मंत्री और अफसरों के नहीं मिले सुर, 11 साल बाद भी नहीं हो सकी वायलेंस की खरीदी: गणेश पाण्डेय 


स्टोरी हाइलाइट्स

मंत्री और अफसरों के नहीं मिले सुर, 11 साल बाद भी नहीं हो सकी वायलेंस की खरीदी: गणेश पाण्डेय  बमुश्किल से 11 साल बाद केंद्र सरकार ने नेशनल पार्क और......

मंत्री और अफसरों के नहीं मिले सुर, 11 साल बाद भी नहीं हो सकी वायलेंस की खरीदी गणेश पाण्डेय  भोपाल: बमुश्किल से 11 साल बाद केंद्र सरकार ने नेशनल पार्क और सेंचुरियों के लिए 1500 से खरीदने की अनुमति दे दी है. इसके लिए वन विभाग ने ₹60 लाख फ्रीक्वेंसी लाइसेंस के रूप में देना पड़े. चार बार टेंडर हुए और निरस्त कर दिया गया. इसकी मुख्य वजह मंत्री और अफसरों के बीच सुर में सुर नहीं मिल पाना रहा है. अब फिर से वन विभाग ने केंद्र सरकार से फ्रीक्वेंसी लाइसेंस की मियाद बढ़ाने के लिए आग्रह किया है. वायरलेस खरीदी के लिए कान्हा नेशनल पार्क के डायरेक्टर को नोडल अफसर बनाया गया था. वालेस खरीदी के लिए एक कमेटी बनाई गई थी, जिसमें तीन टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर के साथ एक आईपीएस अधिकारी को भी सम्मिलित किया गया था. कमेटी ने टेंडर के जरिए पुलिस मुख्यालय की तरह मेट्रोला कंपनी का वायरलेस सेट खरीदने की सहमति दे दी थी किंतु इससे मंत्री विजय शाह सहमत नहीं थे. टेंडर में दो कंपनियों मेट्रोला और कैनबुड ने निविदा भरी थी. मंत्री के दबाव में अफसरों ने दो बिड की आड़ लेकर निविदा निरस्त कर दी गई. ऐसा एक बार नहीं तीन बार हुआ. बार-बार टेंडर निरस्त करने के चलते फ्रीक्वेंसी लाइसेंस अवधि निकल गई. अब वन विभाग को एक बार फिर से नए सिरे से एक्सरसाइज करना पड़ रही है. सूत्रों ने बताया कि वन मंत्री शाह भोपाल मुख्यालय से निविदा आमंत्रित करना चाहते हैं और कमेटी में आईपीएस अधिकारी उपस्थिति भी नहीं चाहते है. विभाग के आला अफसर वायरलेस खरीदी मैं किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते, इसीलिए पुलिस मुख्यालय की तर्ज पर ही वायरलेस खरीदी की प्रक्रिया चाहते है. वायरलेस सेट नहीं होने के कारण 11 वर्षों से फॉरेस्ट गार्ड शिकार, अवैध उत्खनन और कटाई की सूचना समय पर विभाग को नहीं दे पा रहे थे. पहले चरण में अब टाइगर रिजर्व और अभयारण्यों के लिए 1500 वायरलेस सेट खरीदे जाने हैं. फीस विवाद में नेटवर्क कर दिया था ठप दूरसंचार मंत्रालय ने 1991 में वन विभाग को वायरलेस फ्रिक्वेंसी लाइसेंस दिया था। इसके बाद नेटवर्क फीस को लेकर दोनों में विवाद हो गया, जिससे लाइसेंस रद्द कर 2009 में नेटवर्क देना बंद कर दिया गया. मंत्रालय फ्रिक्वेंसी का बकाया पैसा लगातार मांगता रहा, लेकिन विभाग ने इसे जमा नहीं कराया. अब मंत्रालय ने 16 साल की फीस, तमाम पेनाल्टी और चक्रवृद्धि जोड़कर 70 करोड़ की रिकवरी निकाली है. वन विभाग ने मंत्रालय से आग्रह किया है कि पेनाल्टी और ब्याज की राशि न वसूले तो पुराना बकाया तत्काल भुगतान कर दिया जाएगा. वन विभाग और दूरसंचार मंत्रालय के बीच 4 करोड़ 48 लाख रुपए के भुगतान करने पर सुलह हुई. फेल हुआ था पीडीए मोबाइल का प्रयोग वायरलेस की कमी दूर करने के लिए वन विभाग ने सुरक्षाकर्मियों को पीडीए मोबाइल फोन दिए थे, लेकिन जंगलों में इनका नेटवर्क नहीं मिल पा रहा था. इसके साथ ही पीडीए मोबाइल में वन-टू-वन कम्यूनिकेशन होता है, जबकि वायरलेस में संदेश एक बार में पूरे अमले के पास पहुंच जाता है. इसके चलते वन विभाग को फिर से वारलेस नेटवर्क पर आना पड़ रहा है. वन विभाग करता रहा फ्रिक्वेंसी का उपयोग फीस जमा नहीं करने पर दूरसंचार मंत्रालय ने फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी, लेकिन विभाग सामान्य वनमंडलों में चोरी-छिपे इसका उपयोग करता रहा. इसी दौरान विभाग के काफी सेट खराब हो गए. विभाग के पास 100 से भी कम सेट वन विभाग ने फ्रिक्वेंसी मिलने के बाद 1991 में 450 वायरलेस सेट खरीदे थे. इनमें से 100 से भी कम सेट बचे हैं. विभाग ने वर्ष 2014 में कोलकाता की एक कंपनी से 2500 सेट खरीदने का अनुबंध किया था. उस कंपनी को करीब दो करोड़ रुपए एडवांस भी दे दिया थे, लेकिन लाइसेंस नहीं होने कंपनी ने सप्लाई नहीं की थी. इनका कहना हां, टेंडर होने के बाद भी वायरलेस की खरीदी नहीं हो पाई है. फ्रिकवेंसी लाइसेंस की अवधि भी समाप्त हो गई है. हमने लाइसेंस अवधि बढ़ाने का आग्रह किया है. अभी अनुमति नहीं मिल पाई है. आलोक कुमार, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी)