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दीपक की रुसवाई या जमावट की परछाई

सार

कमलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की जितनी राजनीतिक चर्चा देश में हो रही थी उतनी ही राजनीतिक चर्चा दीपक सक्सेना के कांग्रेस छोड़ने की मध्यप्रदेश में हो रही है. कमलनाथ के घर में हो रही सेंधमारी अभिन्न समर्थकों की रुसवाई है या जमावट की परछाई के रूप में एडवांस दस्ते कमल की शरण में पहुंच रहे हैं?

janmat

विस्तार

छिंदवाड़ा की राजनीति में कमलनाथ और दीपक सक्सेना में अंतर करना बहुत मुश्किल था. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद कमलनाथ के लिए छिंदवाड़ा के विधायक दीपक सक्सेना ने ही अपना पद छोड़ा था तभी कमलनाथ छिंदवाड़ा से विधायक बने थे. जो इतना करीब हो वह अचानक पार्टी छोड़ दे? यह सामान्य तो नेहें हो सकता. यद्यपि अभी उन्होंने कोई दूसरा दल ज्वाइन नहीं किया है लेकिन उनके बेटे ने बीजेपी ज्वाइन कर ली है. 

पिछले महीने जब राजनीतिक जगत में ऐसी खबरें तैरने लगी थी कि कमलनाथ अपने बेटे और समर्थकों के साथ बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं. तब भी कमलनाथ की ओर से कोई खंडन नहीं किया गया था. वे तो बीजेपी ज्वाइन नहीं कर सके लेकिन मध्यप्रदेश में कई कांग्रेसी नेताओं ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. ऐसे नेताओं में शामिल इंदौर के पूर्व विधायक एक वीडियो में यह कहते सुने गए कि उनकी तो कमलनाथ से चर्चा हो गई थी. वे ना मालूम क्यों नहीं गए? हम तो चर्चा अनुसार कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गए हैं.

अब छिंदवाड़ा में कांग्रेस के लोग पार्टी छोड़ रहे हैं और कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को निशाने पर ले रहे हैं. दीपक सक्सेना जैसे नेता के कांग्रेस छोड़ने के बाद ऐसी चर्चाओं को बल मिला है कि कहीं यह अग्रिम तैयारी के रूप में तो कोई भूमिका नहीं तैयार हो रही है? राजनीतिक हालात के इशारे तो यही कह रहे हैं कि छिंदवाड़ा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कुछ तो ऐसा अंदरखाने घट रहा है जिसकी पूरी स्क्रिप्ट अभी विश्लेषकों को स्पष्ट नहीं हो पा रही है. 

मध्यप्रदेश के 29 लोकसभा क्षेत्र में केवल छिंदवाड़ा में ही फाइट की संभावना है. छिंदवाड़ा की राजनीति में कांग्रेस के भीतर ही चल रही राजनीतिक गतिविधियां इस फाइट को भी कमजोर कर रही हैं. यह कमजोरी स्वाभाविक है या भविष्य की रणनीति की तैयारी है? इस पर गंभीर नजर बनी हुई है.

इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे के रूप में छिंदवाड़ा में स्थापित कमलनाथ के लिए कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर और मध्यप्रदेश के स्तर पर सपनों की उड़ान के अवसर अब चमकदार दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. औद्योगिक और कॉरपोरेट माइंड सेट हमेशा लाभ हानि की गणित पर विचार करता है. छिंदवाड़ा की लोकसभा सीट अगर कमलनाथ परिवार रिटेन भी कर लेता है तो राष्ट्रीय राजनीति में इस परिवार के घट रहे महत्व के कारण पारिवारिक बिजनेस और विरासत को बचाए रखना मशक्कत भरा काम हो सकता है. छिंदवाड़ा के राजनीतिक हालात तूफान के संकेत कर रहे हैं. यह तूफान भले ही कांग्रेस को नुकसान पहुंचाए लेकिन कमलनाथ परिवार को तो उलट-पुलट में ही सुरक्षित रहना आसान हो सकता है.

भावी और अवश्यम्भावी मुख्यमंत्री बनते बनते कमलनाथ विधानसभा चुनाव के बाद ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में चले गए हैं कि अब उनकी भावी भूमिका कांग्रेस के भविष्य से तो मेल नहीं खा पा रही है. चुनाव के समय विधानसभा प्रत्याशियों के टिकट वितरण में जिस तरह से अनेक प्रत्याशियों के टिकट बदले गए, लगभग हर जिले में कांग्रेस में बगावत का माहौल बना. सपा के लिए आपत्तिजनक बयान दिए गए, चुनावी तैयारी केवल कागजी अभियान के रूप में ही सीमित रही, चुनाव नतीज़ो से पहले ही उस पर सवाल उठ रहे थे. ओपिनियन पोल कमलनाथ को हीरो बना रहे थे लेकिन चुनाव परिणामों ने उन्हें कांग्रेस में जीरो बना दिया. 

कमलनाथ को पीसीसी अध्यक्ष पद से अचानक हटाया गया. राज्यसभा में जाने की कोशिश भी सफल नहीं हो पाई. इस बीच अचानक अफवाह चल गई कि कमलनाथ अपने पुत्र और समर्थको के साथ बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं. कमलनाथ उम्र के इस पड़ाव पर अब राजनीति से बहुत अधिक आशा नहीं कर सकते हैं लेकिन वे पारिवारिक विरासत बचाने के लिए भविष्य की जमावट पर जरूर ध्यान दे रहे होंगे.भविष्य की राजनीति फिलहाल कम से कम कांग्रेस के साथ तो बहुत उज्ज्वल नहीं लगती है.

कांग्रेस आलाकमान जिस तरह से कमलनाथ को इग्नोर करता दिखाई पड़ रहा है उससे उनके समर्थकों में निराशा बढ़ना स्वाभाविक है. छिंदवाड़ा में शायद ऐसी ही निराशा ने पार्टी छोड़ रहे नेताओं को घेरा होगा. राजनीति के शिखर तक पहुंचे कमलनाथ अपने परिवार के किसी दूसरे सदस्य के राजनीतिक भविष्य की गारंटी नहीं दे सकते हैं. इसीलिए वे ऐसे राजनीतिक आकाश में अपनी संभावनाएं तलाश रहे होंगे जिसमें उनकी पारिवारिक विरासत अधिकतम सुरक्षित रह सके.

राजनीति की संध्या के समय कमलनाथ राजनीतिक बुलंदियों से ऐसे फिसले हैं कि अब उन्हें छिंदवाड़ा में अपने अभिन्नतम  सहयोगियों का साथ छोड़ना पड़ रहा है. यह बात सामान्य रूप से तो विश्वसनीय नहीं लगती है कि दीपक सक्सेना कमलनाथ का साथ छोड़ सकते हैं लेकिन अगर उन्होंने पार्टी छोड़ी है और
भविष्य में कोई राजनीतिक कदम उठाते हैं तो उसके पीछे के सारे सूत्र कमलनाथ से अलग भी भी नहीं देखे जा सकते. 

छिंदवाड़ा को कांग्रेस का गढ़ बनाने वाले कमलनाथ आज छिंदवाड़ा में ही राजनीतिक चक्रव्यूह में ऐसे घिरते दिखाई पड़ रहे हैं कि भविष्य की सुरक्षा के लिए राजनीतिक आकाश में खुद को व्यवस्थित और सुरक्षित करना उनकी मजबूरी है. धन और वैभव का कमल तो कमलनाथ को मिल गया है लेकिन राजनीतिक कमल के आगोश ने उनके अभिन्न समर्थको और सहयोगियों को पहले पकड़ लिया है.