कोरोना ने हमको लावारिस, अपनों को बेगाना बना दिया..! -महेश दीक्षित


स्टोरी हाइलाइट्स

कोरोना ने हमको लावारिस, अपनों को बेगाना बना दिया..!- सचमुच, ये तो कोरोना महामारी की क्रूरता की इंतहा हो गई है। कोरोना से होने वाली आम .....

कोरोना ने हमको लावारिस, अपनों को बेगाना बना दिया..! -महेश दीक्षित सचमुच, ये तो कोरोना महामारी की क्रूरता की इंतहा हो गई है। कोरोना से होने वाली आम और खास लोगों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सब तरफ कोरोना के खौफ से डरे हुए चेहरे और मौतों की क्रूरतम चीत्कारें सुनाई दे रही हैं। कोरोना संक्रमण का खौफ ऐसा कि हम लावारिस और अपने बेगाने हो गए हैं। बाप, भाई, पति, रिश्तेदार क्या, करीबी दोस्त भी अपनों की अंतिम यात्रा और जनाजे से परहेज करने लगे हैं। कई पीड़ित परिवार तो खुद ही लोगों से अनुरोध करने लगे हैं कि वे किसी कार्यक्रम में शामिल न हों, फेसबुक और व्हाट्सऐप लाइव पर ही अंतिम दर्शन करा दिया जाएगा। भोपाल के भदभदा विश्राम घाट पर गुरूवार को कोरोना संक्रमण से मृत लोगों के अंतिम संस्कारों का भयावह और डरावना मंजर था। इनमें से कुछ मौतें कोरोना संक्रमण, तो कुछ बीमारी के कारण हुई थीं। कई बार किसी एक शव के साथ आने वालों से ही खचाखच भर जाने वाला भदभदा विश्राम घाट परिसर एक साथ जल रही दर्जनों चिताओं के बाद भी सन्नाटे जैसी स्थिति में था। कई शव तो ऐसे थे, जिन्हें कंधा देने वाले चार लोग भी नहीं थे। जो मौजूद थे उनमें से कुछ वीडियो कॉल पर थे। एक ने बताया कि संक्रमण के कारण रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार में आने से मना कर दिया। बुआ की इच्छा कि वह अंतिम बार मिल नहीं सकीं लेकिन कम से कम अंतिम दर्शन ही करा देना... बस इसलिए वीडियो कॉल.... वह अपने आंसू नहीं रोक सके। विश्रामघाट में मौजूद हर शख्स की आंखों में ऐसी ही रुला देने वाली कहानियां बिखरी पड़ी हैं। हाल ही में भोपाल की जानी-मानी शख्सियतें मंजूर एहतेशाम, श्याम मुंशी, महेन्द्र गगन, सुनील मिश्र और मनोज पाठक कोरोना संक्रमण से असमय काल के गाल में समा गए। जिनको खोने का हर किसी को रंज-ओ-गम था। लेकिन कोरोना से मृत्यु के कारण सबने अंतिम संस्कार और जनाजे में पहुंचने से परहेज किया। क्योंकि हर किसी को कोरोना के संक्रमण का खौफ था। वीडियो कॉल से ही अपनों को अंतिम दर्शन कराया गया। उनकी आत्मिक शांति के लिए रखी गई सभी रस्में और प्रार्थनाएं भी लाइ‌व की गईं। परिजनों ने इश्तेहार के जरिए अपील की है कि जो जहां हैं, वहीं से प्रार्थना करें। भोपाल के भदभदा विश्राम घाट समिति के अध्यक्ष अरूण चौधरी बताते हैं कि एक-एक दिन में कोरोना से मरने वालों के 50-60 शव दाह-संस्कार को पहुंच रहे हैं। कोरोना से मरने वालों के शव दाह की संख्या रोजाना बढ़ती जा रही है। कई बार परिवार के शामिल लोग भी शव को छूने से परहेज करते हैं। ऐसे में शवों को विश्राम घाट के कर्मचारियों द्वारा उठाकर अंत्येष्टि कराई जा रही है। अब अधिकतर लोग फेसबुक और व्हाट्स एप लाइव से ही दूर से परिजनों को दर्शन कराते हैं। यह दुर्भाग्य के ही दिन हैं कि, लोग इस दुख की घड़ी में भी साथ आने की स्थिति में नहीं हैं। कुदरत का यह कैसा मजाक है कि, लोग अपनों के अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन कोरोना के खौफ ने उन्हें इतना निष्ठुर और संवेदना शून्य बनने को मजबूर कर दिया है कि, वे उनकी अंतिम विदाई के भी साक्षी नहीं हो सकते हैं। सचमुच कोरोना ने खुद को शक्तिशाली कहने वाले मनुष्य को कितना कमजोर और बोना बना दिया है...बेबसी के इन हालातों पर यही कहेंगे कि- बहुत थे मेरे भी इस दुनिया में मुझे अपना कहने वाले। फिर समझदार हुए लोग और हम लावारिस होते चले गए।।