चीन को समझना नामुमकिन है? क्या चीन की बेबूझ चालाकियों के आगे बेबस है भारत? P अतुल विनोद


स्टोरी हाइलाइट्स

चीन को समझना नामुमकिन है? क्या चीन की बेबूझ चालाकियों के आगे बेबस है भारत? P अतुल विनोद    भारत चीन को लेकर हमेशा असमंजस में रहा है.. युद्ध की रणनीतियां दिखाई देती हैं …चीन की यौद्धिक रणनीति दिखते हुए भी अद्रश्य है| एक तरफ हाथ मिलाता है दूसरी तरफ आँखें दिखाता है ..लेकिन तीसरे और अद्रश्य मोर्चे पर चलने वाली तैयारियां उसके दुश्मन को दिखाई नहीं देती ..भारत ने चीन से मात खाई है एक बार नहीं कई बार … चीन से प्रेम से भी नहीं निपटा जा सकता और ताकत से भी नहीं|वो गले लगाते ही पीठ में छुरा घोंप देता है और ताकत में तो हमसे आगे ही नज़र आता है|हमारे हौसले बुलंद हैं यही हमारी ताकत भी है लेकिन हमारी चुनौतियाँ और भी मोर्चों पर हैं| भारत चीन को लेकर इतिहास से कोई सबक नहीं ले पाया .. दरअसल चीन ने सबक लेने ही नही दिया… जिस तरह चीन से निकला कोरोना बार बार म्यूटेट करता है उसी तरह उसका पापा भी है.. चीन का म्युटेशन हमारे सत्ताधीश समझ नही सके … रंग बदलते चीन को कभी भारत ने जमकर महत्व दिया … चीनियों को हमने भाई बनाया | चीनियों ने कई बार हमारे प्रधानमंत्री का स्वागत ऐसे किया जैसे वो कोई देव दूत हों| दरअसल चीन कभी भारत का भाई रहा ही नही … भारत से दोस्ती भी उसकी जंग का एक हिस्सा रही है.. हर देश के लिए चीन की मित्रता उसकी वार स्ट्रेटजी का हिस्सा रही है| चीन और भारत के बीच तिब्बत आड़ रहा, हिमालय ने भी भारत की रक्षा की, चीनियों के आपसी झगड़े भी भारत के लिए वरदान साबित हुए|अब इन तीनो मोर्चों पर चीन ने निर्णायक बढत ले ली है, तिब्बत पर कब्जा करके वो हमारे दरवाजे तक पहुँच गया, हिमालय पर भी विस्तार करता गया और घरेलू झगड़ों से भी निपट लिया| भारत चीन के साथ मिलकर विकास की गंगा बहाने के सपने देखता रहा उधर चीन भारत के बाज़ार के कंधे पर चढ़कर आगे निकल गया| चीन ने अतिक्रमण करने में कभी कोताही नहीं की… उसने १९५० में अक्साई चीन की तरफ से १७९ किलोमीटर सडक बनाकर कब्जे की शुरुआत कर दी| 1951 में चीन ने तिब्बत को अपना बना लिया| चीन दुनिया के “मजदूरों को एक करने वाले” कालमार्क्स के नारे के उलट माओ के “सत्ता के बन्दूक की नोक से निकलने” के नारे पर चलता है| भारत हिंसा को बुराई मानता है लेकिन सांप, बिच्छु चमगादड़ खाने वाले चीनी अहिंसा पर यकीन नहीं करते| हमारी आज़ादी की लड़ाई में भी अहिंसा एक नारा था| मोदी सरकान ने भी चीन के इरादे समझने में कुछ चूक की है लेकिन फिलहाल वो ठीक ठीक जवाब दे रही है|चीन के पास फिलवक्त ऐसे मोर्चे हैं जिनका उपयोग वो भारत के खिलाफ कर सकता है| हलाकि सरकार ने इस दिशा में काम किये हैं|रक्षा ताकत बढाने के लिए भी प्रयास हुए हैं | लेकिन सतर्कता बधाने के साथ चीन के दूरगामी इरादों को डीकोड करने की ज़रूरत है|