कैसा था राम राज्य ... राम राज्य की लोकप्रियता की असल वजह ये है|


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कैसा था राम राज्य ... राम राज्य की लोकप्रियता की असल वजह ये है| how-was-ram-rajya-this-is-the-real-reason-for-the-popularity-of-ram-rajya

कैसा था राम राज्य ... राम राज्य की लोकप्रियता की असल वजह ये है|
  हाल ही में कंगना रानाउत ने एक ट्वीट में रामराज्य वापस करने की मांग की ... लेकिन ये राम राज्य क्या है इसके बारे में कम ही लोग जानते हैं|   https://twitter.com/KanganaTeam/status/1339140614512734208?s=20  
रामराज्यका स्वरूप

रामराज्य

राम राज राजत सकल धरम निरत नर-नारि। 

                       रोष न दोष दुख सुलभ पदारथ चारि॥ 

राम राज संतोष सुख घर बन सकल सुपास। 

                       तरु सुरतरु सुरधेनु महि अभिमत भोग बिलास।। 

खेती बनि विद्या बनिज सेवा सिलिप सुकाज। 

                       तुलसी सुरतरु सरिस सब सुफल राम के राज ।। 

दंड जतिन्ह कर भेद जहाँ नाटक नृत्य समाज। 

                      जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र के राज ।। 

को सोच न पोचकर करिअ निहोर न काज। 

                      तुलसी परमिति प्रीतिकी रीति राम के राज॥

(दोहावली)

श्रीराम राज्य महोत्सव : जानें कैसा था राम का राज्य
भारत वर्ष में अनेकानेक राज्य प्रतिष्ठापित हुए, जिन पर अनेकों प्रतापशाली तथा धर्मसम्पन्न राजाओं ने शासन किया। नहुष, ययाति, शिवि, सत्यवादी हरिश्चन्द्र-जैसे प्रतापी सम्राट् भारत में हुए। महाराज दशरथ-जैसे सच्चे भगवत्-प्रेमी तथा सत्यप्रिय सम्राट् भी भारत में हुए जिन्होंने शरीर का त्याग कर दिया, किंतु सत्य को नहीं छोड़ा। इन सबका हम श्रद्धा-सम्मान के साथ स्मरण करते हैं। परंतु हम इनके राज्यों को नहुषराज्य, शिबिराज्य, हरिश्चन्द्रराज्य अथवा दशरथराज्य कहकर स्मरण नहीं करते; पर हम 'रामका राज्य' अथवा 'रामराज्य' कहकर स्मरण करते हैं, राम और उनके राज्य-दोनों के प्रति सप्रेम रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इसका मुख्य कारण क्या है ?

श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम क्यों?

वास्तव में परब्रह्म परमात्मा के रामस्वरूप को 'मर्यादा सुरुषोत्तम' क्यों कहते हैं, इसे कम लोग जानते हैं। श्रीराम ने सब प्रकार की सर्वोत्तम मर्यादाएँ प्रतिष्ठित की हैं। आपने सम्राट् होने के पूर्व अपने निर्मल पूत चरित्रद्वारा व्यष्टि की सर्वोत्तम मर्यादाओं को स्वयं पालन करके दिखलाया। एक व्यक्ति समाज, परिवार आदि के साथ कैसा व्यवहार करे, एक व्यक्ति को जीवन यात्रा चलाने के लिये तथा जीवन के महान् उद्देश्य परब्रह्म से परमात्मा की प्राप्ति के लिये किस प्रकार के गुणों की, किस प्रकार के त्याग-तप की आवश्यकता होती है|

इसका दिग्दर्शन भगवान् श्रीरामचन्द्रजी ने अपनी लीलाओं द्वारा मर्यादाएँ प्रतिष्ठापित करके प्रत्यक्ष करा दिया।

राज्यारोहण के पश्चात् उन्होंने जो सर्वोत्तम शासन व्यवस्था, अर्थनीति, धर्मनीति, समाजनीति तथा राजनीतिक मर्यादाएँ स्थापित की, उन सबके समूह का नाम ही 'रामराज्य' है। उन्होंने व्यष्टि तथा समष्टि-दोनों के लिये ही रची हुई मर्यादाओं का अपने जीवन में तथा राज्य के द्वारा भलीभाँति परिपालन किया।

राम राज्य का क्या मतलब है, इसकी क्या विशेषता थी? - Quora
रामराज्य क्या और कैसा?

अब प्रश्न उठता है 'रामराज्य क्या और कैसा था?' तो इसका उत्तर यह है- रामराज्य में सभी वर्गो के समस्त नर-नारी सच्चरित्र, वर्णाश्रम-धर्म-परिपालक तथा स्व-कर्तव्यनिष्ठ थे। कर्तव्य का मानदण्ड अपनी इच्छा मात्र नहीं था; गोस्वामीजी के शब्दों में 'करहु जाइ जा कहुँ जो भावा' नहीं था। वे वेदमार्ग को शास्त्र वचनों को मानदण्ड मानकर जीवन संकट को अग्रगमित करते थे। इसके फलस्वरूप रोग, शोक तथा भय की प्राप्ति उनको नहीं होती थी सभी स्वधर्मपरायण तथा काम-क्रोध-लोभ-मदादिकों से सर्वथा रहित थे। कोई किसी से वैर नहीं करता था। वैर के अभाव में प्रेम स्वाभाविक ही है। सभी गुणज्ञ, गुणसम्पन्न, पुण्यात्मा, ज्ञानी और चतुर थे; पर उनकी चतुरता भजन में, ज्ञान में थी-परदारा, परधनापहरण में नहीं।

