गंदगी भारत छोड़ो- पर छोड़ेगी कैसे मोदी जी?


स्टोरी हाइलाइट्स

गंदगी भारत छोड़ो-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने यह नारा दिया है , इससे पहले भी वे अपने पिछले कार्यकाल में ही स्वच्छता अभियान का श्री गणेश कर चुके हैं

गंदगी भारत छोड़ो- पर छोड़ेगी कैसे मोदी जी?

narendra-modi-abhiyan-newspuranगंदगी भारत छोड़ो-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने यह नारा दिया है, इससे पहले भी वे अपने पिछले कार्यकाल में ही स्वच्छता अभियान का श्री गणेश कर चुके हैं और उसी अभियान के अंतर्गत सभी घरों में शौचालय बनवाने का काम युद्ध स्तर पर उन्होंने देशभर में करवाया। 

गंदगी को 4 भागों में बांट सकते हैं एक शौचालय और गटर से जुड़ी हुई, दूसरी सामान्य घरों से निकलने वाला रोजमर्रा का कूड़ा, तीसरा औद्योगिक कचरा और चौथा भ्रष्टाचार तथा सामाजिक कुरीतियों का मानसिक कचरा। मेरे विचार से फिलहाल मोदी जी के स्वच्छता अभियान का उद्देश्य पहले तीन प्रकार के कचरे अर्थात गंदगी को भगाने से जुड़ा है, इसीलिए फिलहाल इन्हीं तीन पर बात करते हैं।

गंदगी अर्थात कचरे की समस्या मुख्य रूप से आधुनिक जीवन शैली और शहरी लोगों से पैदा हुई समस्या है। जो अब धीरे-धीरे गांव को भी अपनी चपेट में ले रही है।


सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा मुगल काल से शुरू हुई लेकिन अब भारत में लगभग समाप्ति की ओर है। महात्मा गांधी से लेकर सभी सरकारी और सामाजिक संस्थाओं ने इस विषय में अच्छा कार्य किया और सभी बधाई के पात्र हैं। घरों में शौचालय और सार्वजनिक शौचालय से इस श्रेणी की स्वच्छता का कार्य किसी हद तक संपन्न हो जाता है। बिंदेश्वरी पाठक द्वारा शुरू किया गया सुलभ शौचालय इस दिशा में एक बेहतर प्रयोग है सरकार चाहे तो उनके मॉडल को बड़े स्तर पर अपना सकती है।
लेकिन गटर साफ करने की समस्या अभी समाधान की इंतजार में है, अभी यह कार्य सफाई कर्मचारियों द्वारा हाथों से ही किया जाता है और जिसके चलते प्रतिवर्ष सैकड़ों सफाई कर्मचारी मौत के मुंह में समा जाते हैं। इस कार्य को जितनी जल्दी हो सके मशीनों द्वारा संचालित करने का नियम बनाया जाना चाहिए। दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने इस दिशा में कुछ मशीनी प्रयोग किए हैं और ग्रेटर नोएडा में भी रोबोट द्वारा गटर साफ करने की पहल हुई है, इसे जल्द से जल्द पूरे देश में युद्ध स्तर पर लागू करना चाहिए।


दैनिक जीवन में गंदगी फैलाने मैं हमारी बिगड़ी हुई गंदी आदतें शुमार हैं। हमें जन जागरण के साथ-साथ लोगों पर जुर्माना करने की व्यवस्था करनी होगी, नहीं तो जगह-जगह थूकने पेशाब करने जैसी आदतें लोग छोड़ने वाले नहीं। आजकल जैसे मास्क नहीं पहनने पर चालान काटने का नियम है वैसे ही पान गुटखा खाकर जगह-जगह थूकने वालों के खिलाफ अभियान चलाना पड़ेगा।इसी के साथ पर्याप्त मात्रा में सार्वजनिक जगह पर कूड़ेदान और साफ-सुथरे फ्री वाले पेशाबघर बनवाने पड़ेंगे।

