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जिनको दिखती अडानी की कमाई, ज़रूरी है उनकी सफाई

सार

लोकसभा के तीसरे चरण के मतदान के पहले इंडिया गठबंधन शासित झारखंड में सियासी भ्रष्टाचार का आलम उजागर हुआ है. कांग्रेस विधायक दल के नेता झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के प्राइवेट सेक्रेटरी के नौकर के यहां पड़े छापे में 35 करोड़ से ज्यादा कैश जब्त हुआ है..!!

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विस्तार

    जहांगीर आलम नामक नौकर के यहां से जप्त कैश उसका तो नहीं हो सकता. नोट तो कम से कम झूठ नहीं बोलते. विपक्षी गठबंधन द्वारा  लगातार ED पर झूठे मामलों में विपक्षी नेताओं को फंसाने का आरोप लगाया जाता है. क्या यह जब्त नोट भी झूठे हैं? लोकसभा चुनाव में विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार को पीएम मोदी और भाजपा पहले से ही चुनावी मुद्दा बना रही है. पीएम लगातार कह रहे हैं, कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई तेज की जाएगी. 

    झारखंड के तो पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भ्रष्टाचार के मामले जेल में हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल में हैं. कांग्रेस गठबंधन में शामिल करीब-करीब सभी दलों के नेता मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जेल या बेल पर हैं. जांच प्रक्रिया को तो झूठ कहा जा सकता है लेकिन जप्त नोट तो भ्रष्टाचार का सच कह रहा है.

    विपक्षी नेता विशेष कर राहुल गांधी उद्योगपतियों की कमाई को भ्रष्टाचार की नज़र से देखते रहे हैं. अडानी और अंबानी की कमाई और संपत्तियां उनकी नजर में हमेशा खटकती हैं. हर चुनावी सभा में इन दोनों उद्योगपतियों के नाम के साथ केंद्र की बीजेपी सरकार को जोड़ते हुए, राहुल गांधी हमेशा भ्रष्टाचार की बात करते हैं. 

    झारखंड में जिन मंत्री के निजी सचिव के नौकर के यहां से नोटों का पहाड़ मिला है, वह झारखंड में कांग्रेस के विधायक दल के नेता हैं. कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को अब कांग्रेस जनों में भ्रष्टाचार दिखाई नहीं पड़ेगा. जहां भ्रष्टाचार नहीं है वहां तो उन्हें भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है और जहां भ्रष्टाचार से कमाई कर नोटों का पहाड़ आंखों के सामने खड़ा है, वहां आंखों के सामने अंधकार छा जाता है. 

    भ्रष्टाचार का जहांगीर आलम चुनाव में सियासी करप्शन का बड़ा मामला बनने जा रहा है. हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर राहुल गांधी सहित उनके गठबंधन के सभी नेता ED पर झूठे केस का आरोप लगाते थे. अब नोटों का पहाड़ तो उन सभी नेताओं के झूठ को उजागर कर रहा है. पश्चिम बंगाल में ED  ने जब एक मंत्री के करीबी के ठिकानों से 50 करोड़ से ज्यादा नगदी जप्त की थी, तब भी सियासी करप्शन के किरदार चुप्पी साथ गए थे. अब तो वहां शिक्षक भर्ती घोटाले का खामियाज़ा हजारों शिक्षक भुगत रहे हैं. जिनकी नौकरी उच्च न्यायालय के आदेश पर समाप्त हो गई है.

    विपक्षी दलों द्वारा शासित सरकारों और उनसे जुड़े नेताओं के करीबियों के घरों से जिस प्रकार नोट के बंडल मिल रहे हैं. उससे तो अब ऐसा लगने लगा है, कि ED ईमानदारी से काम कर रही है. झारखंड के नेताओं का तो DNA ही शायद भ्रष्टाचार है. पी. वी. नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए नोट पर वोट का कांड भी झारखंड के नेताओं ने अंजाम दिया था. झारखंड सरकार में एक आईएएस के करीबियों के ठिकाने से करोड़ों रुपए पहले जब्त चुके हैं. झारखंड में भ्रष्टाचार का सिलासी आलम ऐसे दौर में पहुंच चुका है, कि अब ED  का एक मुख्यालय झारखंड में बनाने की ज़रूरत है. 

    कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धनेंद्र साहू के ठिकानों से 200 करोड़ की नगदी पहले ही छापों में उजागर हो चुकी है. भ्रष्टाचार के जो नोट जब्त किए जा रहे हैं, उनकी कमाई के बारे में कांग्रेस की ओर से कभी भी कोई सफाई नहीं दी जाती. इसके विपरीत राहुल गांधी हमेशा अडानी और अंबानी की कमाई पर सवाल उठाते हैं. उनकी कमाई अगर नाजायज है, तो उसके खिलाफ़ कांग्रेस के नेताओं को राजनीति से ज्यादा अदालती लड़ाई लड़ने की जरूरत है. इसके साथ ही कांग्रेस से जुड़े नेताओं के करीबियों पर छापे में जो नगद राशि जप्त हो रही है, उसके बारे में तो कम से कम कमाई का जरिया ज़रूर बताना चाहिए.

    भ्रष्टाचार पर कांग्रेस का सियासी वार कोई असर नहीं डाल पाता, क्योंकि समय-समय पर कांग्रेस से जुड़े लोग ही भ्रष्टाचार के सिरमौर के रूप में जनता के सामने आते रहते हैं. सामान्य रूप से तो यह स्वीकार नहीं किया जा सकता, कि किसी भी राजनीतिक दल के कोई नेता अरबो रुपए कमाते रहें और केंद्रीय स्तर पर आलाकमान उससे अनभिज्ञ हो. आरोप तो ये भी लगाए जाते हैं,कि इस तरह की काली कमाई की हिस्सेदारी दिल्ली तक होती है.

