One Nation One Election: देश की राजधानी दिल्ली से एक बड़ी ख़बर सामने आ रही है। मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी दे दी है। आपको बता दें कि मोदी कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। खबरों की मानें तो सरकार शीतकालीन सत्र में इस संबंध में बिल भी ला सकती है।
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली एक समिति ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की पहल पर 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया। इनमें से 47 पार्टियों ने जवाब दिया, जिनमें से 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया।
वहीं, 15 पार्टियों ने अपना विरोध जताया। इसके अलावा 15 अन्य राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की। यह पहल देश भर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की है, जिसे कुछ दल प्रशासनिक सुविधा और लागत में कटौती के लिए उपयुक्त मानते हैं, जबकि अन्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संघीय ढांचे पर इसके प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
चुनावों में अक्सर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। एक साथ चुनाव होने से सरकार और राजनीतिक दलों दोनों का खर्च कम होगा। अलग-अलग समय पर चुनाव कराने से राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक कठिनाइयाँ पैदा होती हैं। एक चुनाव से यह समस्या खत्म हो जायेगी।
जब बार-बार चुनाव होते हैं तो सरकार का ध्यान विकास कार्यों से हटकर चुनाव प्रचार और तैयारियों पर केंद्रित हो जाता है। एक साथ चुनाव होने से सरकार विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेगी।
आचार संहिता का बार-बार प्रभाव: चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने से विकास योजनाओं और सरकारी निर्णयों पर अस्थायी रोक लग जाती है। एक साथ चुनाव होने से आचार संहिता का असर सीमित रहेगा।
समय-समय पर चुनावों में काले धन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। एक साथ चुनाव कराने से कालेधन पर प्रभावी अंकुश लगेगा। यह सुझाव चुनावी प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाने और प्रशासनिक स्थिरता लाने के लिए दिया गया है।