DustMaterial-Newspuranगंदगी की सबसे बड़ी समस्या है घरों से निकलने वाला रोजमर्रा का कचरा, इसकी मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और पूरे देश में प्रतिदिन कई हजार टन तक पहुंच रही है। इस कूड़े में प्लास्टिक सबसे बड़ा खलनायक है। 

आजकल मूर्खता, भेड़चाल, सरकारी लापरवाही और फैशन के कारण प्लास्टिक पैकिंग बढ़ती ही जा रही है। यह प्लास्टिक की पैकेजिंग व्यवस्था देखने में आरामदायक और आकर्षक तो है लेकिन मानवीय स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है।

पान के गुटके के पाउच से लेकर बड़ी से बड़ी हर चीज प्लास्टिक के रैपर में ही मिलने लगी है। दूध और आटे से लेकर दवाइयों तक सब प्लास्टिक में मिल रहा है। इसकी वजह से गंदगी तथा महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है। क्योंकि प्लास्टिक कचरे में पड़ा-पड़ा 300 साल तक गलता नहीं है और जहरीली बदबूदार गैसे भी गलने और जलने के साथ-साथ विसर्जित करता है अतः यह सबसे बड़ी और खतरनाक समस्या है।

शहरी घरों से निकलने वाले कूड़े में प्लास्टिक, कांच और लोहे के मिलने के कारण इसका खाद बनाना या इससे बिजली बनाना भी असंभव हो गया है। विदेशी सहयोग से बिना होमवर्क करें शुरू किए गए कूड़े से बिजली बनाने के हजारों करोड़ के संयंत्र इसीलिए बेकार सिद्ध हुए और बाद में तोड़ने पड़े। जिसमें हजारों करोड़ का घपला हुआ। 

इसी तरह की एक संयंत्र घोटाले का भंडाफोड़ लगभग 20 साल पहले मैंने ही किया था, जिसमें भारत सरकार को लंदन तक मुकदमा लड़ना पड़ा और केस हारने के बावजूद वकीलों को करोड़ों रुपए की फीस और देनी पड़ी,खैर यह एक अलग मुद्दा है। प्लास्टिक के कचरे से सड़क बनाने के कुछ प्रयोग गत दिनों सफल हुए हैं मेरे विचार से इस प्रयोग को बड़े स्तर पर बढ़ाना चाहिए। विश्व के कई देशों में तो जहां जमीन की दिक्कत है कचरे को बड़े-बड़े बंडल बनाकर समुंदर में फेंक दिए जाते है, जो समुद्री जीवों की मौत का वैसा ही कारण बनता है जैसा हमारे यहां कचरे से पॉलीथिन खाने से गायों की मौत होती है।
इसलिए सबसे जरूरी है दैनिक जीवन में प्लास्टिक के उपयोग को न्यूनतम स्तर पर लाना और फिर हर घर के दरवाजे पर ही प्लास्टिक, कांच, लोहे और सामान्य कचरे को अलग अलग करने की व्यवस्था करना। यहां विशेष रूप से यह भी उल्लेखनीय है कि आजकल शहरों में इलेक्ट्रॉनिक कचरा जिसमें बिजली के उपकरण, कंप्यूटर, बैटरी जैसी चीजें शामिल हैं वह भी एक नई समस्या है। इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे को अलग से एकत्रित करना और वैज्ञानिक विधि से उसका समाधान करना यह एक अलग अध्याय है।

Kanker News - chhattisgarh news swachhta abhiyan pledges not to ...आवश्यकता है कि इस दिशा में सभी नागरिकों का शिक्षित किया जाए और ना मानने वालों को दंडित करने का भी प्रावधान हो। घर घर से कचरा एकत्रित करने वाली सफाई कर्मियों की बड़े पैमाने पर भर्ती की जाए क्योंकि यह काम मशीनें नहीं कर सकती। जो गाड़ियां कचरा लेने गलियों में आती हैं लोग उसमें अपनी बालकनियों से सारा कचरा इकट्ठा एक पॉलिथीन में बांध कर फेंक देते हैं। 

