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मप्र में कांग्रेस की हसरतों का कारवां है यह यात्रा 

आशीष दुबे आशीष दुबे
Updated Wed , 27 Jul

सार

क्योंकि, मप्र काफी समय से कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं का गढ़ है और इन नेताओं के गुटों की 'राजधानी' भी..!

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विस्तार

नीरज ने लिखा था- 'जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा, जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा।' यह फिलॉसफी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के लिए सटीक है, क्योंकि तमिलनाडु से शुरू हुई राहुल की पदयात्रा की गठरी केरल, कर्नाटक, तेलंगाना के पड़ावों के बाद महाराष्ट्र में दाखिल होने पर अनचाहे विवादों से थोड़ी भारी' है। अब जबकि, यात्रा ने मप्र में दाखिल होकर अपना पौने चार सौ किमी का सफर शुरू कर दिया है तो यात्रा में अनचाहा वजन न बढे, यह जिम्मेदारी मप्र के कांग्रेस नेताओं की भी होगी। क्योंकि, मप्र काफी समय से कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं का गढ़ है और इन नेताओं के गुटों की 'राजधानी' भी।

मप्र में यात्रा के तेरह दिनों में जो 'माहौल' बनने के आसार हैं, उसका असर अगले ग्यारह महीने यानि चुनाव तक बरकरार रखना कमलनाथ की 'कलाकारी' पर ही निर्भर होगा। पिछले चुनाव से पहले भी राहुल ने मंदसौर के पास जबर्दस्त सभा करके कांग्रेस के लिये माहौल बनाया था, मप्र कांग्रेस को फायदा हुआ था, राहुल गांधी की यात्रा आर्थिक असमानता, सामाजिक ध्रुवीकरण व राजनीतिक तनाव के खिलाफ भारत को जोड़ने के मकसद से है लेकिन इसके सियासी निहितार्थ हैं, कर्नाटक का चुनाव सामने हैं, इसके बाद मप्र, राजस्थान जैसे चुनावी राज्य हैं, जो राहुल के रूट में हैं।

खास यह भी कि राहुल ने पहली बार आज हिंदी पट्टी में प्रवेश किया है। जहां कांग्रेस को साख बचाने कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। मप्र में कमलनाथ के सामने चुनौती भी है कि वह यात्रा का सियासी लाभ लेने के लिए खुद को पांच वर्ष पहले वाले 'निर्विवाद- अजातशत्रु' नेता के तौर पर कायम रखें। उन्हें दिल्ली से भोपाल भेजा गया था तो सारे कांग्रेसी गुट व नेता उनकी छतरी के नीचे आ गये थे। लेकिन पांच वर्ष बाद कमलनाथ का पार्टी के भीतर वह तिलिस्म कायम है या नहीं? अब इस पर बहुत 'इफ एंड बट' हैं।

कई सीनियर नेताओं के भी शिकवे हैं, कई हाशिये पर डूबते- उतराते नजर आते हैं। मगर भाजपा सरकार व उसके चेहरों के प्रति एंटी इंकम्बेंसी संघर्ष के समुंदर में 'लाइट हाउस' की तरह है। मप्र भाजपा व सीएम शिवराज की बेचैनी, आनन फानन बनते किसानों व आदिवासी योजनाओं के ड्राफ्ट व दौरे भाजपा की सतर्कता की कहानी कह रहे हैं। इसी मोड़ पर कांग्रेस के लिए जरूरी है कि पुराने विवादों की वह गठरी न खुले जो उल्टे कांग्रेस के सिर पर ही गिरती रही है, गड़े मुर्दे खोदने की बजाए भविष्य के चित्र उकेरने में ही यात्रा की भलाई है।

राहुल की पदयात्रा पर लौटें, तो वे अपने व कांग्रेस के लिये जमीन उर्वरा बनाते चल रहे हैं, पूरा लक्ष्य 24 का आम चुनाव है। कॉडर भी चार्ज हो रहा है, दूर जा बैठे कांग्रेसी भी जुड़ रहे हैं। खुद चंद्रशेखर की 80 के दशक की पदयात्रा राजनीतिक निहितार्थ से अछूती नहीं रही थी। करीब चालीस साल बाद ऐसी यात्रा के जरिए क्या राहुल खुद को चंद्रशेखर, विनोवा भावे की 'लीग' में शामिल कर सकेंगे और कांग्रेस को पराभव के दौर से निकाल सकेंगे?