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हार्स ट्रेडिंग के डर से बदलना पड़ा कानून

सार

दिग्विजय सरकार में नगरीय निकायों के लिए लागू कानून एक बार फिर मध्य प्रदेश ने अपना लिया है. शिवराज सिंह चौहान ने इसको बदल दिया था. अब मोहन यादव ने फिर नगरीय निकायों के अध्यक्ष के सीधे निर्वाचन का कानून स्वीकार कर लिया है..!!

janmat

विस्तार

    इसके लिए विधानसभा में विधेयक पारित कर दिया गया है. एक ही पार्टी की सरकार ने पहले अप्रत्यक्ष चुनाव के लिए कानून बनाया, अब फिर प्रत्यक्ष चुनाव का कानून बना रही है.

    प्रत्यक्ष चुनाव का सबसे पहला कानून दिग्विजय सरकार में बनाया गया था. उस समय तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों के लिए राइट टू रिकॉल की व्यवस्था भी लागू की गई थी. शिवराज सरकार ने इसे बदल दिया था और नगरीय निकायों के अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होने लगा था. अब सरकार को लगने लगा है, अप्रत्यक्ष प्रणाली से इन निकायों में कामकाज प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहा है. ऐसा बताया जाता है कि सौ अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव विचाराधीन है.

    विधानसभा में चर्चा के दौरान हॉर्स ट्रेडिंग शब्द ट्रेंडिंग रहा. पक्ष-विपक्ष दोनों की ओर से इसका उपयोग किया गया. इस कानून को बदलने के पीछे जो कारण माना जा रहा है, उसमें नगर पालिकाओं और परिषदों में अध्यक्षों के अप्रत्यक्ष निर्वाचन और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में हॉर्स ट्रेडिंग को बड़ा कारण बताया जा रहा है.

    अप्रत्यक्ष प्रणाली में अध्यक्ष पद पर चयन के लिए पार्षदों की खरीद-बिक्री आम बात हो गई थी. धनबल के आधार पर अध्यक्ष पद हथियाए जा रहे थे. इसके साथ ही कामकाज में पार्षदों के असंतुष्ट होने पर अविश्वास प्रस्ताव भी दबाव का एक जरिया बन गया. इसके कारण नगरीय निकाय की फंक्शनिंग प्रभावित हो रही है. वैसे भी नगरीय निकाय जनप्रतिनिधियों के दबाव पर ही फंक्शन करते हैं. 

    अब अगले चुनाव में नगरीय निकायों में अध्यक्ष का चुनाव सीधे हो सकेगा. अगर इससे अध्यक्षों पर पार्षदों का दबाव कम होगा तो क्या काम-काज में निरंकुशता बढ़ सकती है. अभी तक तो अध्यक्षों को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की व्यवस्था है. क्या अविश्वास प्रस्ताव की व्यवस्था समाप्त की जा रही है. अगर की जा रही है, तो फिर किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने के लिए कोई नई व्यवस्था करनी होगी. राइट टू रिकॉल का प्रावधान लागू करना होगा. अन्यथा निरंकुश्ता बढ़ना स्वाभाविक है.

    राजनीति का मतलब नीति का राज होता है. जब राज में अनीति बढ़ने लगे राज से नीति गायब होने लगे, स्वार्थ हावी होने लगे, तब कानून बदलने की जरूरत पड़ती है. जहां तक हॉर्स ट्रेडिंग का सवाल है, यह केवल नगरीय निकायों के स्तर तक नहीं है. सांसद और विधायक भी खरीद-फरोख्त में शामिल होते हैं. इसके लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है. मध्य प्रदेश में ही कांग्रेस की सरकार के पतन के लिए हॉर्स ट्रेडिंग को जिम्मेदार बताया जा रहा था.

    दल-बदल तो लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर धब्बा बनता जा रहा है. मध्य प्रदेश में ही एक विधायक जिस दल से चुनी गई थीं, उसको छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो गई हैं, लेकिन अभी तक विधानसभा के भीतर उनके दल का निर्धारण नहीं हो सका है. दल-बदल के मामलों में निर्णय में विधायिका की शक्ति के कारण इसको टालना आसान हो गया है.

    विधानसभा में यह भी मांग उठी कि नगरी निकाय के अलावा जिला पंचायत, मंडियों और जहां भी चुनाव की अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू है, उसको भी बदलने की आवश्यकता है. कहने के लिए तो लोकतंत्र ही अप्रत्यक्ष शासन प्रणाली है. लोकतंत्र का असली मालिक मतदाता होता है. उसके द्वारा निर्वाचित सांसद और विधायक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चुनते हैं. इस अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही लोकतंत्र में जनता का राज संचालित होता है.

    नगरीय निकायों में हॉर्स ट्रेडिंग के कारण अगर कानून को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, तो फिर यह राजनीति में हावी होते स्वार्थ का सबसे बड़ा उदाहरण है.

    लोकतांत्रिक व्यवस्था नीति के साथ ही नेतृत्व पर निर्भर करती है. नीति में बदलाव नहीं होता लेकिन नेतृत्व की नीयत अगर खराब हो जाए तो फिर इस व्यवस्था को हॉर्स ट्रेडिंग से कोई भी नहीं बचा सकता है. नेतृत्व के चेहरे पर जब स्वार्थ चढ़ जाता है, तो फिर राजनीति से नीति गायब हो जाती है.

    ऐसा कई बार देखा गया है, कि शासन के विभागों में नेतृत्व के आधार परअलग-अलग ढंग से संचालन होता है. राजनीतिक भ्रष्टाचार व्यक्तिगत होता है. कोई व्यक्ति इस रास्ते पर चलता है और कोई ईमानदारी से अपनी छवि को ध्यान रखते हुए काम करता है.

    लोकतंत्र में ना हर नगरीय निकाय अध्यक्ष पर करप्शन का आरोप लगता है, और ना हर मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पर लगता है. लेकिन किसी-किसी पर यह लगता है और साबित भी होता है. भारत में तो यह भी देखा गया है कि कई मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार में शामिल होने पर अपने पद से हटना पड़ा है. राजनीतिक भ्रष्टाचार के कितने मामले हैं जिनमें करोड़ों रुपए नगद जब्त होते हैं.

    जब कोई अनैतिकता सिस्टम का पार्ट बन जाती है तो फिर उसके प्रति सेंसिटिविटी भी कम हो जाती है. हॉर्स ट्रेडिंग के प्रति भी ऐसी ही स्थिति दिखाई पड़ती है. कोई ईमानदार नेता किस तरीके से स्वयं की और व्यवस्था की इमेज में चार चांद लगा सकता है यह भी देश के अनुभव से अछूता नहीं रहता. इसके साथ ही राजनीतिक भ्रष्टाचार भी तमाम कोशिशों के बाद भी छिपाया नहीं जा सकता.

    नीयत को मापने का कोई पैमाना नहीं है. नीति लिखित है लेकिन नीयत अलिखित है.अच्छी नीयत ही अच्छी नीति, अच्छे नियम और अच्छी प्रक्रिया का निर्धारण एवं संचालन कर सकती है. केवल कोई कानून अकेला बदलाव लाने के लिए पर्याप्त नहीं होता. 

    सुशासन और स्वार्थी शासन में बहुत बारीक अंतर होता है. इस अंतर को समझने और पाटने नीति से ज्यादा नीयत कारगर होती है.