दुनिया में योग की अलग पहचान बताने वाले ये योग गुरु 


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत में कई ऐसे योग गुरु हैं जिन्होंने दुनिया में योग की अलग पहचान जगाई है |  दुनिया के बड़े नाम जिन्होंने देश-दुनिया में योग को पॉपुलर बनाया और लाखों-करोड़ों लोगों को स्वस्थ तन-मन की राह दिखाई जानिए

भारत में कई ऐसे योग गुरु हैं जिन्होंने दुनिया में योग की अलग पहचान जगाई है |  दुनिया के बड़े नाम जिन्होंने देश-दुनिया में योग को पॉपुलर बनाया और लाखों-करोड़ों लोगों को स्वस्थ तन-मन की राह दिखाई जानिए ऐसे योग गुरुओं के बारे में जिन्होंने भारतीय योग परंपरा को समृद्ध बनाया| 1. महर्षि पतंजलि (Maharishi Patanjali) महर्षि पतंजलि को योगा के फादर कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने योग से  मन की चंचलता को स्थिर करने की प्राचीनतम तकनीक कहा है | उन्होंने योग के 195 सूत्रों को प्रतिपादित किया, जो योग दर्शन के स्तंभ माने गए। इन सूत्रों के पाठन को भाष्य कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महिमा को बताया, जो स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना गया। योगसूत्र में उन्होंने पूर्ण कल्याण के अलावा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों के अष्टांग योग का वर्णन किया है |इनके नाम इस प्रकार हैं -यम,नियम,आसन,प्राणायाम,ध्यान,धारणा,प्रत्याहार,समाधि | इनमें से आज के समय में केवल आसन, प्राणायाम औए ध्यान पर ही ज्यादा धयान दिया जा रहा है । महर्षि पतंजलि के प्रयासों के कारण हीं योगशास्त्र किसी एक धर्म का न होकर सभी धर्म और जाति के शास्त्र के रूप में प्रचलित है। 2. श्री अरविंदो (Sri Aurobindo) 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता में जन्मे श्री अरविंदो के जीवन का लक्ष्य धरती पर दिव्य प्रेम को स्थापित करना है। स्वामी विवेकानंद के विचारों को जानकर, उनसे अभिभूत हुए। श्री अरविंदो की साधना की दिशा मनुष्य चेतना पर केन्द्रित थी, मानव चेतना को शारीरिक, मानसिक, स्नायविक से होते हुए चैत्य की श्रेणी तक ले जाना चाहते थे। उनकी आध्यात्मिक सहयोगी श्री मां थी | श्री माँ की तपस्या से पांडिचेरी में श्री अरविंद आश्रम स्थापित हुआ  है। इसमें 2000 व्यक्ति रोज़ विगत 80 वर्ष से साधना करते आ रहे हैं। उन्होंने कई किताबे भी लिखीं। श्री अरविंदो पूर्ण योग के प्रणेता थे, जिसका अर्थ है जो भी काम किया जाए उसमें पूर्ण कौशल तथा पारंगतता प्राप्त करना ही पूर्ण योग है। इससे श्रीकृष्ण जैसे योगी के ‘योग: कर्म सु कोशलम’ वाले आदर्श की याद भी आती है। 5 दिसंबर 1950 को श्री अरबिंदो इस संसार को छोड़ कर चले गए। 3. लाहिड़ी महाशय (Lahiri Maharaj) लाहिड़ी महाशय  का पूरा नाम श्यामाचरण लाहिड़ी था | उनका जन्म 30 सितंबर 1828 को पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर के घुरणी गांव में हुआ था। काशी में रहकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। बहुत कम उम्र 23 साल में ही सेना की इंजीनियरिंग शाखा के पब्लिक वर्क्स विभाग में गाजीपुर में क्लर्क की नौकरी के जाने लगे  | कुछ साल नौकरी करने के बाद उनका तबादला  रानीखेत (अल्मोड़ा) में हो गया | प्राकृतिक छटा से भरपूर क्षेत्र उनके लिए वरदान साबित हुआ | उसी क्षेत्र के पास श्यामचरण ने  एक गुफा में जाकर दीक्षा ली और दीक्षा देने वाला कोई और नहीं उनके कई जन्मों के गुरु महावतार बाबाजी थे | कुछ समय बाद ही काशी  के कुंडेश्वर में मकान खरीद लिया |  यह स्थान योगियों की तीर्थ स्थली बन गई |  योगानंद को पश्चिम में योग के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने ही चुना था | लाहिरी महाशय को एक सिद्ध योगी कहा जाता है। बताते हैं कि योग करते-करते वह अदृश्य हो जाया करते थे।