मानवद्वारा आचरित इस धर्म का- कर्तव्य-पालन का प्रभाव प्रकृति तथा पशु-पक्षियों पर भी पड़े बिना नहीं रहा। गोस्वामीजी पशु-पक्षियों के लिये लिखते हैं 'रहहिं एक सँग गज पंचानन।'

खग मृग सहज बयरु बिसराई। 

सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई ॥ 

स्वार्थत्याग तथा धर्मपालन का प्रकृति पर कैसा प्रभाव पड़ा, इसको श्रीगोस्वामीजी इस प्रकार व्यक्त करते हैं 

प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। 

                जगदातमा भूप जग जानी॥ 

सरिता सकल बहहिं बर बारी। 

               सीतल अमल स्वाद सुखकारी॥ 

सागर निज मरजादाँ रहहीं।

               डारहिं रल तटन्हि नर लहहीं॥

बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज। 

                मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ॥

त्रिविधताप का अभाव-

तीन प्रकार के ताप होते हैं- दैहिक, दैविक, भौतिक। ये तीनों ही रामराज्य में बिलकुल नहीं रह गये थे। 

दैहिक दैबिक भौतिक तापा । राम राज नहिं काहुहि ब्यापा ॥

धर्म तथा तदन्तर्गत स्वाध्याय के नियमों का पालन करने वालों को भय, शोक, रोग आदि दैहिक तापों की पीड़ा कैसे हो सकती थी। भौतिक ताप प्रकृति के उपर्युक्त प्रकार से प्रभावित हो जाने के पश्चात् कैसे हो सकते थे। दैविक ताप तो स्वकर्तव्यविमुख तथा अधार्मिक व्यक्तियों को दण्डस्वरूप मिला करते हैं, उनकी रामराज्य में स्थिति ही कहाँ थी ?

कैसा था रामराज्य? - Grehlakshmi | DailyHunt
रामराज्य में आत्मिक (आन्तरिक),  बाह्य और आर्थिक विषमताएँ बिलकुल नहीं थीं।

 १- सद्भाव, सद्विचार, सद्भावना और परमार्थ ही परम लक्ष्य होने के कारण साधना के द्वारा सभी के अन्तःकरण शुद्ध हो गये थे और सभी लोग भगवान्की प्रेमभक्ति में निमग्न होकर परमपद के अधिकारी हो गये थे इससे उनमें 'आत्मिक वैषम्य' नहीं था। वे सब में अपने भगवान्को देखते थे- 'निज प्रभुमय देखहिं जगत।'

२- आत्मिक विषमता दूर हो जाने के कारण 'बाह्य विषमता' भी सर्वथा नष्ट हो गयी थी। किसी को किसी बात का गर्व करने अथवा छोटे-बड़े का प्रश्न उठाने के लिये अवसर ही न था। शुद्ध अन्त:करण वालों को किसी से राग-द्वेष अथवा छोटे-बड़े का गर्व हो ही कैसे सकता था।

३- पर्वतों के द्वारा मनोवांछित मणिमाणिक्य दिये जाने से, समुद्रद्वारा रत्नों के बाहर फेंक देने से, विलासिता एवं आरामतलबी के न रहने से, स्वकर्तव्यपालन की निष्ठा से । तथा मुद्रा के सर्वथा न रहने से रामराज्य में 'आर्थिक विषमता' भी नहीं थी। इसका अर्थ यह नहीं कि रामराज्य में विशाल व्यापार ही नहीं था। वैश्यवर्ग कर्तव्य समझकर बड़े-बड़े व्यापार करते थे। रामराज्य में सभी वस्तुएँ बिना मूल्य बिकती थीं; जिसको जिस वस्तु की आवश्यकता हो, वह उसी वस्तु को बाजार से जितनी चाहे, उतने परिमाण में प्राप्त कर सकता था। इसलिये कोई विशेष संग्रह भी नहीं करता था। 

राजा और प्रजा का सम्बन्ध-

जिस राज्य में पाप अथवा अपराध की कभी स्थिति ही न हो, जिस राज्य के लिये श्रीगोस्वामीजी के अनुसार 

दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।॥
  • ऐसी स्थिति हो, उस राज्य में, तथा जिसमें सम्राट् भगवान् रामचन्द्र प्रजा से कुछ आध्यात्मिक ज्ञान पर कहना चाहते हैं तो हाथ जोड़कर कहते हैं कि 'यदि आप लोगों का आदेश हो तो मैं कुछ कहूँ। आपको अच्छा लगे तो सुनिये, अच्छा न लगे अथवा में कोई अनीतिपूर्ण बात कहूँ तो मुझे रोक दीजिये।
जों अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई।॥ 

वहाँ, उस राज्य में राजा-प्रजा के कैसे क्या सम्बन्ध हो सकते हैं- सो स्पष्ट है।

रामराज्य में सभी व्यक्तियों ने इहलोक और परलोक दोनों को सफल किया था। उस समय के-जैसा सर्वतोभावेन । मर्यादा-मण्डित राज्य कभी स्थापित नहीं हो सका। इसीलिये आज भी, युगों के पश्चात् भी भारत की जनता पवित्र रामराज्य का स्मरण करती है!

रामकृष्णा

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