जिसे ख़बर न अपने घर की बात करे वो दुनियाभर की। - दिनेश मालवीय"अश्क"


स्टोरी हाइलाइट्स

जिसे ख़बर न अपने घर कीबात करे वो दुनियाभर की।यहाँ किसी का सगा न कोईबात न पूछो महानगर की।

  जिसे ख़बर न अपने घर की बात करे वो दुनियाभर की। यहाँ किसी का सगा न कोई बात न पूछो महानगर की। जिसको अपनों ने ठुकराया ठोकर खाता है दर दर की। तेरी नादानी से नादां घर की बात हुयी घर घर की। पोखर मे भी जो न उतरे लेने थाह चले सागर की। जिन्दा मात-पिता को ठुकरा पूजा करता वो पाथर की। जब तक वो कुर्सी पर बैठा उसने मनमानी जी भर की। असली मुद्दे पर अब आ जा बहुत हुयी अब इधर-उधर की। बारिश मे कैसे वो नाचे टपक रही छत जिसके घर की। सूर्य क्षितिज मे धरती से मिल थकन मिटाता है दिनभर की। "अश्क" धूप मे जलना चाहें छाँव नहीं चाहें तरुवर की।