    बीजेपी की ओर से कांग्रेस शासित राज्य सरकारों को तो दिल्ली के एटीएम के रूप में उपयोग करने का आरोप लगाया जाता रहता है. विपक्षी नेताओं का अक्सर यही आरोप होता है, कि केंद्र की बीजेपी सरकार जानबूझकर विपक्षी सरकारों को ही टारगेट कर रही है. ऐसा हो सकता है, कि इसके पीछे कोई राजनीतिक सोच हो, लेकिन नोटों का पहाड़ तो राजनीतिक नहीं है. नोटों का पहाड़ तो भ्रष्टाचार की हकीकत है. यह अलग बात है, कि अगर दूसरे दलों की सरकारों के लोगों के ऊपर भी बारीक नज़र डाली जाए तो, ऐसे मामले सामने आ सकते हैं. 

    कांग्रेस की जहां-जहां सरकारें हैं, वहां तो उनके सामने अवसर है, कि विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार को उजागर करें. राज्य सरकारों के पास भी आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो हैं. कर्नाटक राज्य में चुनाव के समय कांग्रेस ने बीजेपी की सरकार को 40% कमीशन वाली सरकार के रूप में अपने प्रचार अभियान में बताया था. कांग्रेस को कर्नाटक में विजय मिली उनकी सरकार बनी लेकिन इतने समय के बाद भी अभी तक बीजेपी के किसी नेता को भ्रष्टाचार के मामले में जेल में तो नहीं डाला जा सका. या तो कांग्रेस कार्रवाई से इसलिए डरती है, कि दूसरों पर कार्यवाही कहीं उनके लिए ही मुसीबत ना बन जाए.

    राजस्थान में भी अशोक गहलोत सरकार में भाजपा नेताओं के खिलाफ़ राजनीतिक आरोप तो बहुत लगाए थे, लेकिन 5 साल की सरकार में कभी कोई कार्यवाही नहीं कर सके. यहां तक कि सचिन पायलट ने बीजेपी के नेताओं पर लगे आरोपों को मुद्दा बनाकर जांच नहीं करने के लिए अशोक गहलोत के खिलाफ राजनीतिक आंदोलन भी किया.

    राजनीति में विश्वसनीयता से बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता. राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप विश्वसनीयता के आधार को ही तार-तार कर रहे हैं.  जब नोटों का पहाड़ उजागर होता है, तो फिर सारी ईमानदारी की बातें काफूर हो जाती हैं.  झारखंड के जहांगीर आलम तो मोहरा हैं. काली कमाई के बालम तो कोई और हैं.  करप्शन के बालम को जब तक जेल में नहीं डाला जाएगा, तब तक भ्रष्टाचार का सियासी आलम ऐसे ही चलता रहेगा. बंगाल के शिक्षा भर्ती घोटाले में तो शिक्षकों की भर्ती निरस्त हो गई है. लेकिन झारखंड में यह जो नोटों का पहाड़ मिला है, यह सरकार के किन कामों में घोटाला कर कमाया गया है. जनता के किन हितों का कत्ल करके यह नोट इकट्ठे किए गए हैं, उसकी भी जांच होना चाहिए.

     दूसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर कभी कोई खुद ईमानदार नहीं हो सकता. खुद को ईमानदार साबित करने के लिए आरोप लगाने से ज्यादा जरूरी ईमानदार आचरण करना है. राहुल गांधी भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे ज्यादा आवाज उठा रहे हैं. इसलिए उनकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है, कि कांग्रेस के नेता के करीबियों के यहां मिले नोटों के पहाड़ पर अपनी सफाई देश के सामने रखें. सियासी भ्रष्टाचार पर अपना नजरिया गठबंधन की राजनीति से ऊपर उठकर देश को बताएं. दूसरों को कटघरे में लाकर नोटों के पहाड़ को छुपाया नहीं जा सकता.

    विपक्षी गठबंधन के नेताओं और उनके द्वारा शासित सरकारों में भ्रष्टाचार के जहांगीर आलम आगे के चरणों में होने वाले लोकसभा के मतदान को प्रभावित करेंगे विपक्षी नेता या तो भ्रष्टाचार पर बात करना बंद कर देंगे या नोटों के पहाड़ पर भी कुछ बोलने की हिम्मत दिखाएंगे.  सियासी भ्रष्टाचार को रोकना लोकतंत्र की सबसे बड़ी सेवा होगी. लोकसभा चुनाव में ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुना जाएगा, जो सियासी भ्रष्टाचार को रोकना अपना पहला राष्ट्र धर्म मानते होंगे. 

     चुनाव में काले धन के उपयोग को रोकने के लिए भी भ्रष्टाचार से ऐसी काली कमाई को रोकना बहुत जरूरी है. इलेक्टोरल बॉन्ड अवैधानिक हो गया है, लेकिन चुनाव में धन का उपयोग तो हो ही रहा है. झारखंड में निकला कैश तो बानगी है, ऐसे नोटों के पहाड़ ना मालूम कहां-कहां रखे होंगे. एक अकेली ED इतने बड़े देश में कहां-कहां और कितने छापे डाल पाएगी. भ्रष्टाचार रोकने की नियत तो अच्छी है, जब नियत अच्छी है, तो नतीजे भी भले समय लगे लेकिन अच्छे ही निकलेंगे.