मोह जड़ता का प्रतीक है, जो विवेक को जाग्रत नहीं होने देता


स्टोरी हाइलाइट्स

साधक के मार्ग का मोह एक अवरोधक मनोविकार है। मोह जड़ता का प्रतीक है, जो विवेक को जाग्रत नहीं होने देता। कोई भी साधक जब तक किसी विकार से ग्रस्त रहेगा

मोह जड़ता का प्रतीक है, जो विवेक को जाग्रत नहीं होने देता साधक के मार्ग का मोह एक अवरोधक मनोविकार है। मोह जड़ता का प्रतीक है, जो विवेक को जाग्रत नहीं होने देता। कोई भी साधक जब तक किसी विकार से ग्रस्त रहेगा, वह साधना में नहीं उतर सकता। साधना निर्विकार की परिणति है। जब विचार गिर जाए, मोह और ममता की दीवार ढह जाए, तभी साधक को साधना की अनुभूति होती है। परमात्मा ने मनुष्य को निर्विकार, सरल और सौम्य जीवन जीने के लिए उत्पन्न किया, लेकिन हमने स्वयं अपने चारों ओर मोह और ममता का मायाजाल निर्मित कर स्वयं को फंसा लिया। जितना दुख चिंता और भय हमने अपने जीवन में आमंत्रण देकर बुलाया है, वे सब हमारी अपनी कल्पना के फल हैं। ईश्वर ने हमारे लिए कोई जाल नहीं बनाया, हमने स्वयं अपने हाथों से उन जालों को बनाया और स्वयं उसमें फंसते गए। मोह का मायाजाल व्यक्ति की अपनी मानसिक रुग्णता का परिणाम है। जिस प्रकार रस्सी को सांप समझकर हम भागने लगते हैं और बाद में वस्तुस्थिति समझकर अपनी ही मूर्खता पर मुस्कराने लगते हैं, ठीक वही स्थिति मनुष्य की होती है, जो अकारण किसी वस्तु से मोहग्रस्त हो जाता है और फिर पछताने लगता है। मोह के कारण जिस वस्तु से उसे लगाव हो जाता है, बाद में वही वस्तु कांटे की तरह चुभने लगती है। वस्तुओं का संग्रह और उससे लगाव मोह की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। वस्तुओं का संग्रह कर हम तृप्त होना चाहते हैं और जब संग्रहकर्ता को उससे संतोष नहीं होता और मोह के कारण और अधिक संग्रह की लिप्सा बढ़ती जाती है, तब पता चलता है कि इस संग्रह की प्रवृति का मायाजाल कितना बढ़ता जा रहा है। मोह के कारण जिन वस्तुओं का अधिक से अधिक संग्रह हम करना चाहते हैं, अगर उन वस्तुओं से मन में संतोष और आनंद की अनुभूति न हो, तो बड़ी निराशा होती है। मोह अभाव से उत्पन्न होता है और अभाव का अर्थ है कि व्यक्ति भीतर से खाली है। भीतर जो खाली है, व्यक्ति के भीतर के आकाश में खोखलापन है, तो वह भीतर के अभाव को भरने के लिए बाहर की वस्तुओं के संग्रह के मोह में पागल सरीखा हो जाता है। भीतर का अभाव ही बाहर से भरने की उत्सुकता पैदा कर देता है। इसीलिए लोग संपत्ति के मोह में फंसे रहते हैं और संग्रह हो जाने पर उसका कोई उपयोग नहीं करते और उस संपत्ति को सहेजकर बैंक के लॉकर में रख देते हैं। डॉ.प्रकाश कच्छवाल