• India
  • Mon , Nov , 17 , 2025
  • Last Update 06:58:PM
  • 29℃ Bhopal, India

हारती पार्टी हराते लोकतंत्र 

सार

राहुल गांधी की कोलंबिया और मस्कट यात्रा के बीच कांग्रेस का संकट छिपा हुआ है. राहुल गांधी की वोट चोरी की बकैती से कांग्रेस के वोटर की डकैती हो गई..!!

janmat

विस्तार

    मस्कट दौरा अधूरा छोड़कर दिल्ली लौटे राहुल गांधी ने हार की समीक्षा में पार्टी के चुनाव प्रबंधकों को आड़े हाथों लिया. जो गुस्सा खुद पर दिखाना चाहिए, वह दूसरों पर दिखा रहे हैं. चुनाव छोड़कर विदेश और जंगल सफारी वह खुद कर रहे थे और हार का दोष प्रबंधकों को दे रहे हैं. इसका मतलब जहां भी पार्टी जीती है, वहां भी प्रबंधक जीते हैं. राहुल गांधी का उन राज्यों में भी कोई क्रेडिट नहीं है.

    कांग्रेस का संकट राहुल गांधी का एप्रोच है. उनका जनता के वास्तविक मुद्दों से डिस्कनेक्शन है. इमेज बिल्डिंग की पीआर एक्सरसाइज के अभिनय को जनादेश लगातार नकार रहा है.

    राहुल गांधी को खुद से सवाल करना चाहिए, कि कोई भी मतदाता कांग्रेस को वोट क्यों दे. कोई भी कार्यकर्ता कांग्रेस के लिए काम क्यों करें. कांग्रेस की राजनीति क्या हिंदुस्तान के मुताबिक है. हिंदुस्तान की आवाम के लिए है. भारत की आस्था, संस्कृति और भारतीयता के लिए है.

    कांग्रेस के जो भी नेता राज्य या केंद्र में पदों पर बिठाए गए हैं, क्या उनमें नेतृत्व का कोई स्वाभाविक लक्षण दिखाई पड़ता है. कोई भी नागरिक अपनी आस्था के लिए जीता है. अपने देश के लिए जीता है. समाज के लिए जीता है. इस सभी क्षेत्र में कांग्रेस कहां खड़ी है.

    ना तो कांग्रेस बहुसंख्यक समाज की आस्था के साथ खड़ी है, ना ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए, किसी सकारात्मक एजेंडे के साथ खड़ी है, ना वह विकासवाद के साथ है, ना औद्योगीकरण के साथ है. उसका एजेंडा तो केवल जातियों के विभाजन का है. वोट बैंक के तुष्टिकरण का है. राष्ट्र का संतुष्टीकरण उसकी सोच के बाहर है. देश में आने वाले हर नए कानून और बदलाव का कांग्रेस विरोध करती है. 

    देश के बड़े उद्योगपतियों पर अनर्गल आरोप लगाकर उनकी छवि बिगाड़ने का काम करती है. राहुल गांधी के जो भी मुद्दे हैं, उस पर उन्हें पब्लिक समर्थन नहीं मिलता. फिर भी धारा के विपरीत बहने के लिए राहुल गांधी की जिद ऐसे मुद्दों को उछालती है, जो कांग्रेस पर ही भारी पड़ जाता है. 

    अस्तित्व ने तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के घर पैदा किया है. जन्म से अनुभव नहीं मिलता इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. फिल्मों के हीरो जैसे अपने रोल को ही रियल लाइफ मान बैठें, तो फिर उनका मानसिक संतुलन कायम रखना कठिन होता है. वैसे ही जन्म की विरासत को अगर कोई अपनी लाइफ और सक्सेस मान ले तो फिर राजनीति में राहुल गांधी पैदा होते हैं. सुरक्षा घेरे में लिमिटेड एक्सेस के साथ राहुल गांधी राजनीति की ट्रेनिंग लेते हैं.

    राष्ट्र से जुड़े मुद्दे चाहे घुसपैठ हो, चाहे एनआरसी हो, चाहे सीएए हो सबका विरोध कांग्रेस का संकट बन गया है. बिहार नतीजे ने यही बताया है कि अब तुष्टिकरण की राजनीतिक शैली भी एकजुट वोट बैंक की गारंटी नहीं बची है. अब तो बहुमत के संतुष्टिकरण पर दारोमदार टिका हुआ है. 

    राहुल गांधी अक्सर कहते हैं वह डरते नहीं है. डरने की नहीं देश के लोगों को समझने की जरूरत है जो अपने वोट से अपनी सरकार बना रहा है. उस सरकार और उसके मुखिया को वोट चोरी के आरोप में घसीटना प्रकारांतर में मतदाताओं को ही वोट चोर साबित करना है.

    राहुल गांधी नकारात्मक राजनीति के प्रतीक बन गए हैं. हार से राहुल गांधी को अपने वोट बैंक की वापसी का रास्ता दिखने लगा है.

    कांग्रेस के लिए राहुल गांधी परम सत्ता हैं. उनके मुंह से झूठ-सच कुछ भी निकले लेकिन कांग्रेस में किसी की भी हैसियत उस पर सवाल करने की नहीं बची है. लगातार चुनाव में हार के बाद भी कांग्रेस के निर्णय की डोर राहुल गांधी के हाथ में ही है. जो स्वयं संकट बनता जा रहा है वही समाधान के प्रयास करें तो समाधान भी संकट के रूप में ही सामने आता हैं 

     कांग्रेस की ना जमीनी पकड़ बची है, ना जमीनी नेता. एसआईआर के लिए कांग्रेस को सभी बूथों पर एजेंट तक नहीं मिल रहे हैं. जब जमीन पर कार्यकर्ता ही नहीं है, तो फिर कांग्रेस राहुल के अनाप-शनाप मुद्दों पर जितना हासिल कर ले रही है, वही ज्यादा लगता है. बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस की जमीन पर पकड़ फिर से एक बार एक्सपोज हो गई है. उसकी राजनीतिक शैली और संगठन भी विरासत की आभासी दुनिया और सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय रहता है.

    पीएम मोदी ने कांग्रेस की राजनीतिक सोच को बताते हुए कहा कि यह मुस्लिम लीगी माओवादी (MCC) कांग्रेस बन गई है. राहुल गांधी और कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या लोगों की आकांक्षा, अपेक्षा और विश्वास से कट जाना है. राहुल गांधी जो भी मुद्दे उठाते हैं, वह सब कांग्रेस के विरोध में चला जाता है. उनका वोट चोरी का आरोप भी कांग्रेस के लिए वैसा ही साबित हो रहा है.

    कांग्रेस को उबारने के लिए राजनीति में आए राहुल गांधी खुद ही इसका संकट बनते जा रहे हैं. हारते वह खुद हैं, लेकिन हराते लोकतंत्र को हैं. बिहार चुनाव परिणाम के बाद भी वह ऐसा ही कर रहे हैं. उनका हर सोशल मीडिया पोस्ट यही इशारा कर रहा है, कि चुनाव निष्पक्ष नहीं थे. उनका ताजा पोस्ट कह रहा है, वोट चोर पकड़ाएगा जरूर. जब उनको लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही भरोसा नहीं है, तो फिर लोकतंत्र के मुद्दों पर तो भरोसे का कोई सवाल ही नहीं है.

    राहुल गांधी का लोकतंत्र की प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है और जनादेश का राहुल गांधी पर विश्वास चुनाव दर चुनाव घटता जा रहा है.