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बदले बदले क्यों है हमारे सरकार के अंदाज़? मिशन 23 की तैयारी या कुछ और है राज़? सरयूसूत मिश्र 

सार

इंसान के जीवन में बदलाव नेचुरल प्रोसेस है. आदमी का चेहरा बदलता है, चाल ढाल बदलती है, रहन-सहन, खानपान भी बदलता है. सोच विचार बोली और भाषा बदलती है, साथी सहयोगी बदलते हैं. यहां तक की आका भी बदलते हैं और किस्मत की लकीरें भी बदलती हैं. बदलाव नेचुरल है लेकिन कई बार बदलाव हैरान करते हैं..!

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विस्तार

हमेशा सुनने को मिलता है कि यह आदमी इतना बदल जाएगा ऐसा तो कभी सोचा नहीं था| बदलना जरूरी है लेकिन बेसिक केरेक्टर नहीं बदलना चाहिए| जब बेसिक सोच, समझ, शैली, संस्कार और शिष्टाचार बदलता है, तब लोग हैरानी के साथ यह कहने के लिए मजबूर होते हैं कि “ऐसा बदलाव तो नहीं सोचा था”|

बदलाव कभी अच्छे दिन लाते हैं तो कभी निराश भी करते हैं:

मध्य प्रदेश में आज अगर सबसे चर्चित कोई विषय है तो वह शिवराज की कार्यशैली में आया बदलाव है| उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में काम करने वाले “नए शिवराज” को देखकर आश्चर्यचकित हैं| उनको अपने अनुभव और समझ पर भरोसा नहीं हो रहा है| सीधे-साधे सहज सुलभ, मौलिक सोच, सब के कल्याण के लिए समर्पित, जन कल्याण का कुदरती नेतृत्व, मौलिक योजनाओं का प्रणेता आज किस शैली के लिए चर्चित हैं ?

राजनीति में चुनाव जीतने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं| शिवराज का नया रूप लोगों को शायद इसलिए अटपटा लग रहा है क्योंकि मध्य प्रदेश के लोगों के दिलों में राज करने वाले शिवराज की ऐसी शैली कभी नहीं थी| मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर 2005 में आसीन होने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव शायद उनके लिए सबसे चुनौतीपूर्ण रहे| पार्टी के अंदर और विपक्ष की चुनौतियां बेहिसाब थी| 2008 का विधानसभा चुनाव शिवराज ने विपक्ष के भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच लड़ा था| 

शिवराज की शालीनता और सहजता में मध्यप्रदेश के भोले भाले लोगों ने उनमें अपना कुदरती नेता महसूस किया| उन पर लगाए गए सारे आरोप और कलंक को नकारते हुए जनता ने शिवराज को ईमानदार और निष्कलंक व्यक्ति मानते हुए भारी बहुमत से जीत दिलाकर अपने दिलों में बिठाया था| यह जीत शिवराज की जीत थी| क्योंकि उस समय भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी सक्रिय नहीं थे|

फिर 2013 के चुनाव देखें, 10 साल की Anti-incumbency और सरकार की तमाम कमियों के बाद भी प्रदेश वासियों ने शिवराज पर भरोसा किया| भाजपा फिर स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाने में सफल हुई| यह जीत भी शिवराज के भरोसे की ही मानी जाएगी| दो कार्यकाल तक उनकी कार्यशैली सहजता, सुलभता और जनकल्याण की नई-नई योजनाओं के शिल्पकार के रूप में मध्य प्रदेश के इतिहास पर दर्ज है|

शिवराज का तीसरा कार्यकाल पूर्व के दोनों कार्यकालों से कमजोर साबित हुआ है| उनकी कार्यशैली में बदलाव की शुरुआत भी उसी कार्यकाल में हो गई थी| 2018 में मोदी के साथ के बावजूद भाजपा को विधानसभा चुनाव में पराजय का मुंह देखना पड़ा| शायद विपक्ष के नेता के रूप में उनके चिंतन मनन से यह अमृत निकला कि उनको सख्त और कड़क नेता की छवि बनानी पड़ेगी| 

कांग्रेस में टूट के बाद शिवराज को फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली| 15 महीने के ब्रेक के बाद नए दौर में शायद उन्होंने नया स्वरूप और छवि गढने की सोची| पुरानी परिस्थितियों के बदलने के साथ उनकी शैली और कामकाज का तरीका भी बदल गया| अब उनसे मुलाकात सामान्य बात नहीं रह गई| एक खास चहार दीवारी में उनके सख्त प्रशासक की ग्रूमिंग होने लगी|

