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मौसम और बयार में फैला भ्रष्टाचार, किधर खोजें भ्रष्ट और किधर ईमानदार?

सार

मौसम, खानपान, रीति रिवाज, परंपराएं और मान्यताएं अलग-अलग हैं लेकिन भ्रष्टाचार की बयार चारों कोनों में एक जैसी ही दिखाई पड़ रही है. बहुत प्रसिद्ध दोहा है ‘मौसम कैसा भी हो कैसी चले बयार, बड़ा कठिन है भूलना पहला पहला प्यार’ कोई भी अपना पहला प्यार तो नहीं भूलता लेकिन किसी को भी अपना भ्रष्टाचार कभी याद नहीं रहता. प्यार अपना याद रहता है और भ्रष्टाचार दूसरे का याद रहता है..!

janmat

विस्तार

आजकल तो भ्रष्टाचार के इतने मामले सामने आ रहे हैं कि लग रहा है कि भ्रष्टाचार ही पहला प्यार बन गया है. अगर एक दिन की ख़बरों पर ही नजर डाली जाए तो भ्रष्टाचार की खबरों से दिमाग चकराए बिना नहीं रह सकता. आज जॉब के बदले जमीन घोटाले में देश में 20 स्थानों पर ईडी द्वारा छापे डाले गए हैं. दिल्ली के शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया की ईडी ने गिरफ्तारी कर ली है. भाजपा भ्रष्टाचार पर आप के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन कर रही है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी ईडी में शराब घोटाले की पूछताछ के लिए दिल्ली पहुंच गई हैं. विपक्षी नेताओं द्वारा जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर प्रधानमंत्री को लिखे पत्र पर बीजेपी इन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने के आक्षेप लगा रही है.

मध्यप्रदेश के बड़े समाचार पत्र में बड़ी खबर प्रकाशित हुई है कि कैसे भ्रष्टाचार में पकड़े गए अधिकारियों को बाद में पदोन्नति मिल गईं हैं. नए प्रभार और जिले मिल गए हैं. रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद भी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है. इसके विपरीत दोषी अधिकारियों को तरक्की और संरक्षण मिल गया है.

घोटाले पर घोटाला सामने आ रहा है. एक दूसरे पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कौन सफेद है और कौन काला है? जांच एजेंसियों पर भी प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं? सवाल यह है कि भ्रष्टाचार के प्रकरणों में कनविक्शन रेट इतना कम क्यों आ रहा है? क्या घोटाले भी मारने और बचाने के नए घोटाले के रूप में काम आने लगे हैं? सरकारों के राजनीतिक नेतृत्व ईमानदारी से भ्रष्ट गतिविधियों को रोकने की कोशिश भले करते हों लेकिन ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम इतना जटिल और आंतरिक हितों से इतना गुंथा हुआ है कि कालांतर में सारे मामले रफा-दफा ही होते दिखाई पड़ते हैं.

केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर इस समय विपक्षी दलों द्वारा पूरी ताकत से आवाज उठाई जा रही है. जांच एजेंसियां जिस तरह की कार्यवाही कर रही हैं उससे यही लगता है कि शायद यह विरोध घोटालों में जांच की प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए किया जा रहा है. यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि केंद्र की बीजेपी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियों के माध्यम से उनको फंसाने का काम कर रही है.

कई राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें भी काम कर रही हैं. उन राज्यों में भी बीजेपी का राजनीतिक सिस्टम प्रभावशील है. यदि राजनीतिक नजरिए से ही कार्यवाही की जाती तो वह राज्य सरकारें अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई क्यों नहीं कर सकती? इसका मतलब है कि बिना तथ्य और प्रमाण के जांच एजेंसियां किसी पर भी हाथ नहीं डालती.

