  इसका सीधा मतलब है सही नजरिए के साथ इतिहास का दस्तावेज किसी भी राष्ट्र के सुखद और विकसित भविष्य के लिए बहुत जरूरी है। 
 
आजादी के बाद लोकतांत्रिक सरकारों और संसदीय शासन प्रणाली में अलग अलग राजनीतिक दलों की सरकारें केंद्र और राज्यों में स्थापित रही हैं। सरकारों में निरंतर बदलाव होते रहे हैं। आजादी के बाद जो पहली सरकार बनी थी उसने जो भी निर्णय अपने कार्यकाल में लिए थे। वह भारत के विकास और सरकारी व्यवस्था का इतिहास है। 

ऐसा इतिहास हर सरकार का हर दिन का है। सरकार के हर विभाग का इतिहास है। विकास सरकार की उपलब्धि का इतिहास है। भारत के विकास का इतिहास भी सरकार के इन्हीं ऐतिहासिक दस्तावेजों में छिपा हुआ है। लोकतांत्रिक सरकार में बदलाव के साथ पुरानी सरकार के सरकारी दस्तावेजों को लुप्त करने की गलत परंपरा स्थापित हो रही है। 

केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय और राज्य के स्तर पर अभिलेखागार स्थापित हैं। इन अभिलेखागार में समय-समय पर सरकारी फाइलों और आदेशों की नस्तियां सुरक्षित रखी जाना चाहिए। केंद्रीय स्तर पर तो थोड़ा बहुत रिकॉर्ड का संधारण माना भी जा सकता है लेकिन राज्य स्तर पर तो दलीय राजनीति का चरम ऐसा होता है कि सरकार बदलते ही पुरानी सरकार के रिकार्ड को छिपा दिया जाता है। सरकारी वेबसाइट से रिकॉर्ड ऑफलाइन कर दिया जाता है, पुराने रिकॉर्ड को हटा दिया जाता है।  

अगर सरकार में बदलाव हुए लंबा समय हो जाता है तो फिर तो कहीं कहीं पुराने रिकॉर्ड को जला भी दिया जाता है। मध्यप्रदेश में एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा अपने शासनकाल के सरकार के फैसलों और विकास के कदमों पर विवरण जब चाहा गया तब बहुत मुश्किल से ढूंढने पर कहीं एकाद बिखरी हुई पुस्तक मिल सकी।  प्रश्न यह है कि सरकार के रहने पर हर दिन जो रिकॉर्ड बनाया जा रहा है उसको सरकार बदलने के बाद क्यों हटा दिया जाता है? 

सरकार तो सरकार होती है। सरकार का कार्यकाल तो रिकॉर्ड से नहीं हटाया जा सकता। जब मंत्रालय के कमरों में मुख्यमंत्रियों के चित्र लगाए जाते हैं तो फिर सरकार द्वारा किए गए विकास के इतिहास को क्यों सुरक्षित और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं रखा जाता?

अरबों रुपए का जन-धन खर्च कर विकास का जो इतिहास निर्मित किया जाता है वह किसी सरकार का नहीं होता। वह राज्य या केंद्र का होता है। सरकार किसी भी नेता के नेतृत्व में चली हो लेकिन जनता के पैसे से सरकार ने जो भी विकास और प्रशासनिक इतिहास निर्मित किया है उसको कभी भी मिटाया नहीं जा सकता। उसके इतिहास को पीछे धकेलने की राजनीति राज्य के साथ पाप ही कही जाएगी। 

मध्यप्रदेश में तो 15 महीने की जब सरकार बनी थी तब बीजेपी की पुरानी सरकार के सारे निर्णय और विकास के इतिहास को सरकार के विभिन्न विभागों के पोर्टल से हटा दिया गया था। 15 महीने बाद जैसे ही फिर सरकार बदली तो उस 15 महीने का इतिहास गायब हो गया। यह राजनीतिक प्रवृत्ति शासन की अवधारणा को ही समाप्त कर देती है। 

अमेरिका और ब्रिटेन के अभिलेखागार और लाइब्रेरी को सबसे समृद्ध माना जाता है। भारत के अंग्रेजी साम्राज्य काल पर किसी को शोध करना है तो सबसे अधिक संदर्भ और रिकॉर्ड ब्रिटिश लाइब्रेरी में मिलेंगे। भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जो नस्तियां भेजी जानी चाहिए वो नहीं भेजी जा रही हैं। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों में गोपनीयता का बीज कुछ ज्यादा ही प्रखरता के साथ कायम है। सीक्रेसी की इसी सोच के कारण सरकारों के इतिहास संकलित नहीं हो पा रहे हैं। 

गोपनीय जानकारियों को छोड़कर दूसरी जो सरकारी फाइलें हैं उनको तो निश्चित रूप से अभिलेखागार में रखा जाना चाहिए। देश से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित रिकॉर्ड अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं है। राष्ट्र के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं 1962, 1965 और 1971 के युद्ध के रिकॉर्ड अभिलेखागार में उपलब्ध नहीं हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि डिफेंस मिनिस्ट्री द्वारा 1960 के बाद से कोई भी फाइल उपलब्ध नहीं कराई गई है। कृषि और ग्रामीण विकास, खाद्य और उपभोक्ता मामले के विभाग द्वारा भी कोई नास्ति अभिलेखागार को नहीं भेजी गई। 

देश के विकास का इतिहास सरकारों के साथ अगर लुप्त हो जाएगा तो फिर समय काल आने पर इतिहास को तोड़ा मरोड़ा जा सकता है। सरकारों द्वारा किए गए विकास का इतिहास हमारी धरोहर है। इसको संकलित और संरक्षित करना किसी भी सरकार का बुनियादी दायित्व होना चाहिए। 

आजादी के पहले का इतिहास हमें आज परेशान कर रहा है। आज का इतिहास हमें भविष्य में परेशान कर सकता है। देश का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए सरकारों के विकास, इतिहास और राष्ट्र के जीवन की कोई महत्वपूर्ण घटनाओं के ऐतिहासिक दस्तावेजों को संकलित करने का एक अभियान केंद्र और राज्य स्तर पर चलाया जाना चाहिए। इस पर राजनीतिक नजरिया राष्ट्रीय भावना खिलाफ है। आर्काइव निर्भर भारत आत्मनिर्भर भारत की दिशा में तेज़ी से बढ़ सकता है।