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विरासत का दम और बौद्धिक सुस्ती, कहां पहुंचाएगी कांग्रेस को?

सार

कांग्रेस को नीतियों और विचारधारा में स्पष्टता लाने की जरूरत है, तभी यात्रा में सही संदेश देने में पार्टी सफल हो सकती है..!

janmat

विस्तार

कांग्रेस 7 सितंबर से कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने जा रही है। राहुल गांधी इस यात्रा का नेतृत्व करेंगे। यात्रा के स्लोगन अच्छे हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर क्या यात्रा अपने उद्देश्यों में सफल हो सकेगी? उदयपुर चिंतन शिविर में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए यह यात्रा शुरू करने की घोषणा सोनिया गांधी ने की थी।  

इस यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं। सिंह को सूझबूझ वाला बौद्धिक नेता माना जाता है। कांग्रेस को नीतियों और विचारधारा में स्पष्टता लाने की जरूरत है, तभी यात्रा में सही संदेश देने में पार्टी सफल हो सकती है। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले सांप्रदायिक सौहार्द के नाम पर बीजेपी के सांप्रदायिक हिंदुत्व की राजनीति को उभारना चाहती है जिससे कि सेकुलर मतों के ध्रुवीकरण से चुनावी लाभ प्राप्त किया जा सके। 

बीजेपी के पास देश में मोदी जोड़ है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक मोदी का मजबूत जोड़ तोड़ने के लिए क्या भारत जोड़ो यात्रा काफी होगी? कांग्रेस कन्फ्यूजन में है। कांग्रेस की सामाजिक, आर्थिक नीतियां साफ़ नहीं है। विचारधारा पर संशय बना हुआ है। कांग्रेस गंभीर इंटेलेक्चुअल क्राइसेस से गुजर रही है। इंटेलेक्चुअल सुस्ती के कारण कांग्रेस बीजेपी की पॉलिटिक्स में फंस गई है। 

ऐतिहासिक लीगेसी का दंभ भी कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है। गांधी से शुरू कांग्रेस के लिए अब गांधी परिवार ही सिरदर्द बन गया है। कांग्रेस अभी भूत में जी रही है उसे वर्तमान संकट और समाधान का सामना करना पड़ेगा। नेताओं का पार्टी छोड़ना, गांधी परिवार की नींव हिला रहा है। कभी कांग्रेस में कमल छाप कांग्रेसी खोजे जाते थे। आज उसके उलट कांग्रेस नेताओं का मोदी जोड़ तलाशा जाता है।  

कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियां बीजेपी को हिंदूवादी राजनीति के लिए कोसते हुए सांप्रदायिक  ठहराते हैं। विपक्षी दलों में बौद्धिक सुस्ती इतनी ज्यादा है कि उन्हें बीजेपी की सांप्रदायिकता के अलावा न्यू इंडिया के मैसेज दिखाई नहीं पड़ते। बीजेपी इस मामले में राजनीतिक रूप से सफल हो गई है कि आज उसके एजेंडे पर हिंदुत्व की राजनीति मुख्यधारा की राजनीति बन गई है। सारी विपक्षी पार्टियां सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करने लगी हैं। 

अब चुनाव में मुस्लिम परस्ती का दिखावा करने से सभी दल बचते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी मुसलमानों के बीच अपनी पहुँच बढ़ाने की कोशिश करते हुए दिखाई पड़ती है। चाहे पसमांदा मुसलमानों के लिए यात्रा निकालने की बात हो या मुस्लिमों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की बात हो।  भाजपा हर कदम उठा रही है। मध्यप्रदेश के नगरीय निकाय के चुनाव में 92 पार्षद मुस्लिम समुदाय से जीत कर आना इसकी बानगी है। 

कांग्रेस यह समझने में भूल कर रही है कि भाजपा आज भी सावरकर और गोलवलकर की हिंदुत्ववादी सोच पर चल रही है। भाजपा पर नजर रखने वाले बौद्धिक चिंतक साफ देख रहे हैं कि बीजेपी हिंदुत्व को धीरे-धीरे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में स्थापित कर रही है। बीजेपी ने न्यू इंडिया की अवधारणा केवल स्लोगन के रूप में नहीं बल्कि वह इसे पालिसी फ्रेमवर्क के रूप में आगे बढ़ा रही है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी योजनाओं और नीतियों में न्यू इंडिया की सोच को बढ़ावा दिया है। नीति आयोग ने ‘न्यू इंडिया @ 75’ के नाम से नए आइडियाज के लिए पब्लिक पार्टिसिपेशन आमंत्रित किया। उसके बाद सधे ढंग से रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। कांग्रेस और विपक्ष अभी भी बीजेपी के खिलाफ सांप्रदायिक राजनीति का ही गाना गाने में लगे हैं और बीजेपी ने आगे बढ़कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और न्यू इंडिया की ओर कदम बढ़ा दिया है। 