कर्नाटक में बीजेपी विधायक के बेटे रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त द्वारा गिरफ्तार किए जाते हैं. उनके घर से छापों में करोड़ों रुपए नकद बरामद होते हैं. वहां तो बीजेपी की ही सरकार है फिर बीजेपी के नेता के परिवार पर ही यह कार्यवाही कैसे संभव हो सकी है? इसका मतलब है कि जहां भी भ्रष्टाचार की जानकारी तथ्यों के साथ मिलती है वहां कार्यवाही सुनिश्चित होती है. दलीय आधार पर भ्रष्टाचार के मामलों में राजनीतिक बयानबाजी या पत्र व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जितने तरीके के आरोप गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए और उसके बाद लगाए गए हैं उतने आरोप शायद किसी भी नेता पर नहीं लगाए गए होंगे. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं लगाए जा सके हैं. नेतृत्व जब बेदाग होता है तब ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही को गति मिलती है. 

पश्चिम बंगाल में राज्य के मंत्री से जुड़े ठिकानों से ₹50 करोड़ से ज्यादा की नकदी बरामद होना क्या दर्शाता है? शिक्षा भर्ती घोटाले में जिस तरह से लोगों को लूटा गया है उस पर जांच की कार्यवाही को भटकाने के लिए राजनीतिक कदम कहां तक जायज है? हर सत्ताधारी नेतृत्व ईमानदारी से भ्रष्टाचार के मामलों में सख्ती के साथ कदम उठाने लगे तो फिर राजनीतिक आवाजें आना बंद हो जाएंगी. कोई एक ही दल नहीं है जो पूरे देश में सब जगह सत्ता में हो. जो भी भ्रष्टाचार में लिप्त होगा वो किसी भी दल का हो, दंड पाने से बच नहीं सकेगा.

पूरी दुनिया आज बीपी और शुगर की बीमारी से ग्रस्त है. बीपी ब्लड प्रेशर के अलावा भ्रष्टाचार पॉजिटिव के रूप में भी देखा जा सकता है. इस बीपी से तो कौन अछूता होगा? इस बीपी के शुगर की मिठास राजनीति में तो खुलेआम दिखाई पड़ती है. कलफ लगे कुर्ते बिना इस बीपी के चमकते नहीं रह सकते. इतनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि जिसे हम स्कीम समझते हैं कमबख्त वहीं स्कैम निकल जाता है. एक नया ट्रेंड दिखाई पड़ता है,जिसमें भ्रष्टाचार की पूर्व योजना के अंतर्गत नीतियों और योजनाओं को अंतिम रूप दिया जाता है. इससे जुड़े जो भी स्टेकहोल्डर होते हैं वह सब मिल कर जन-धन की बंदरबांट कर लेते हैं. जनता को तो ऐसे घोटालों का पता ही नहीं चलता.

सत्ता में पालाबदल के ऐसे हालात हैं कि कल जो जीजा था वह आज साला हो गया है. आज का निर्धन कल का लाला हो गया है. भ्रष्टाचार के कारण देश में जो हालात बन रहे हैं उससे न केवल लोकतंत्र कमजोर हो रहा है बल्कि इससे देश की मजबूती भी प्रभावित हो रही है. ऐसे हालातों में देश को बाहर वाले दुश्मन की ज्यादा जरूरत नहीं है. हमें अपनी कमजोरियों और गड़बड़ियों से ही सबसे पहले लड़ना है. 

इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन से जन्म लेने वाले राजनीतिक दल के दो बड़े नेता जेल के अंदर हैं. करप्शन के खिलाफ लड़ाई राजनीतिक लाभ के लिए सुनियोजित और प्रायोजित ढंग से लड़ने से कोई लाभ होने की संभावना नहीं है. इस लड़ाई में पूरी ईमानदारी की जरूरत है. सरकारों के नेतृत्व को भ्रष्टाचार मिटाने के लिए खुद को मिटने की सीमा तक लड़ने के लिए तैयार रहने की जरूरत है, तभी इस दिशा में कोई सार्थक परिणाम मिल सकते हैं.

 ब्यूरोक्रेसी और सिस्टम ऐसे मामलों को लटकाता है फिर पांच साल बाद चुनाव में परिस्थितियां अगर बदल गईं तो फिर तो उसे अपने मुताबिक निर्णय को अंजाम देने में ज्यादा कठिनाई नहीं है और अगर ऐसा नहीं हुआ तो भी राजनीति की नई परिस्थितियां साधने में ब्यूरोक्रेसी से विशेषज्ञ कोई नहीं होता.