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वर्षा: रणनीतिक प्रबंधन बेहतर हो..!

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 09 Sep

सार

देश में इस साल वर्षा ज्यादा होती समझ आ रही है. वर्षा ज्यादा हो पर बादल फटने जैसी आपदा न आये. वैसे बादल फटने की एक दो घटना हो चुकी है..!

janmat

विस्तार

भोपाल में पावस ऋतु की चर्चित घटना भदभदा के गेट खुलना होती है| यह घटना इस बात का संकेत है, भोपाल का बड़ा तालाब पूरा भर गया है मतलब वर्षा भरपूर हुई है| देश में इस साल वर्षा ज्यादा होती समझ आ रही है| वर्षा ज्यादा हो पर बादल फटने जैसी आपदा न आये| वैसे बादल फटने की एक दो घटना हो चुकी है|  बोलचाल की भाषा में ज्यादा वर्षा को बादल फटना भी कह देते हैं,परन्तु तकनीकी रूप से यह अतिश्योक्ति है|

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, जब एक छोटे क्षेत्र में वर्षा-वृष्टि की मात्रा 10 सेंटीमीटर प्रति घंटा दर्ज हो तो उसे बादल-फटना कहा जाता है। अनेकानेक प्रबंधनों, राहत और जोखिम घटाने के लिहाज से 10 से.मी. प्रतिघंटा से कम तीव्रता वाली बारिश को भी बादल फटने की श्रेणी में  प्रशासन रख देता है| मौसम विभाग और जिला प्रशासन कभी एकमत नहीं होता यह  हर मौसम की भारत में त्रासदी है| अभी तो जिस तरह बादल फटने की खबरों ने खतरनाक अनुपात धारण कर लिया है, उनका रणनीतिक प्रबंधन बेहतर करने की जरूरत है।

सरकार आज की तारीख तक, घटना होने के बाद मुख्य जोर बचाव कार्य, निकासी और राहत उपायों पर केंद्रित होती आई  है, जबकि आपदा प्रबंधन संहिता यानी तैयारी, प्रतिक्रिया, उबरना और राहत पर काम किया जाना चाहिए, जिसके तहत घटना से पहले वाले आरंभिक संकेत भांपकर चेतावनी, राहत और जोखिम घटाने के उपाय शुरू किए जाने पर बल है, पर देश में ऐसा हो नहीं रहा है।

आपदा-उपरांत आकलन के अध्ययन दर्शाते हैं कि किस किस्म के विपत्ति-पूर्व उपाय करना सुरक्षित, आर्थिक रूप से व्यावहारिक और फायदेमंद रहते। जिन जगहों पर बादल फटने की संभावना अधिक है उनकी शिनाख्त और जोखिम मानचित्रण करके, इन जगहों पर प्रबंधन कार्य पहले ही शुरू किया जा सकता है।

वैसे अब तक समय पूर्व बादल फटने की पूर्व चेतावनी देना वाला तंत्र विकसित नहीं हो पाया है। डॉपलर राडार, जो कि मौसम में अप्रत्याशित बदलावों का पूर्वानुमान 3 से 6 घंटे पहले लगा लेते हैं, बादल फटने की पूर्व-चेतावनी में सहायक हो सकते हैं। यह प्रणाली पश्चिमी और पूरबी हिमालयी पर्वतों के अलावा मैदानों में भी कुछ जगहों पर स्थापित की जा चुकी है, जिनकी गिनती फिलहाल 33 है।

भारी बारिश या बर्फबारी से संबंधित बहु-आपदा पूर्व-चेतावनी तंत्र में निरंतर बढ़ते उपयोग से इनकी उपस्थिति बढ़ती जा रही है। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान विभाग इन्हें और उन्नत करवाकर संख्या 90 करना चाहता है जिससे भारी बारिश एवं बादल फटने का पूर्वानुमान कम से कम दो दिन पहले लगाने में मदद मिले और समय रहते इंसान-पशुधन-कीमती सामान हटाया जा सके।

वर्षा ऋतु से पहले इंसानी और पशुधन का जानी नुकसान कम से कम हो, यह सुनिश्चित करने की खातिर हर साल पूर्व तैयारी करना, जैसी कवायद  एक अच्छी रिवायत की तरह शुरु की जा सकती है। यह कदम बादल फटने का जोखिम घटाने में आधा काम पूरा कर देंगे।

राहत उपाय जैसे कि लोगों-पशुओं को घाटी से निकालकर सुरक्षित ऊंचाई पर पहुंचाना, बुनियादी ढांचे की उसारी, नदी-नालों से परे हटकर और बाढ़-सतह से ऊपर घर एवं व्यावसायिक भवन निर्माण, बरसाती एवं बाढ़ जल के बेहतर निस्तारण-प्रबंधन से आपदा जनित हानि न्यूनतम की जा सकती है।

ढलानों से आने वाले पानी के बहाव का प्रबंधन, जो पर्वतीय बृहद परिदृश्य को स्थायित्व दे और भू-स्खलन, अचानक उफानी वेग, गाद प्रवाह और जमीन धंसने जैसी घटनाएं रोकने में मददगार हो, वह अपनाने की जरूरत है। यह रणनीतिक उपाय पहले उन जगहों पर क्रियान्वित किए जाएं, जहां विपत्ति आने की संभावना सबसे अधिक हो।

इसी तर्ज पर मैदानों में भी, बरसाती पानी का निर्बाध प्रवाह अत्यधिक वर्षा एवं बादल फटने पर इंसानी, पशु और ढांचों की ज्यादा हानि रोक सकता है। पंचायती राज निकायों के स्रोतों की क्षमता और काबिलियत, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, गैर-सरकारी संस्थान और समुदायों को साथ जोड़कर, अचानक बाढ़ और बादल फटने के बाद वाले राहत प्रबंधनों को लगातार सुधारा और सुदृढ़ किया जा सकता है। भारी बरसात और बादल फटने के बाद उभरने वाले छूत के रोगों से भी निपटना जरूरी है।