क्या महाभारत युद्ध में कर्ण के शरीर में नरकासुर की आत्मा ने कर लिया था प्रवेश, श्री कृष्ण क्यों नहीं ला रहे थे अर्जुन का रथ कर्ण के सामने.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

हमारा प्रयास यह होता है कि, हम अपने एपिसोड्स में शास्त्रों और ग्रंथों उन बातों और प्रसंगों को आपके सामने लेकर आयें....

क्या महाभारत युद्ध में कर्ण के शरीर में नरकासुर की आत्मा ने कर लिया था प्रवेश, श्री कृष्ण क्यों नहीं ला रहे थे अर्जुन का रथ कर्ण के सामने.. दिनेश मालवीय आज हम आपके सामने “महाभारत” का एक बहुत रोचक किन्तु सत्य प्रसंग लेकर आये हैं. आपको यह बात बहुत आश्चर्यजनक तो  लगती ही होगी कि, महावीर कर्ण विराट के युद्ध में अर्जुन के हाथों परास्त हो चुका था. वह अर्जुन से किसी भी तरह श्रेष्ठ नहीं था. इसके अलावा, वह चित्रसेन के साथ युद्ध में भी भाग खड़ा हुआ था. श्रीकृष्ण इस रहस्य को जानते थे : अब सबाल उठता है कि, महाभारत के युद्ध  में कर्ण अचानक इतना बलवान कैसे हो गया कि, एक दिन उसने अर्जुन को  पराजित कर दिया. दूसरे दिन भी यदि श्रीकृष्ण उसे छल से नहीं मरवाते तो, वह  अर्जुन के  लिए  बहुत बड़ा खतरा बन  सकता था. इस युद्ध में वह किसीके भी वश में नहीं आ रहा था. उसने युधिष्टिर, नकुल और सहदेव की तो छोडिये भीमसेन तक को पराजित कर उन्हें जीवनदान दे दिया. श्रीकृष्ण इस रहस्य को जानते थे. यही कारण है कि, उस दिन वह अर्जुन के रथ को कर्ण के सामने नहीं ला रहे थे.   आखिर उस दिन उसके साथ ऐसा क्या चमत्कार हो गया था ?   इसके अलावा, उस दौर से सबसे बड़े महापुरुषों भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य,कृपाचार्य आदि ने किस तरह निर्दयता  और अनीति का साथ देकर सत्य पर अडिग पाण्डव सेना का निर्दयता से संहार किया. इन माहावीरों ने दिव्यास्त्रों का साधारण सैनिकों पर प्रयोग किया, जो पूरी तरह अनीतिपूर्ण था. यह उनकी गरिमा के भी विरुद्ध  था. हम महाभारत के हवाले से ही इन दोनों बातों का रहस्य बताने जा रहे हैं. जैसाकि आप जानते हैं कि, महाभारत के वन पर्व में दुर्योधन अपने दोस्तों के बहकावे में आकर वनवास काट रहे पाण्डवों को सताने के लिए जाता है. संयोग से वहाँ उसका गंधर्वराज चित्रसेन से युद्ध होता है. कर्ण आदि सब पराजित होकर भाग जाते हैं. चित्रसेन दुर्योधन और कौरव कुल की स्त्रियों को बंदी बना लेता है. युधिष्ठिर को जब यह पता चलता है तो वह भीमसेन और अर्जुन को उन्हें मुक्त कराने की आज्ञा देते हैं. अर्जुन चित्रसेन को परास्त कर दुर्योधन और सभी स्त्रियों को मुक्त करा लेते हैं.   दुर्योधन चित्रसेन की कैद से छूटकर अपने राज्य की ओर वापस तो चल दिया, लेकिन उसके मन में इस बात को लेकर बहुत शर्मिंदगी थी कि, उसे उसके परम शत्रु भाइयों  ने मुक्त करवाया. वह इसे अपना घोर अपमान मान बैठा. उसने रास्ते में कहा कि, मैं यहीं अनशन करके अपने प्राणों का त्याग कर  दूंगा. दु:शासन को राजा बना दिया जाए. उसे सभी लोगों ने बहुत समझाया, लेकिन वह अपनी ज़िद पर ही अड़ा रहा. ऐसी विकत स्थिति में दानव लोग दुर्योधन को समझाने आये.  उन्होंने कहा कि, आत्महत्या करना बहुत घोर पाप है. जीते रहोगे, तो अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यदि जीवित ही नहीं रहे, तो कुछ भी नहीं कर पायेंगे. दानवों ने बताया कि, हमें भगवान् शंकर की तपस्या से आपको प्राप्त किया है. आपके शरीर में नाभि से ऊपर का भाग वज्रसमूह से बना है. आप  मनुष्य नहीं, दिव्य पुरुष हैं.   देवताओं ने कहा कि, आपकी सहायता करने के लिए बहुत से वीर दानव क्षत्रियों के रूप में धरती पर प्रकट हो चुके हैं. वे और हम लोग भी भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि के शरीरों में प्रवेश करके उन्हें इस प्रकार आविष्ट कर देंगे कि, वे लोग दया को त्याग कर शत्रुओं से युद्ध करेंगे. वे इस तरह आवेश में आ जाएँगे कि, वे  पुत्रो, शिष्यों, कुटुम्बियों  और बालक-बूढों तक को नहीं छोड़ेंगे. वे सभी अज्ञान से मोहित हो जाएँगे. यही कारण था कि, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य वीर बालक अभिमन्यु के छलपूर्वक वध में शामिल रहे. दानव लोग एक और बहुत बड़ा रहस्य बताते हैं. वे कहते हैं कि, आप अपने मन से अर्जुन का भय त्याग दें. श्रीकृष्ण के हाथों जो नरकासुर मारा गया है, उसकी आत्मा कर्ण के शरीर में घुस गयी है. वह यानी नरकासुर उस वैर  को याद करके श्रीकृष्ण और अर्जुन से युद्ध करेगा. महारथी कर्ण योद्धाओं में श्रेष्ठ और पराकर्म पर गर्व करने वाले हैं. वह अवश्य ही आपके शत्रुओं को पराजित करेंगे. ये दोनों बातें वन पर्व के श्लोक 11 से 20 तक बतायी गयी हैं. इस तरह हम देखते हैं कि, महाभारत में ही कर्ण के इतना दुर्धुर्ष और महापुरुषों के क्रूर हो जाने का क्या कारण था.