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शराब संस्कृति के विस्तार का किसको फायदा ? सियासत, शौकीन, सेलर और सरकार: किसकी जीत किसकी हार? सरयुसुत मिश्र 

सार

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा घोषित आबकारी नीति में शराब सस्ती करने की घोषणा जन मन तक पहुंच गई. आबकारी नीति के निर्णय और इसे लागू करने की प्रक्रिया में मुख्य रूप से चार स्टेकहोल्डर दिखाई पड़ रहे हैं.आबकारी नीति में जो अहम बदलाव किए गए हैं| उसमें विदेशी शराब में 10 से 15% ड्यूटी कम की गई है, ताकि लोगों को सस्ती शराब मिले...

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विस्तार

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा घोषित आबकारी नीति में महंगाई के इस दौर में शराब सस्ती करने की घोषणा जन मन तक पहुंच गई है| आम आदमी जीवन यापन के लिए आवश्यक जरूरी वस्तुओं की महंगाई से त्रस्त था, उसे सस्ता शब्द सुनने की बड़ी चाहत है| लंबे समय के बाद पहली बार शराब सस्ते करने  की घोषणा सरकार ने की है| निश्चित ही आगे और भी वस्तुओं पर ड्यूटी और टैक्स कम होने की उम्मीद लोगों में बंधी है| जब शराब सस्ती हो सकती है, उस पर स्टांप ड्यूटी कम की जा सकती है, तो बाकी आवश्यक वस्तुओं पर टैक्स कम करने में सरकार को दिक्कत क्यों आएगी ?

आबकारी नीति के निर्णय और इसे लागू करने की प्रक्रिया में मुख्य रूप से चार स्टेकहोल्डर दिखाई पड़ रहे हैं| सबसे पहले तो सरकार है जिसने नई नीति निर्धारित की है| आबकारी से आय किसी भी सरकार  के राजस्व का मुख्य साधन होता है| इस नीति के निर्माण में निश्चित ही सरकार ने राजस्व वृद्धि के लिए रणनीति पर अमल किया होगा| सरकार का राजस्व बढ़ेगा, इसका मतलब है कि सरकार का तो हित राजस्व आय में वृद्धि करना प्रतीत हो रहा है| लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार के निर्णय सियासत से जुड़े होते हैं, सियासत को इस निर्णय से शायद यह लाभ हो सकता है कि शराब के शौकीनों का समर्थन बढ़े और उसका उन्हें राजनीतिक लाभ मिले| तीसरे  स्टेकहोल्डर शराब के शौकीन हैं जो अभी तक महंगी दर पर शराब खरीद रहे थे| नई नीति से उन्हें सस्ती शराब मिलेगी| इसलिए शौकीनों का हित भी नई नीति पूरा करेगी| जहां तक सेलर(ठेकेदार)  का सवाल है जो चौथा स्टेकहोल्डर है, निश्चित ही जब कोई चीज़  सस्ती होती है तो उसकी डिमांड बढ़ती है| अगर ऐसा होता है तो निश्चय ही सेलर लाभ प्राप्त कर अपना हित पूरा कर सकेगा| 

हर  लोकतांत्रिक सरकार के निर्णय जनहित को ध्यान में रखते हुए लिये जाते हैं| अब यह समझना पड़ेगा कि नई आबकारी नीति से  जनहित कितना हो रहा है? राज्य सरकारों की शराब नीति और नशा मुक्ति अभियान में हमेशा तकरार होती रहती है| कई राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है, मध्यप्रदेश में भी पूर्ण शराबबंदी की बात समय समय उठती रही है| पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने ऐलान किया है कि वह शराबबंदी के लिए व्यापक आंदोलन करेंगी| उनके इस एलान का ज़मीन पर उतरना बाकी है| मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के लोगों में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं और उनका पब्लिक कनेक्ट लाजवाब है| पब्लिक की फीलिंग से वह सदा कनेक्ट रहते हैं| 

आबकारी नीति में जो अहम बदलाव किए गए हैं| उसमें विदेशी शराब में 10 से 15% ड्यूटी कम की गई है, ताकि लोगों को सस्ती शराब मिले, लोगों को घर पर शराब रखने की सीमा भी बढ़ा दी गई है| अब लोग 4 गुना ज्यादा शराब घर पर रख सकते हैं| नई नीति 1 अप्रैल 22 से प्रदेश में लागू हो जाएगी| इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण निर्णय भी नई नीति में लिया गया है कि दुकाने कम्पोजिट होंगी यानि एक ही दुकान पर अंग्रेजी और देसी दोनों शराब मिल सकेगी| 

सरकार का दावा है कि प्रदेश में नई शराब की दुकानें नहीं खोली जाएँगी| नई नीति में  कंपोजिट शराब दुकानों की अवधारणा को समझने की जरूरत है| वाणिज्यिक कर विभाग के प्रशासकीय प्रतिवेदन के अनुसार 2020-21 में फुटकर विक्रेताओं की देसी मदिरा की दुकानें 2541 हैं, और विदेशी शराब की दुकानें 1070 हैं| नई नीति के निर्णय से देसी और विदेशी दोनों दुकानों पर दोनों तरह की शराब, उपभोक्ताओं को मिल सकेगी|  इसका मतलब है कि जिन 2541 स्थानों पर पहले विदेशी शराब नहीं मिलती थी, वहां भी अब विदेशी शराब मिलने लगेगी| स्पष्ट है कि नई नीति लागू होने के बाद अब प्रदेश में विदेशी शराब  3671 स्थानों पर मिलने लगेगी|

मतलब विदेशी शराब की उपलब्धता 1070 स्थानों से बढ़कर अब 3671 हो गई है| तो क्या इसे दुकानों की संख्या बढना नहीं माना जाएगा? तकनीकी रूप से इसे कुछ भी कहा जाए लेकिन विदेशी शराब की उपलब्धता के स्थान 3 गुना से ज्यादा बढ़ जाएंगे| इसी प्रकार देसी मदिरा उपलब्धता के स्थानों में भी वृद्धि हो जाएगी| इसके बाद भी सरकार का यह कहना कि प्रदेश में नई शराब दुकान नहीं खोली जाएंगी उसका कोई औचित्य दिखाई नहीं पड़ता|

एक और मुद्दा होम लाइसेंस का है| इसको समाज में शायद पसंद नहीं किया जाएगा| शराब के शौकीन भी घर परिवार से छुपकर शराब पीना पसंद करते हैं|  भारतीय  संस्कृति और समाज में दारु पीने की अभी पाश्चात्य देशों जैसी संस्कृति नहीं है| होम लाइसेंस की संस्कृति शराब की विदेशी संस्कृति को बढ़ाने का काम करेगी जो शायद समाज स्वीकार नहीं करेगा| माइक्रोब्रेवरीज खोलने का भी नई नीति में प्रावधान है| जब सरकार का हमेशा प्रयास रहता है कि शराबखोरी और नशाखोरी नहीं बढना चाहिए तब उसका उत्पादन बढ़ाने के बारे में सरकार को शायद नहीं सोचना चाहिए| मॉल में भी वाइन काउंटर खोलने का प्रावधान नई नीति में है| सरकार की आबकारी नीति मदहोशी को बढ़ाने का माध्यम बन सकती है| लेकिन हमें मदहोशी की नहीं होश को बढ़ाने के जरूरत है| नई नीति में सभी स्टेकहोल्डर की विन-विन  सिचुएशन है| लेकिन जनहित हमेशा की तरह इसमें भी हारता हुआ ही दिखाई पड़ रहा है|