नए सलाहकार आ गए, नई सरकार बनाने के लिए अपने को प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मानने वालों ने शिवराज का नया रूप प्रोजेक्ट करने की कोशिश की| वैसे उनका यह कार्यकाल जन दृष्टि से 2023 में तय हो पायेगा, जो नई योजनाएं लाई गई, फिल्मों जैसे पार्ट-2 के रूप में लाई गई, इन्हें नया नाम भी नहीं दिया जा सका, इतने लंबे कार्यकाल में सब कुछ इम्यून हो गया|

इसलिए शिवराज का नया रूप तेजी से चर्चा में आ गया| वैसे भी निर्माण में लंबा समय लगता है लेकिन विध्वंस में तो एक क्षण लगता है| जनमानस नकारात्मक डायलाग और काम को शायद ज्यादा याद रखते हैं| इसलिए आजकल चाहे फिल्मों के डायलॉग हो या राजनीति के उनका स्तर और नकारात्मकता का भाव उनकी सफलता का पैमाना बन गया है|

राजनीतिक प्रेक्षकों को शिवराज का नया अवतार पच नहीं रहा है| जो शिवराज अपनी पुरानी शैली में प्रदेश में अपने दम पर दो चुनाव जीत चुके हैं, उन्हें शैली बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या वास्तव में उन्हें अपने टेस्टेड और प्रूव्ड ओरिजिनल कैरेक्टर को बदलने की जरूरत थी?

शिवराज ने भाजपा में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड कायम किया है| भारतीय राजनीति, पार्टी नेतृत्व और जनमानस में, शिवराज शालीन, सहज और सुलभ राजनेता माने जाते हैं| यही उनकी यूएसपी रही है| उन्हें कभी कोई सख्त प्रशासक नहीं मानता रहा है| उनकी राजनीतिक सूझबूझ में किसी को भी कभी भी शंका नहीं रही है| राजनीतिक सूझबूझ के मामले में तो मध्यप्रदेश में अब तक रहे चाणक्य माने जाने वाले मुख्यमंत्रियों को भी उन्होंने पीछे छोड़ दिया है|

उत्तर प्रदेश चुनाव में सख्त प्रशासन की छवि की चुनावी जीत में प्रभावी भूमिका मानी गई है| 5 साल के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्ती, प्रशासनिक दक्षता और क्षमता और यूएसपी बन गई| तब सलाहकारों ने सख्त प्रशासक की छवि को चुनावी जीत के लिए जरूरी मानते हुए, शिवराज के लिए बुलडोजर मामा का खिताब गढ़ा| यह कैसी सोच हो सकती है कि मामा कभी कड़क हो सकता है? मामा में दो मां का भाव है, मामा के साथ “बुलडोजर मामा” शब्द को अटपटा बना रहा है|

शिवराज ओरिजिनल हैं| उन्हें जन नायक बनने के लिए किसी और के रास्ते को अपनाने की जरूरत नहीं लगती| उनकी शालीनता, सहजता की बेसिक शैली हमेशा उन्हें जनता में लोकप्रियता और चुनाव में लाभ पहुंचाती रही है| मिशन-23 की तैयारियों में जुटे शिवराज का नया अवतार उनकी चुनावी वैतरणी पार करेगा यह तो वक्त बताएगा|

ओरिजिनल शिवराज 2005 से मध्य प्रदेश के लोगों के दिलों पर जब राज कर रहे हैं तो फिर उन्हें नए अवतार में लाने की क्या मजबूरी है? यह मिशन 23 की रणनीति है या भारतीय राजनीति में सख्त प्रशासक की छवि पेश करने की मजबूरी? यह धीरे-धीरे पता लगेगा|

दुनिया में अरबों लोग हैं लेकिन हर अंगूठे की लकीर अलग है| इसका मतलब परमसत्ता ने हर इंसान को अलग नेचर के साथ धरती पर भेजा है| हर इंसान की  बेसिक सोच और शैली भी अलग-अलग होती है| किसी के लिए सफल शैली दूसरे पर भी सफल हो ऐसा जरूरी नहीं होता| वैसे भी हर राज्य की परिस्थितियां अलग अलग होती हैं|

शांतिप्रिय मध्य प्रदेश की परिस्थितियां उत्तर प्रदेश से काफी अलग हैं| मध्य प्रदेश तो वही शिवराज चाहता है जो हर दर्द की दवा है| हर दिल की यही दुआ है कि राज चलता रहे| समाज चलता रहे| कामकाज चलता रहे| जीवन के आखिरी दिन तक यही अंदाज चलता रहे|