मुक्ति (४ जुलाई के प्रति )


स्टोरी हाइलाइट्स

मुक्ति (४ जुलाई के प्रति ) ४ जुलाई १८९८ के दिन स्वामी विवेकानंद जी कुछ अमेरिकन शिष्यों के साथ कश्मीर पर्यटन कर रहे थे और उस दिन अमेरिकन -स्वातंत्र्य -घोषणा दिवस की जयंती मनाने के निमित्त उन्होंने अन्ग्रेज़ी में इस कविता की रचना की | ४ जुलाई १९०२ उनकी महासमाधी का दिन था वह देखो , वे घने बादल छंट , जिन्होंने रात को , धरती को अशुभ छाया से ढक लिया था  | किन्तु तुम्हारा चमत्कार पूर्ण स्पर्श पाते ही विश्व जाग रहा है | पक्षियों ने सहगान गए हैं | फूलों ने तारों की भांति चमकते ओस कणों का मुकुट पहनकर झुक-झूमकर तुम्हारा स्वागत किया है | झीलों  ने प्यार भरा ह्रदय तुम्हारे लिए खोला है और अपने सहस्त्र सहस्त्र कमल- नेत्रों द्वारा मन की गहराई से निहारा है तुम्हें | हे प्रकाश के देवता ! सभी तुम्हारे स्वागत में संलग्न हैं | आज तुम्हारा नव स्वागत है | हे सूर्य , तुम आज मुक्ति-ज्योति फैलाते हो | तुम्हीं सोचो , संसार ने तुम्हारी कितनी प्रतीक्षा की , कितना खोजा तुम्हें , युग युग तक , देश देश घूमकर कितना खोजा गया | कुछ ने घर छोड़े , मित्रों का प्यार खोया , स्वयं को निर्वासित किया , निर्जन महासागरों , सुनसान जंगलों में कितना भटके , एक एक कदम पर मौत और जिंदगी का सवाल आ गया , लेकिन , वह दिन भी आया जब संघर्ष फले , पूजा , श्रद्धा  और बलिदान पूर्ण हुए  , अंगीकृत हुए —तुमने अनुग्रह किया और समस्त मानवता पर स्वातंत्र्य—प्रकाश विकीर्ण किया | ओ देवता ! निर्बाध बढो , अपने पथ पर , तब तक , जब तक कि यह सूर्ये आकाश के मध्य न आ जाये — जब तक तुम्हारा आलोक विश्व में प्रत्येक देश में  प्रतिफलित न हो ; जब तक नारी और पुरुष सभी उन्नत मस्तक होकर यह नहीं देखें कि उनकी जंजीरें टूट गयीं और नवीन सुखों के वसंत में उन्हें नवजीवन मिला ! हिंदी अनुवाद —विवेकानंद साहित्य संचयन …तीसरा संस्करण —२४-३—१९९१ (अध्यक्ष —-स्वामी व्योम रूपानंद , रामकृष्ण  मठ , नागपुर.)