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नारी पर नारी का वार, अस्मिता तार तार

सार

लोकसभा चुनाव की सियासी मंडी सज गई है. तीर और पत्थर उछलने लगे हैं. मुद्दों की फसल लहलहाने लगी है. ‘सियासी मंडी’ का शिकार ‘मंडी लोकसभा’ क्षेत्र बन गया है. कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत की अभद्र टिप्पणी भद्र समाज को भेद रही है. नारी का शोषण नारी के हाथों ही, जब होता है तब नारी ही अपना अस्तित्व खोने लगती है..!!

janmat

विस्तार

एक नारी  दूसरी नारी को ही ऐसी बात कह दे,जो नारीत्व को ही अपमानित करे? तो फिर नारी को ही रणचंडी बनकर ऐसी सोच सियासत को उसके आंगन में ही नाचने के लिए मजबूर करना नारी धर्म है. सुप्रिया के आंगन में मंडी की लोकसभा प्रत्याशी अभिनेत्री कंगना रनौत का रणचंडी स्वरूप राजनीति और नारी के रिश्ते को नई परिभाषा देंगे. सोनिया गांधी के नेतृत्व में नारी नियंत्रित कांग्रेस नारी सम्मान की रक्षा करने में क्यों असफल हो रही है? 

मुंबई में राहुल गांधी हिंदू धर्म में शक्ति का उल्लेख कर उससे लड़ाई का आवाहन करते हैं. नारी शक्ति में इसकी प्रतिक्रिया अभी खत्म भी नहीं हुई थी, कि मंडी की सियासी लड़ाई में स्त्री की अस्मिता ही तार-तार कर दी गई. कांग्रेस नेताओं को महिलाओं के कारण सियासी शिकस्त का राजनीतिक इतिहास है. सोनिया गांधी जब यूपीए सरकार का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ रही थी, तब सुषमा स्वराज ने सर मुडाने का क्रांतिकारी स्टैंड लेकर सोनिया गांधी के रास्ते को रोका था.

गांधी परिवार की परंपरागत सीट अमेठी में राहुल गांधी को नारी शक्ति के रूप में स्मृति ईरानी ने ही पराजित किया. भारत को महिला प्रधानमंत्री देने का गौरव रखने वाली कांग्रेस ऐसे सियासी दौर में पहुंच गई है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता नारी सम्मान की धज्जियां बिखेर रही हैं. सुप्रिया श्रीनेत अब यह सफाई दे रही हैं कि उनका सोशल मीडिया अकाउंट कई लोगों द्वारा हैंडल किया जाता है. उनमें से ही किसी ने उनके अकाउंट का दुरुपयोग कर कंगना रनौत  के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की है.

यह और बहुत गंभीर सवाल है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता का सोशल मीडिया अकाउंट किसी और द्वारा संचालित किया जा रहा है. कांग्रेस के वक्तव्य और सोशल मीडिया पर की जाने वाली टिप्पणियां कई बार विवाद का कारण बनती है. अकाउंट दूसरे लोग हैंडल करेंगे तब ही ऐसी परिस्थितियां  बनती हैं. किसी भी राजनीतिक दल के लिए ऐसी स्थितियां विस्फोटक ही कहीं जायेंगी.

भारतीय राजनीति में नारी शक्ति की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है. लोकसभा और विधानसभा में महिला आरक्षण का कानून बनने के बाद इस भूमिका में अभूतपूर्व वृद्धि होगी. आरक्षण का कानून भले कुछ समय बाद लागू होगा लेकिन इन लोकसभा चुनाव में नारी वंदन कानून का प्रभाव देखने को मिल सकता है. राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों का ऐलान किया जा रहे हैं. अभी तक जो भी प्रत्याशी घोषित हुए हैं, उनसे इतना तो कहा जा सकता है, कि प्रमुख दलों में इस बार महिला प्रत्याशियों की संख्या पिछले चुनाव की तुलना में निश्चित रूप से ज्यादा होगी.

