कांग्रेस ने शायद सनातन पर पहली बार चुनावी एहसान किया है. नवरात्रि के पहले दिन प्रत्याशियों की पहली सूची आते ही ऐसा प्रचारित किया गया कि सनातन धर्म के सबसे बड़े त्यौहार के पहले दिन सुबह 9 बजकर 9 मिनट पर सूची जारी कर तो कांग्रेस ने सनातन धर्मियों की भावनाओं को प्रभावित किया है.
पीसीसी में दुर्गा स्थापना भी की गई है. सनातन सभ्यता मुहूर्त से ज्यादा कर्म को प्रधानता देती है. शुभ मुहूर्त में किया गया रावणी कर्म भी शुभ-लाभ नहीं दे सकता. कांग्रेस द्वारा यह बताने की कोशिश कि उनकी राजनीति सनातन विचारधारा पर विश्वास करती है अपने आप में विरोधाभासी है. कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची तो शुभ मुहूर्त में जारी करती है लेकिन इजराइल हमास युद्ध में हमास का समर्थन करने के लिए पितृपक्ष में वर्किंग कमेटी आयोजित कर हत्या, बलात्कार, आतंक और क्रूरता की विचारधारा का समर्थन कर भारत की सनातन सभ्यता को चुनौती देती है.
नवरात्रि पूर्णता के साथ ही दशहरे पर सनातन सभ्यता रावण दहन करती है. हर साल रावण दहन सनातन धर्मियों को सीताहरण का करुण दृश्य और उसके लिए चेहरे और रूप बदलकर स्वर्ण मृग की राक्षसी मारीचि सियासत भी स्मरण दिलाता है. धार्मिक विचारधारा के आधार पर पूरी दुनिया में आतंक और क्रूरता का पर्याय बने आतंकवादियों का समर्थन अगर राजनीति की मजबूरी है तो यह सनातन धर्म के साथ सबसे बड़ा धोखा ही कहा जाएगा.
कांग्रेस अपने मूल राजनीतिक चरित्र को छिपाकर सनातनी शुभ मुहूर्त की पृष्ठभूमि में हिंदुत्व और सनातन को बरगलाकर धोखे में रखना चाहती है. राजनीतिक रूप से उनके द्वारा यह किया जाना गलत नहीं कहा जाएगा लेकिन चेहरे पर चेहरा लगाकर असली चेहरे को छिपाकर मतदाताओं को ठगने की कोशिश राजनीतिक बेइमानी ही कही जाएगी. कांग्रेस आज चुनावी लाभ के लिए ऐसा प्रचारित कर रही है कि जैसे शुभ मुहूर्त पर कोई काम करके सनातन के प्रति कोई एहसान किया है.
बहुत लंबा समय नहीं हुआ जब कांग्रेस के सहयोगी डीएमके द्वारा सनातन धर्म को डेंगू और मच्छर बताते हुए इसे समाप्त करने का राजनीतिक वक्तव्य दिया गया था. तब कांग्रेस ने उसका ना तो खुला विरोध किया और ना ही डीएमके के साथ अपने संबंधों को खत्म करने की कोई पहल की थी. राजनीति के लिए सनातन धर्म को मोहरा बनाकर ठगने की प्रक्रिया से मतदाताओं को सजग और सावधान रहने की जरूरत है.
कांग्रेस कभी भी सनातन धर्म के पक्ष में नहीं खड़ी होती है. हमेशा राजनीतिक नजरिये से सनातन का राजनीतिक उपयोग करने की ही कोशिश करती है और इस बार भी एमपी के चुनाव में कमलनाथ द्वारा यही किए जाने की कोशिश हो रही है.
तुष्टिकरण की राजनीति कांग्रेस की बुनियाद रही है. एमपी में हिंदुत्व के संतुष्टिकरण को चुनावी लाभ का हथियार बनाने की कोशिश शायद इसलिए कांग्रेस कर रही है कि उसे लगता है कि मुसलमानों के सामने कांग्रेस के अलावा मध्यप्रदेश में कोई विकल्प नहीं है. यद्यपि बीजेपी ने भी मुस्लिमों के गरीब तबकों में अपनी पहुंच बढ़ाई है. मुस्लिम महिलाओं में भी तीन तलाक कानून हटाने के बाद बीजेपी के प्रति आकर्षण बढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है.
आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के साथ ही समाजवादी पार्टी और बीएसपी भी एमपी विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरेंगी. तीसरे दलों का बहुत अधिक आधार भले ही मध्यप्रदेश में नहीं हो लेकिन मुस्लिम मतदाताओं में कांग्रेस के हिंदुत्व की राजनीतिक चाल से यदि प्रतिक्रिया हुई तो तीसरे दल को थोड़ा बहुत समर्थन भी कांग्रेस के लिए भारी साबित हो सकता है.
देश में हिंदू-मुस्लिम की राजनीति का विकृत और विकराल स्वरूप तुष्टिकरण और उसके प्रतिक्रिया के स्वरूप में ही खड़ा हुआ है. आजादी के बाद लंबे समय तक देश में शासन करने वाली कांग्रेस के तुष्टिकरण के कारण ही प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदुत्व की राजनीति उभरी है. कांग्रेस आज भी इस गलती को दोहरा रही है. यूपी जैसे राज्यों में तो कांग्रेस का मुस्लिम आधार समाप्त हो चुका है. मध्यप्रदेश में यह चुनाव मुस्लिम मतदाताओं के बीच कांग्रेस की विश्वसनीयता को आंकने का बड़ा पैमाना साबित होगा.
कांग्रेस की सूची घोषित होने के बाद कमोबेश हर जिले में मचे घमासान की सूचनायें सोशल मीडिया पर भरी पड़ी हैं. टिकट वितरण में कई तरह के गोलमाल की भी खबरें सामने आ रही हैं. फर्जी लेटर, फर्जी बयान और फर्जी वायदे के पीछे असली इरादे जनता से छुप नहीं सकते हैं. कभी लेटर को फर्जी बता दिया जाता है कभी बयान को फर्जी बता दिया जाता है लेकिन राजनीति में फर्जी बातें उछालने का लंबा इतिहास है. मुफ्तखोरी की योजनाओं के चुनावी वचन ‘प्राण जाए पर वचन न जाए' की तर्ज़ पर सामने आएंगे. गारंटियों का ऐसा संसार रचा जाएगा कि जैसे उन गारंटियों के बाद प्रदेश में रामराज्य आ जाएगा.
प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद आंतरिक असंतोष और बगावत का दौर बीजेपी और कांग्रेस दोनों में ही मचा है. बीजेपी ने चार किस्तों में प्रत्याशियों की सूचियाँ जारी कर अपने असंतोष का मैनेजमेंट करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त की है. यद्यपि बीजेपी से पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वालों की संख्या ज्यादा दिखाई पड़ रही है. कांग्रेस ने एक साथ 144 प्रत्याशियों की सूची जारी कर असंतोष की संभावनाओं को एक साथ सामने आने का मौका दिया है. शायद इसी कारण कांग्रेस में टिकट वितरण के बाद असंतोष ज्यादा उभरता दिखाई पड़ रहा है.
मध्यप्रदेश का यह चुनाव भी लहरविहीन चुनाव ही दिखाई पड़ रहा है. कांग्रेस और भाजपा दोनों जनाधार की दृष्टि से कड़ी टक्कर में दिखाई पड़ती हैं. पिछले 30 वर्षों में जितने भी चुनाव हुए हैं उन सब में दिग्विजय सरकार के खिलाफ जनाक्रोश के कारण भले ही बीजेपी को लंबी जीत मिली हो लेकिन उसके अलावा सभी चुनाव में दोनों दलों के बीच कड़ी टक्कर ही देखी गई है. 2023 का चुनाव भी इसी तरीके के दृश्य पैदा कर रहा है. किसी भी दल के पक्ष में कोई लहर का माहौल नहीं है. मतदान आते-आते सफल मैनेजमेंट चुनावी जीत का माहौल बना सकता है.
कांग्रेस द्वारा शुभ मुहूर्त में जारी प्रत्याशियों की सूची भी बगावत और घमासान को रोक नहीं पा रही है. जब राम के राज्याभिषेक का निर्धारित शुभ मुहूर्त भी वनवास का कारण बन सकता है, तब तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ के लिए सनातन धर्म-सभ्यता का उपयोग और प्रचार करने की प्रवृत्ति घमासान और बगावत को कैसे रोक सकती है?
शुभ मुहूर्त से नहीं शुभ कर्मों से सफलता मिलती है. अगर शुभ मुहूर्त ही सफलता की गारंटी होते तो फिर कमलनाथ की सरकार ही नहीं गिरती. ऐसा तो नहीं हो सकता कि बिना शुभ मुहूर्त देखे कमलनाथ ने शपथ ली होगी. दिखावा नहीं आंतरिक आस्था ही जीवन के ध्येय और लक्ष्य पूरा कर सकते हैं.