धर्म और संप्रदाय के नाम पर देश की एकता को बांटने की राजनीति हो रही है। घोटाले और भ्रष्टाचार राजनीति की रणनीति का हिस्सा हो गए हैं। राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में जांच करने वाली एजेंसियों की इज्जत खतरे में पड़ जाती है।
भारत में आज एक अजीब दौर चल रहा है। हर तरफ राजनीति का नग्न प्रदर्शन हो रहा है। धर्म और संप्रदाय के नाम पर देश की एकता को बांटने की राजनीति हो रही है। घोटाले और भ्रष्टाचार राजनीति की रणनीति का हिस्सा हो गए हैं। राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में जांच करने वाली एजेंसियों की इज्जत खतरे में पड़ जाती है। जांच एजेंसियों को राजनीति की सूली पर चढ़ाया जाता है। एक ऐसी राजनीतिक धुंध पैदा की जाती है, जिसमें भ्रष्टाचार छुप जाए और राजनीति के नाम पर सब कुछ बेदाग दिखाया जाए।
यह किसी एक राजनीतिक दल के लिए नहीं बल्कि भारत का पूरा राजनीतिक जगत कमोबेश इसी तरह की राजनीति का शिकार बना हुआ है। भ्रष्टाचार आज जहां देश में बड़ा मुद्दा बना हुआ है विकास के वांछित परिणाम भ्रष्टाचार के कारण ही नहीं मिल पा रहे हैं। आम इंसान को भ्रष्टाचार का जहर पीना पड़ता है।
देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस ने अपने युवराज के समर्थन में सत्याग्रह कर देश की राजनीति में भ्रष्टाचार के आरोपों पर सत्याग्रह की नई शुरुआत की है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर नेशनल हेराल्ड मामले में इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) द्वारा जांच की जा रही है। पूछताछ के लिए राहुल गांधी को आज ईडी द्वारा बुलाया गया था। जांच प्रक्रिया में शामिल होना देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। कांग्रेस ने अभी से कैसे मान लिया कि उनके नेता को फंसाने के लिए जांच एजेंसी द्वारा काम किया जा रहा है?
जांच एजेंसी सरकार की होती हैं एजेंसियों के अफसर ना भाजपा के होते हैं और न कांग्रेस के होते हैं। यह वही अफसर हैं जो कांग्रेस की सरकार के समय भी थे और आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। जांच एजेंसी पर सवाल करना कहां तक औचित्य पूर्ण है? यह कोई पहला अवसर नहीं है जब किसी पार्टी के नेता को जांच एजेंसी के सामने जाकर अपने बयान देने पड़े हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ कि पूरे देश में जांच एजेंसी के सामने जाने की प्रक्रिया को राजनीतिक सत्याग्रह के रूप में प्रचारित-प्रसारित किया जाए।
वैसे तो जांच एजेंसियों पर भरोसा किया जाना चाहिए लेकिन अगर मान भी लें कि कहीं कोई गड़बड़ हो सकती है, तो देश में अदालतें हैं। अदालतों ने हमेशा न्याय किया है। भारत की अदालतों पर परमेश्वर जैसा भरोसा वैसे ही नहीं किया जाता है।
जहां तक ईडी की जांच का प्रश्न है यह मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों की जांच करती है। ज्यादातर ये मामले दस्तावेजों के आधार पर पकड़ में आते हैं। बीते आठ साल की ही बात की जाये तो ईडी ने करीब एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच की है जबकि यूपीए के 9 सालों में यह आंकड़ा 4156 करोड़ था। इन मामलों में गवाही और सबूत की बहुत अहमियत नहीं होती। बैंक खातों, ट्रांजैक्शन और डॉक्यूमेंट के आधार पर ही मामले प्रमाणित हो जाते हैं।
नेशनल हेराल्ड का मामला भी ऐसा ही लगता है। यह कांग्रेस की ओर से अखबार की कंपनी को लोन देना, ब्याज माफ करना और बाद में नई कंपनी का गठन कर एसोसिएटेड जनरल्स लिमिटेड की संपत्ति को ट्रांसफर करने का मामला बताया जा रहा है। अगर यह सब कानून सम्मत किया गया है तो फिर कोई भी जांच एजेंसी क्या कर पाएगी? पूछताछ के लिए बुलाया गया है तो सामान्य रूप से जाकर अपना पक्ष बताया जा सकता था। इसको राजनीतिक रंग देना आजादी के समय से काम कर रही कांग्रेस पार्टी के लिए कहां तक जायज माना जाएगा?