महिला आरक्षण कानून बनने के बाद यह पहल लोकसभा चुनाव हो रहा है. साफ़ है कि वर्तमान चुनाव में महिला जागरुकता और महिलाओं की उत्साह पूर्ण भागीदारी, चुनावों  को दिशा दे सकती है. बीजेपी जहां नारी शक्ति को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रही है तो वहीं कांग्रेस की ओर से महिलाओं के लिए नकारात्मकता का संदेश ही निकल रहा है. राहुल गांधी के शक्ति से लड़ाई के विवाद को पीएम मोदी ने चुनावी सभाओं में उछालने की पूरी कोशिश की है.

अब सुप्रिया श्रीनेत की कंगना रनौत पर सोशल मीडिया टिप्पणी की नकारात्मकता हर महिला मन को उद्वेलित कर रही है. भले ही इसका खंडन किया जा रहा हो लेकिन राजनीति के तीर एक बार निकल गए तो फिर उनको समेटना बहुत मुश्किल होता है. भारतीय लोक मानस में ऐसी सामान्य धारणाओं को संस्कारों के रूप में स्थापित किया है. जिस पर अगर चला जाए तो सफलता निश्चित होती है. आम कहावत है कि दूसरों के लिए जो गड्ढे खोदते हैं, वह उस  गड्ढे में खुद ही गिरते हैं.  दूसरों के लिए खोदे गए गड्ढे, खुद के लिए कब्र साबित होते हैं. जो पत्थर दूसरों पर उछाले जाते हैं. जो विष बुझे तीर दूसरों पर छोड़े जाते हैं. उसका असर खुद की छाती पर ही होता है. 

कई बार तो ऐसा लगता है कि यह राजनीति की एक सामान्य शैली बन गई है, कि चुनाव के समय ऐसी बातों को उठाया जाता है, जिनका विकास और जनकल्याण से कोई संबंध नहीं होता है. चुनावी अभियानों में सारी चर्चा ऐसी फिजूल की बातों पर होती रहती है, और मूल मुद्दों से भटकते हुए जनादेश तात्कालिक उभरे मुद्दों पर दे दिया जाता है.

नारी के सम्मान पर हमेशा ही सवाल उठते हैं. सिनेमा और अन्य मनोरंजन के माध्यमों में द्विअर्थी संवादों और चित्रों से नारी सम्मान का मान मर्दन सामान्य बात हो गई है. कानून के अंतर्गत तमाम तरह की बंदिशे हैं. फिर भी इसे रोका नहीं जा सका है. छुरी चाहे तरबूजे पर रखी जाए, चाहे तरबूजा छुरी पर रखा जाए. कटना, तो तरबूजे को ही है. यही स्थिति नारी सम्मान की भी है. नारी का शोषण चाहे पुरुष द्वारा हो या उसके शोषण के लिए नारी ही जिम्मेदार हो. अंततः तो नारी सम्मान ही प्रभावित होता है.

राजनीति में पहले ऐसा नहीं होता था, कि महिलाओं के कैरेक्टर असैसनैशन का प्रयास किया जाए. अब तो पॉलीटिकल गिमिक इस स्तर पर पहुंच गए हैं,कि बहुअर्थी डायलॉग ही चर्चा को गति दे पाते हैं. नकारात्मकता को ज्यादा चर्चा मिलती है. शायद इसीलिए नकारात्मक डायलॉग राजनीति की ज़रूरत बन गए हैं. मौत के सौदागर और चौकीदार चोर जैसे पॉलिटिकल डायलॉग कोई अचानक नहीं निकले थे. यह सब सोची समझी पब्लिसिटी प्लानिंग का हिस्सा है.

यह अलग बात है, कि चुनावी परिणामों ने इन अभियानों और इनको चलाने वालों को धूर-धूसरित कर दिया था. इन लोकसभा चुनावों में नारी शक्ति निर्णायक शक्ति बनती दिखाई पड़ रही है. शायद यही कारण है, कि पीएम नरेंद्र मोदी समाज की सेवा में लगी महिला नेत्रियों से संपर्क स्थापित कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव में विजय का नाद स्त्री शक्ति ही है. विजय उसी को मिलेगी जिसका समर्थन स्त्री शक्ति करेगी. नारी के मान सम्मान की रक्षा सबका बुनियादी दायित्व है. सियासत की रणभेरी में नारी अस्तित्व अपनी अस्मिता और भूमिका को रणचंडी बनकर निभाएगी, ऐसा इन चुनावों का जनादेश साबित कर देगा.