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हिंसक प्रदर्शन वॉर अगेन्स्ट नेशन

सार

लेह की हिंसक घटनाओं की जांच हो रही है. इसके पीछे का सच सामने आएगा. बिना जांच के यह सच तो दिख ही रहा है, कि GEN-Z को भड़काया जा रहा है. सियासी मंचों से उन्हें उकसाया जा रहा है..!!

janmat

विस्तार

   नेपाल की स्ट्रैटेजी पर देश में अराजकता सियासी लक्ष्य बन गया है. लेह की घटनाओं के लिए केंद्र सरकार सोशल एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक के भड़काऊ भाषणों को जिम्मेदार बता रही है. इसमें विदेशी साजिश का भी आरोप लग रहा है. सोनम वांगचुक को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
    बीजेपी ऑफिस में आग लगाई गई है. बीजेपी हिंसा भड़काने के लिए कांग्रेस को दोषी बता रही है. इसके लिए कांग्रेस के स्थानीय पार्षद के फोटो, वीडियो जारी किए गए. इस पार्षद के राहुल गांधी के साथ फोटो भी सार्वजनिक किए गए हैं. ऐसी किसी भी घटना की जड़ तो सियासत से ही निकलती है. नेपाल, बंगाल, श्रीलंका में भी ऐसा ही हुआ.

    हिंसा के लिए भाजपा, कांग्रेस को दोष दे रही है, तो कांग्रेस भाजपा पर जनभावनाओं के अनादर का आरोप लगा रही है. जब दोनों ही एक दूसरे को इसके लिए दोषी बता रहे हैं, तो इतना तो तय है कि इसके पीछे सियासत है. आजकल ऐसा ही हो रहा है, जिसमें देश की संवैधानिक व्यवस्थाओं की सत्यनिष्ठा पर सवाल खड़े कर संदेह पैदा किया जा रहा है. 

    सियासत के कारण देश के नागरिक बंटे हुए हैं. एनजीओ बंटे हुए हैं. सबका लक्ष्य अपना वेस्टेड इंटरेस्ट है. देश हित में किसी की रुचि नहीं दिखती है. विदेशी चंदा लेकर ऐसे काम किए जा रहे हैं, जो आतंकवाद, अलगाववाद, लव-जिहाद और धर्मांतरण जैसे राष्ट्र विरोधी कृत्य हैं. लेह घटना में भी जिन सोशल एक्टिविस्ट का नाम आ रहा है, उन पर भी विदेशी चंदा लेने का आरोप लग रहा है. 

    केंद्र सरकार ने इस संबंध में उनका लाइसेंस रद्द कर दिया है. सीबीआई जांच चालू हो गई है. सोशल एक्टिविस्ट अपनी सफाई में कह रहे हैं कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है.

     भाजपा और कांग्रेस की राजनीतिक लड़ाई अपनी जगह है, लेकिन इससे देश हित प्रभावित नहीं होना चाहिए. भाजपा, कांग्रेस से ऊपर देश है.

    जम्मू-कश्मीर के मामले में धारा 370 हटाने का जब इतिहास रचा गया था, तभी केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख का जन्म हुआ था. इस निर्णय का व्यापक स्वागत किया गया था. अब जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ण राज्य का दर्जा मांगा जा रहा है. केंद्र सरकार सिद्धांतत: इस पर सहमत हो चुकी है, कि पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा. सवाल केवल वक्त का है.

    जम्मू-कश्मीर का पार्ट लद्दाख अब केंद्र शासित प्रदेश है. वहां की आबादी आदिवासी बाहुल्य है. पूर्ण राज्य और आदिवासियों के लिए संविधान की छठवीं अनुसूची लागू करने की मांग पर चर्चा चल रही है. जन भावनाओं के अनुरूप कदम उठाए जाना चाहिए. सत्ता निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में जरूरी है. सीमावर्ती राज्य होने के कारण राष्ट्रीय संप्रभुता और सुरक्षा की दृष्टि से हर कदम का आंकलन महत्वपूर्ण है. 

    सभी राजनीतिक दलों का युवाओं के प्रति कैरेक्टर एक जैसा ही दिखता है. राहुल गांधी जो युवाओं के चैंपियन बनते हैं उनकी पार्टी द्वारा शासित राज्य कर्नाटक में सरकारी भर्ती की मांग को लेकर युवाओं का प्रदर्शन हुआ. कम से कम अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्य में तो युवाओं के साथ उन्हें न्याय करना चाहिए. ताकि उनकी बात की विश्वसनीयता बन सके. भाजपा शासित राज्य उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा का पेपर लीक होने पर आंदोलन तेज हो गया है. दो राज्य, दो पार्टियों की सरकारें, लेकिन युवाओं की समस्याएं  एक जैसी हैं. 

     राजनीति में भड़काऊ भाषा का उपयोग बढ़ता जा रहा है. चोरी और बम जैसे शब्द ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस का एजेंडा बन गया है. भाषा की शिष्टता खत्म हो गई है. ऐसा लगता है कि जब तक राजनीतिक भाषा अशिष्ट नहीं होगी तब तक उसको नोटिस नहीं किया जाएगा. गाली-गलौज की राजनीति इसी का परिणाम है. 

     चाहे सत्ता हो या विपक्ष हो, लीडर की समझ और अनुभव पार्टी और गवर्नेंस की दिशा तय करता है. इतिहास यही बताता है, कि बड़े और अनुभवी नेता भी ऐसे फैसले कर देते हैं, जो उन्हीं के लिए ही जानलेवा साबित हो जाते हैं. इंदिरा गांधी का ऑपरेशन ब्लू स्टार उनके लिए ही प्राणघातक साबित हुआ. इसी प्रकार श्रीलंका शांति प्रयासों के लिए सेना भेजने का राजीव गांधी का निर्णय आत्मघाती साबित हुआ. 

    इन घटनाओं से सीख मिलती है, कि लीडर चाहे सरकार में हो चाहे विपक्ष में हो, उसे अपनी ज़िद पर चलने की बजाय जन भावनाओं को समझते हुए आगे बढ़ना चाहिए.जो सोशल एक्टिविस्ट हैं, उन्हें भी पब्लिक सेंटीमेंट का दुरुपयोग करने से बचना चाहिए. रोटी कोई भी सेके घर तो आम आदमी का जलता है. 

    भाजपा, कांग्रेस देश नहीं हैं. देश इनके ऊपर है, जो भी राजनीति हो, उससे देश हित प्रभावित नहीं होना चाहिए. भारत की संवैधानिक संस्थाओं की इंटीग्रिटी ऐसी है कि प्रधानमंत्री का भी चुनाव रद्द हो जाता है.

     हिंसक विचार और अशिष्ट शब्द, राजनीतिक व्यक्तित्व का विकास बाधित करते हैं. कोई भी राजनीति वॉर अगेंस्ट नेशन तो नहीं हो सकती.