कांग्रेस बौद्धिक सुस्ती के कारण बीजेपी की सतत कोशिशों को इग्नोर कर देती है और जनता के बीच बीजेपी को संप्रदायिक बताने की कोशिश करती है। तब जनता उन पर यकीन नहीं करती क्योंकि वास्तव में उन्हें जमीन पर कोई भी सांप्रदायिक परिस्थितियां नहीं दिखती हैं। इसके विपरीत हिंदू-मुस्लिम के नाम पर जिस तरह के घटनाक्रम हो रहे हैं उससे यही संदेश मजबूती के साथ जाता है कि मुस्लिम समाज के लोग कट्टरता में ज्यादा आगे पाए जाते हैं। इसी कारण बीजेपी को लाभ होता रहता है। 
 
कांग्रेस को इंटेलेक्चुअल क्राइसिस से बाहर आना होगा। समावेशी और समानतावादी विकास के लिए नए आइडियाज और विचार सामने रखना होंगे। केवल यह कहने से ही कि बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है, बीजेपी सांप्रदायिक है, उन्हें अब राजनीतिक लाभ होता नहीं दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस कभी सॉफ्ट हिंदुत्व पर चलने लगती है तो कभी सेकुलर हो जाती है। कांग्रेस की सेकुलर राजनीति पब्लिक ओपिनियन में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति मानी जाने लगी है।  भारत जोड़ो यात्रा भी अगर पुराने रवैये पर सेकुलर और सांप्रदायिक राजनीति को उभारने का प्रयास करेगी तो इससे कांग्रेस को जमीन पर कोई लाभ होगा इसमें बहुत संशय है। 

इसके विपरीत कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा बीजेपी के लिए एक प्रचार यात्रा साबित हो सकती है। कांग्रेस में बिखराव भी बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस को उसके ऐतिहासिक लिगेसी का इतने लंबे समय तक लाभ मिला है, अब उसको उसकी लिगेसी के नेगेटिव पक्ष का नुकसान हो रहा है। पार्टी का यह दंभ भी भारी पड़ रहा है कि आजादी की लड़ाई उसी ने लड़ी थी। 

कभी कांग्रेस पार्टी भाजपा पर आरोप लगाती थी कि यह पार्टी संविधान बदल देगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने जब संविधान की समीक्षा के लिए समिति बनाई थी तब उसका भी राजनीतिक दुरुपयोग भाजपा विरोधियों द्वारा किया गया था। इसके बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और संविधान बदलने के किसी भी प्रयास को नामंजूर कर दिया। 

इसके उलट बीजेपी ने संविधान में हिंदुत्व के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को स्थापित करने के लिए जहां-जहां भी अवसर थे,उनका पूरा लाभ उठाया। चाहे कश्मीर में धारा 370 समाप्त कर हिंदुओं के साथ न्याय करने का ऐतिहासिक संशोधन हो, चाहे दूसरे मुस्लिम देशों में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदुओं को भारत में नागरिकता देने के लिए सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट 2019 हो। बीजेपी ने हिंदू उत्पीड़न को देश की अस्मिता के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया। इन मुद्दों पर कांग्रेसी या तो चुप रहे या विरोध करते रहे।  

हिंदू उत्पीड़न को कम करने के प्रयासों के माध्यम से बीजेपी जहां सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को लगातार मजबूत करती जा रही है। वहीं ऐसी नीतियों कार्यक्रमों और योजनाओं पर उपेक्षा या विरोध के कारण कांग्रेस एंटी हिन्दू फोर्स के रूप में स्थापित हो रही है। 

भारत जोड़ो यात्रा भी कांग्रेस के लिए कोई कारगर परिणाम ला सकेगी, इसमें संशय है। इस यात्रा के पहले कांग्रेसजनों के लिए देश के सामने जो भी महत्वपूर्ण मुद्दे और विचारधारा का विषय हैं उन पर स्पष्टता के साथ सामने आना पड़ेगा। अयोध्या के मामले में भी कांग्रेस की ढुलमुल नीति ने उसे नुकसान पहुंचाया है।  अब तो काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का मुद्दा भी गरमाया हुआ है। कांग्रेस को देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रखने पड़ेंगे। गोलमाल ढंग से बात करके किसी को सांप्रदायिक कहने मात्र से कांग्रेस को अब राजनीतिक लाभ मिलेगा यह नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर लग रहा है। 

सबसे पहले देश को महत्वपूर्ण मुद्दों पर कांग्रेस के स्पष्ट विचार तो मालूम होना चाहिए। देश के लोगों पर छोड़ दीजिए कि वे कौन सा विचार पसंद कर रहे हैं? अभी तो हर मुद्दे पर कांग्रेस गोलमोल बातें कर रही है। भारत जोड़ो यात्रा में भी इसी तरीके की बातें की जाएंगी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है। परिवारवाद की राजनीति पर कांग्रेस का क्या स्टैंड है? भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस की क्या रणनीति है? मुस्लिम तुष्टिकरण पर कांग्रेस की क्या राय है? यह बताना पड़ेगा। 
 
महंगाई-बेरोजगारी और अन्य जनहित के मुद्दों पर दूसरे लोग तो लाभ उठा सकते हैं लेकिन कांग्रेस को इनका लाभ इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि इस पार्टी ने आजादी के बाद देश में 50 सालों से अधिक शासन किया है और देश में जो भी समस्याएं विद्यमान हैं उनमें कहीं ना कहीं से इस पार्टी के नेताओं और उनकी सरकारों की भूमिका ही देखी जाती है।