लोग तो इतने नालायक हैं कि इस गाड़ी में कचरा फेंकने में भी जहमत नहीं उठाते और रात को सड़कों पर फेंक देते हैं। हर घर से कचरा उठाने का एक शुल्क निर्धारित करना पड़ेगा और सभी को यह ऐच्छिक नहीं अनिवार्य रूप से देना पड़ेगा वरना लोग बचत करने के चक्कर में कहेंगे कि हम तो अपना कूड़ा खुद फेंक आएंगे और फिर रात को सड़क पर ही फेकेंगे।

अच्छी-अच्छी बहुमंजिला फ्लैटों वाली संभ्रांत कालोनियों में पढ़े-लिखे अमीर लोग भी अपना कचरा बाथरूम की खिड़की खोल कर बेशर्मी से रात को बाहर डाल देते हैं और सुबह उठकर ज्ञान पेलते हैं कि पता नहीं कौन नालायक रात को कूड़ा डाल देता है।

हमारे देश में धर्म के नाम पर विशेष तौर से हिंदू लोग तरह-तरह के भंडारे और लंगर आयोजित करते हैं। जहां सड़क किनारे कोई भी भोजन कर सकता है लेकिन इन भंडारों के बाद गंदगी का ऐसा मानचित्र सड़क पर बनता है कि भगवान भी शर्मा जाए। लाखों रुपए भंडारे पर आयोजित करने वाले आयोजक सफाई पर कुछ सौ रुपए खर्च नहीं करना चाहते हैं या उन्हें इस बात की तमीज ही नहीं है, भगवान जाने। इस विषय में अटल बिहारी वाजपेई जी की शव यात्रा में आदर्श प्रस्तुत किया गया था। शव यात्रा में हजारों लोग चल रहे थे और स्वाभाविक रूप से पानी आदि पीकर बोतलें सड़क पर डाल रहे थे लेकिन अंत में स्वयंसेवकों की एक टोली बड़े-बड़े बैग लेकर चल रही थी और इन सारे कचरे को साथ-साथ समेटती जा रही थी। काश इस तरह की सोच एक आदत बन जाए हमारी।

कूड़े के पहाड़ को कम करने के लिए कुछ जगह 'गौ- ग्रास' योजना सामाजिक संस्थाएं चला रही हैं, जिसके अंतर्गत सब्जियों के छिलके और बचा हुआ भोजन एकत्रित किया जाता है और उसे गौशालाओं में पहुंचाया जाता है। यह एक अच्छा प्रयास है और इसे और ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जाना चाहिए। इसी के साथ शहरों में कुत्तों से लेकर गाय भैंस तक रखने की अनुमति तभी मिले जब लोगों के पास इसकी पर्याप्त जगह और प्रशिक्षण हो। हमने देखा है कि लोग कुत्ते पाल तो लेते हैं लेकिन उनकी गंदगी साफ करने की जहमत नहीं उठाते आमतौर पर ये कुत्ते गलियों में ही अपना सब काम करते नजर आते हैं और कई बार मामला फौजदारी तक पहुंचता है।

इसी के साथ साथ औद्योगिक कचरे पर भी बेहद सख्त होने की जरूरत है क्योंकि बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां वायु जल जमीन और जंगल को भयंकर तरीके से नष्ट और दूषित कर रही है। इस विषय में पर्यावरण मंत्रालय को और सजग होना पड़ेगा।

इस दिशा में युवा वैज्ञानिकों को भी दिमाग लगाना चाहिए और इस तरह की तकनीक और आविष्कार विकसित करने चाहिए जो आधुनिक मानवता की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक कचरा अर्थात गंदगी से निबटने में सहायता करें। इसी के साथ समाज में सफाई कर्मियों के सम्मान की ओर सभी का प्रयास होना चाहिए। स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है और हर व्यक्ति का धर्म है कि वह स्वच्छता अपनाएं गंदगी नहीं। जरा सोचिए आप इस दिशा में क्या कर रहे हैं?

-राजेश्वर दयाल वत्स