राहुल गांधी से पूछताछ हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी सम्मन दिया गया है, उनसे भी पूछताछ होगी। सारा मामला स्पष्ट हो जाएगा। कांग्रेस जैसी पार्टी के खिलाफ कोई भी जांच एजेंसी बिना किसी आधार के कोई भी कार्यवाही करने की हिम्मत कैसे कर सकती है? नेशनल हेराल्ड और नवजीवन अखबार पूरे देश में जहां पहले कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी, वहां सत्ता के बड़े केंद्र हुआ करते थे। हर राज्य की राजधानी में इन अखबारों को सरकारी भूखंड दिए गए थे। इन भूखंडों की वर्तमान में क्या हालत है? यह पता किया जाएगा तो इसमें भी कई तरह की गड़बड़ियां सामने आ सकती हैं।
चुनाव परिणाम आते ही अगर जीत हुई तब तो ठीक और अगर हार हुई तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर आरोपों की झड़ी लग जाती है। वहीं पार्टी एक राज्य में जीत गई तो वहां ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं हुई और जिस राज्य में चुनाव हार गई उस राज्य में ईवीएम में गड़बड़ी हुई है। इस तरह के ही हालात जांच एजेंसियों के साथ हो रहे हैं।
केंद्रीय स्तर पर अपराधिक मामलों में जांच के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) काम करती है तो आर्थिक मामलों में इनकम टैक्स और इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) काम करता है। वैसे भी पिछले काफी दिनों से ईडी चर्चा में बनी हुई है। दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी के बाद वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि उनके मंत्री को फंसाया जा रहा है। उन्होंने तो यहां तक आरोप लगाया कि उनके उपमुख्यमंत्री को भी फंसाने के लिए ईडी द्वारा साजिश की जा रही है। महाराष्ट्र में तो दो मंत्री ईडी की जांच प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप अभी जेलों में कैद हैं। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे से भी ईडी पूछताछ कर रही है।
सीबीआई की तो ऐसी स्थिति हो गई है कि भाजपा विरोधी दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्य सरकारें सीबीआई जांच की अनुमति ही नहीं देती। देश के कम से कम 8 राज्यों में ऐसे हालात हैं कि बहुत सारे बैंक फ्रॉड और अन्य घोटालों के मामले में जांच इसलिए नहीं हो पा रही है कि संबंधित सरकारें अपने राज्यों में सीबीआई को अनुमति नहीं देती हैं।
राजनीति में एक अजीब फैशन है, जो दल विपक्ष में होता है उसके लिए सत्याग्रह आंदोलन क्रांति का सूत्रपात होता है और वही दल जब सत्ता में आ जाता है तो क्रांति और आंदोलन अपराध माना जाता है। जांच एजेंसियों पर आरोप हमेशा से लगते रहे हैं, देश में लंबे समय तक कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें काम करती रही हैं, उस समय भाजपा तो ताकत के साथ विपक्ष में भी नहीं थी तब भी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं और आज भी लग रहे हैं।
विपक्ष के साथ ही सरकार के ऊपर भी जिम्मेदारी है कि जांच एजेंसियों को राजनीति का माध्यम ना बनाया जाए। देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि न केवल न्याय होना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना चाहिए। जांच एजेंसियों के मामले में भी ऐसी प्रतिष्ठा होनी जरूरी है कि कोई भी जांच एजेंसी पर संदेह न किया जा सके। दुनिया के कई देशों में बड़े-बड़े पदों पर रहने वाले लोग भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए हैं और पदों से हटाए गए हैं। भ्रष्टाचार विरोधी माहौल भारत में भी मजबूत होता जा रहा है। बड़े से बड़े पद पर बैठे हुए व्यक्ति के मन में यह भय होना चाहिए कि कानून के अंतर्गत उसे भी सजा मिल सकती है। जांच एजेंसियों को संदेह से ऊपर रहकर देश के स्वाभिमान के लिए काम करने की कोशिश करना चाहिए।