श्री कृष्ण नमः.. चैतन्य महाप्रभु


स्टोरी हाइलाइट्स

श्री चैतन्य महाप्रभु ने भारत के देदीप्यमान आध्यात्मिक इतिहास में एक स्थायी और गौरवपूर्ण अध्याय जोड़ दिया है। उन्होंने गहन अध्यात्मवाद का अभेद्य रहस्यवाद के दुर्ग से मुक्त करके जीवनके जीते-जागते आदर्शके रूपमें लाकर खड़ा कर दिया है।

श्री कृष्ण नमः.. चैतन्य महाप्रभु

Chaitanya Mahaprabhu-Newspuran-01

लेखक श्रीमद्भक्ति विलास तीर्थ

१४८६ ई० के मार्च (फाल्गुन) के महीने में पश्चिमी | वि बंगालके नदिया जिले में श्रीमायापुरमें श्री चैतन्य महाप्रभु इस मृत्युलोकमें प्रकट हुए। अपने भक्तोंके प्रार्थना और निवेदन | ' करनेपर पूर्ण ब्रह्मने नररूपमें अवतार लिया। भारतके लिये स वह एक दिव्य दिवस था। वे इस मृत्युलोक में केवल ४८ वर्ष वि 1. रहे, जिसमें उन्होंने २४ वर्ष गृहस्थ आश्रम में बिताये और शेष स २४ वर्ष एक भिक्षुक संन्यासीके रूपमें। वे धर्मगुरु थे और ि परमार्थ-जीवनके जीते-जागते उदाहरण तथा तथा विश्वके श्रेष्ठ ि आचार्योंमेंसे एक अभूतपूर्व आचार्य थे।

श्री चैतन्य महाप्रभु ने भारत के देदीप्यमान आध्यात्मिक इतिहास में एक स्थायी और गौरवपूर्ण अध्याय जोड़ दिया है। उन्होंने गहन अध्यात्मवाद का अभेद्य रहस्यवाद के दुर्ग से मुक्त करके जीवनके जीते-जागते आदर्शके रूपमें लाकर खड़ा कर दिया है। जो इतने दिनोंतक नि:सार तर्क और कल्पना तथा दुर्बोध और संदिग्ध उलझनोंसे पूर्ण दर्शनशास्त्र का अभेद्य रहस्य बना हुआ था, वह अब उनके उपदेश और आनुगत्यसे हस्तामलकवत् सुस्पष्ट हो गया।

इस संतप्त जगत्के लिये वे एक नया संदेश लेकर आये। एक पथके निरूपक थे। वह 'शब्द'-ध्वनि और भगवन्नामका वे पथ और संदेश था। उन्होंने यह प्रकट कर दिया कि नामके द्वारा मनुष्य अपनी आध्यात्मिक और दैवी प्रकृतिको विकसित करके सारी निराशा और विषय-वासना से ऊपर उठ सकता है। जो कुछ इतने दिनोंतक कल्पनाके रूपमें था, महाप्रभु के हाथमें एक विज्ञान बन गया। भगवन्नाम स्वयं उद्धार करनेवाला है। उन्होंने ही यह बतलाया और दिखला दिया कि नाम और स्वयं भगवान में कोई अन्तर नहीं है। नाम भगवन्नामके अर्थका अभिधायक है। भगवान और भगवद्भक्त एक ही प्रेमसूत्रमें आबद्ध हैं। उन्होंने शब्द और अर्थ, ज्ञाता और ज्ञेयकी अभिन्नताको दिखलाया। शब्द नाद (Logos) है। भगवान ने नाम और रूपमें जगत्की सृष्टि की है। अतएव भगवान के नाम और स्तवनके

गानकी बड़ी महिमा है। श्री चैतन्य महाप्रभु का कीर्तन अर्थात् भगवन्नामके गानका प्रचार किया। जब पूर्ण विनय, भक्ति और श्रद्धाके साथ भगवन्नामका उच्चारण किया जाता है तो भगवान् स्वयं भक्तके साथ तादात्म्य भाब में आ जाते हैं।

प्रभुके नाम-कीर्तनके साथ-साथ हृदयमें प्रभुके सांनिध्यकी लालसाका होना आवश्यक है। भावावेश उस भजन परायण कीर्तन का एक अङ्ग है, जो श्रीचैतन्य महाप्रभुकी एक बहुत बड़ी देन है और जो आज वैष्णवों की भगवद्भक्ति का एक रूप तथा वैष्णव की आत्मानुभूति और साधनाके पथकी एक महती परम्परा बन गया है।
भगवान् श्रीकृष्ण के नाम (१) चिंतामणि, कल्पवृक्ष (२) स्वयं श्रीकृष्ण है। (३) चित्स्वरूप है। (४) दिव्य रसमूर्ति है। (५) पूर्णतम है। (६) 'पावनं पावनानाम्' है। (७) सनातन है। (८) निर्विशेष सत्य है। (९) साक्षात् श्रीकृष्ण के साथ एक और तद्रूप है। श्री रूप गोस्वामी ने अपने 'श्रीविदग्धमाधव' नाटकमें लिखा है-'विजयतु भगवान् श्रीकृष्ण' में कितना अमृतानन्द है, कोई नहीं जानता। यह 'कृष्ण' और 'ण' दो अक्षरोंसे बना है। 'कृष्ण' शब्द के मुख से उच्चारण होते ही कोटि-कोटि रसनामें इन नाम की माधुरीके आस्वादनकी अभिलाषा होती है, श्रवणरन्ध्रमें 'कृष्ण' शब्द का प्रवेश करते ही असंख्य श्रोत्रमें 'कृष्ण' नाम सुननेकी लालसा दीप्त हो उठी है, नाम का स्मरण करते ही मन और चित्त की सारी दूसरी क्रिया का अवसान हो जाता है।' भगवान आराधनाकी सारी पद्धतियोंमें, यत्नपूर्वक भगवान के नाम और यशका संकीर्तन भगवान् श्रीकृष्ण (परतत्त्व, परब्रह्म) को प्रसन्न करनेकी सबसे सहज और सरल रीति है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। भक्तोंके सङ्गमें रहकर इस महामंत्र कीर्तन ही मायाके बन्धन से मुक्त होनेका एकमात्र उपाय है। इस कलयुग में इसके लिये दूसरा कोई उपाय नहीं है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने श्रीकृष्ण नामकी अलौकिक ध्वनि को प्रत्यक्ष किया था, जिसका उच्चारण लौकिक जिह्वासे नहीं हो सकता और न मन ही जिसका मन कर सकता है। आध्यात्मिक चेतना जाग्रत होने पर यह नाम स्वयमेव जिह्वापर नृत्य करने नात