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जहां ‘आई’ वहां व्यक्ति के आकार की परछाई

सार

आई लव मोहम्मद के एहसास को विवाद का विषय बना दिया गया है. लव जोड़ता है, लेकिन जब यही तोड़ने लगे तो फिर विषाद बन जाता है..!!

janmat

विस्तार

    कानपुर से आई लव मोहम्मद के पोस्टर का विवाद देशव्यापी हो गया. इसे धार्मिक स्वतंत्रता से जोड़ा जाने लगा. अब तो आई लव महादेव का नारा भी चलने लगा है. असीम से लव आत्मा की प्रार्थना है. जहां लव ‘आई’ से शुरू होता है. व्यक्ति के स्वार्थ से जुड़ता है. इस विवाद में भी ऐसा ही दिख रहा है. अब तो आई लव योगी, आई लव अखिलेश और आई लव राहुल के पोस्टर भी चस्पा होने लगे हैं. 

    पहले व्यक्ति का लव जिहाद सियासी टकराव का कारण बनता था. अब असीम से लव पर विवाद खड़ा किया जा रहा है. देश के कई स्थानों पर दंगे जैसे हालात बन गए. बरेली में तो पुलिस पर पत्थर चले. सरकार ने भी सख्ती दिखाई. इस पर हर दल राजनीति कर रहा है. अपनी आस्था के अनुसार भगवान, ईश्वर, देवी-देवता, पैगंबर से प्रेम पर किसी को आपत्ति नहीं है. 

    लव के तीन लेबल हैं. पहले शरीर का लेवल है. दूसरा मन का और तीसरा आत्मा का लेवल है. पैगंबर आत्मा का लव है. यह अनुभूति है, प्रार्थना है, वह दिखावा नहीं हो सकता. सामान्य रूप से लव का जो मतलब निकाला जाता है, वह शरीर से ही जुड़ा होता है. लव जिहाद का स्वरूप शरीर का ही रूप है. प्रार्थना का रूप, ईश्वर से आत्मा के लव का स्वरूप है. यही असली सन्यास है. यही असली त्याग और समर्पण है. इसे ही सही मायने में मोक्ष माना जाता है. 

    जो जीवन की सद्गति का प्रतीक है, उसे तुच्छ कारणों  से दुर्गति का कारण बनाना दुर्भाग्यजनक है. आई लव मोहम्मद का इजहार धर्म के नाम पर जिसने और जहां से भी शुरु किया, वह अंत में जाकर आई लव योगी, अखिलेश और राहुल गांधी पर पहुंच गया. इससे यही लगता है, कि इस सब के पीछे सियासत काम करती है. धर्म में दिखावे का कोई स्थान नहीं है, लेकिन वर्तमान दौर दिखावे का ही चल रहा है. 

    प्रार्थना स्थल पर प्रार्थना के लिए लोग जाते हैं और उसका दुरुपयोग शक्ति प्रदर्शन के रूप में किया जाना कहां तक जायज़ माना जाएगा. खासकर मुस्लिम समुदाय में जुम्मे की नमाज़, प्रार्थना का पवित्र अवसर होता है. अब अक्सर ऐसा हो रहा है, कि सरकार या किसी भी बात के विरोध के लिए जुम्मे की नमाज़ के लिए इकट्ठे समुदाय को शक्ति प्रदर्शन के लिए उपयोग कर लिया जाता है. जब धार्मिक भावना से लोग इकट्ठे हुए हैं, तो उनका किसी भी विरोध प्रदर्शन के लिए उपयोग धर्म के नज़रिए से जायज नहीं माना जा सकता. 

    सामान्य शरीर की भाषा में लव का कोई प्रतीक होता है. पोस्टर भी एक प्रतीक है. जो संप्रदाय हजरत बल दरगाह में भारत के प्रतीक चिन्ह अशोक स्तंभ को इस्लाम के विरुद्ध मानता है, उसको तोड़ देता है, उसी संप्रदाय के अनुयाई पोस्टर पर आई लव मोहम्मद को अपना धार्मिक दायित्व बताते हैं. जिस धर्म में बुतपरस्ती का विरोध है, उसमें किसी भी प्रतीक पर आस्था व्यक्त करने पर धर्म गुरुओं को अपना दृष्टिकोण जरूर बताना चाहिए.

    मोहब्बत की दुकानों से नफरत बेचने का यह पहला मामला नहीं है. इस नाम पर सबसे बड़ी दुकानें सियासत में खुली हुई हैं. धर्म को हथियार बनाया जा रहा है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में मोहब्बत की दुकान चला रहे थे. अब वह दुकान चोर, एटम बम, हाइड्रोजन बम की भाषा तक पहुंच गई है. इस सब के पीछे सियासत के अलावा कुछ नहीं हो सकता.    

    सांप्रदायिक राजनीति का यह लव रूप है. राजनीति के जाल में लव को ही विवादास्पद बना दिया गया है. जो लव निस्वार्थता,समर्पण, सेवा, बलिदान, भक्ति का प्रतीक है, उसे राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का माध्यम बनाया गया है.

    किसी भी डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट के किसी भी काम से असंतुष्टि के विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार हर नागरिक के पास है, लेकिन अगर धार्मिक भावनाओं को इस विरोध के लिए शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बनाया जाएगा तो फिर यह लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन ही होगा. प्रेम के जितने भी रूप होते हैं, उनमें ईश्वर या पैगंबर से प्रेम आत्मा का विषय है. इसे दिखावटी बनाना ही यह साबित करता है, कि यह वास्तविक लव नहीं है, बल्कि कोई सियासी लय है.

    शरीर के स्तर पर लव होने से मस्तिष्क में हार्मोनल और न्यूरो केमिकल बदलाव होते हैं. इसमें उत्साह सुख और शारीरिक प्रतिक्रियाएं देखी जाती हैं. जब असीम के साथ आत्मा का लव कहीं भी उतरता है, तो वह पैगंबर बन जाता है. पैगंबर मोहम्मद की आत्मा में असीम का वही लव उतरा था. उसको पोस्टर में दिखाना और उसके नाम पर विवाद करना धर्म का वास्तविक स्वरूप नहीं है.

    लव एक भाव है, वह मोहम्मद और महादेव दोनों में एक जैसा काम करता है. आई लव मोहम्मद के नाम पर शुरू हुआ विवाद फसाद का रूप नहीं ले, यह सबकी जिम्मेदारी है. हम भारत के लोग पहले हैं, आई, माई और यू बाद में.