सनातन धर्म में व्रत और उपवास में अंतर और उनके प्रकार -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

सनातन धर्म में व्रत और उपवास में अंतर और उनके प्रकार -दिनेश मालवीय Differences in fasting and fasting in Sanatan Dharma and their types वैसे तो प्राय: सभी धर्मों में व्रत और उपवास का विधान किया गया है. आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में पवित्रता लाने के साथ-साथ शरीर को स्वस्थ रखने में इनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. लेकिन सनातन धर्म में तो वर्ष के लगभग हर दिन कोई न कोई उपवास या व्रत होता ही है. उपवास और व्रत में लोगों की, विशेषकर स्त्रियों की बहुत आस्था है और वे इसे पूरे मनोयोग से करती हैं. हालाकि इस मामले में पुरुष भी पीछे नहीं हैं, लेकिन वे व्रत-उपवास कम करते हैं. आमतौर पर उपवास और व्रत को लोग एक ही चीज या एक-दूसरे का पर्याय मानते हैं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. इन दोनों में फर्क होता है. हालाकि ये एक-दूसरे के पूरक हैं. व्रत में एक समय फलाहार लिया जाता है, जबकि उपवास में निराहार रहना होता है. व्रत शरीर की शुद्धि और उपवास मन और विचारों को शुद्ध रखने के लिए किया जाता है. व्रत के रूप हैं- कायिक व्रत- इसका सम्बन्ध शरीर से है. इस व्रत को करने वाला व्यक्ति व्रत के दौरान किसीको शारीरिक से आधात नहीं पहुँचाता, किसी व्यभिचार में रत नहीं होता और बहुत कम भोजन करता है. वाचिक व्रत- इसमें व्यक्ति सत्य बोलता है और कम से कम बात करता है. वह सबसे मधुर वाणी बोलता है. चुगली और परनिंदा तो बिल्कुल भी नहीं करता. मानसिक व्रत- इसमें मनुष्य किसी के प्रति भी शत्रुता का भाव नहीं रखता. मन में पवित्र विचार धारण करता है. मन को शांत रखता है और उसे यहाँ-वहाँ भटकने नहीं देता. मौन व्रत- इसका सम्बन्ध वाणी की शुद्धि के माध्यम से मन और आत्मा को शुद्ध रखना है. इस व्रत को धारण करने वाला मुँह से तो कुछ बोलता ही नहीं है, बल्कि मन के विचारों के प्रवाह पर भी नियंत्रण रखता है. बहुत आवश्यक होने पर वह संकेत में या लिखकर कुछ कहता है. हालाकि इसे भी वह न्यूनतम ही रखता है. नित्य व्रत- सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को बहुत महत्त्व दिया गया है. इसे करने वाले को बहुत पुण्य मिलता है. इसे हर माह दो बार किया जाता है. अनेक लोग इसमें जल भी ग्रहण नहीं करते. चावल और बैंगन नहीं खाते. नैमित्तिक व्रत- यह व्रत पापों का नाश करने और चंद्रमा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. इस व्रत में कृष्ण पक्ष में आहार प्रतिदिन एक ग्रास घटाया जाता है और शुक्ल पक्ष में बढाया जाता है. काम्य व्रत- यह व्रत सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए किया जाता है, जैसे वट सावित्री व्रत. प्रवृत्तिरूप व्रत-  इस व्रत में किसी पीने की चीज का ही सेवन किया जाता है, जैसे नींबू का पानी, फलों का रस आदि द्रव्य पदार्थ. निवृत्ति व्रत- इसमें केवल उपवास आदि के द्वारा साध्य-व्रत करने का विधान है. यह संसार के भोग-विलास से निवृति और मुक्ति की कामना से किया जाता है. इन सभी व्रत-उपवासों के पीछे कोई वैज्ञानिक तथ्य निहित है. इन्हें जानें या न जानें, लेकिन इन्हें करने का फल शुभ ही होता है.