श्री ॐकार मन्त्र : जानें क्यों है महामंत्र, ॐ मंत्र साधना रहस्य 


स्टोरी हाइलाइट्स

Om Mantra: ॐ को अनाहत नाद कहा जाता है, जो हर व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में गूंजता है। सामान्य नियम यह है कि ध्वनि किसी के साथ घर्षण से.....

श्री ॐकार मन्त्र : जानें क्यों है महामंत्र, ॐ मंत्र साधना रहस्य 
ॐ (Om Mantra) को अनाहत नाद कहा जाता है, जो हर व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में गूंजता है। सामान्य नियम यह है कि ध्वनि किसी के साथ घर्षण से या किसी के साथ टकराने से उत्पन्न होती है, लेकिन अनाहत उत्पन्न नहीं किया जा सकता है।


'ऊँ'Om का यह एकाक्षरी मन्त्र महान हैं। यह जितना छोटा रूप प्रतीत होता है, उतना ही अधिक शक्तिशाली  हैं। ॐ परमात्मा(ईश्वर) का सर्वश्रेष्ठ, सर्वाधिक क्षमता सम्पन्न एक शक्तिशाली नाम हैं, इस मंत्र को 'प्रणव' भी कहते हैं यह एक ऐसा बीज मन्त्र हैं, जो अखिल ब्रह्माण्ड को स्वयं में समाहित किये हैं।

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'अवे' धातु से निर्मित यह शब्द (ॐ) अनेकार्थी वाचक हैं इसके अर्थगत प्रभाव इस प्रकार कहे गये है- रक्षण, गति, व्याति, प्रीति, तृप्ति, अवगत, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थ, याचन, इच्छा, दीप्ति, (अन्त में स्वदर्शन), आलिंगन, हिंसा, दान, भोग, और वृद्धि। इन उन्नीस विषयों को अपने में सम्मिलित रखने वाला यह एकमात्र मन्त्र हैं। स्पष्ट है कि इसका जप साधक को कितने ऊर्जा क्षमता और दिव्यता प्रदान करता होगा।

प्रत्येक मंत्र से पहले इसका पाठ किया जाता है। योग साधना में इसका बहुत महत्व है। व्यर्थ मानसिक कलह, तनाव और नकारात्मक विचार दूर होने पर मन की शक्ति बढ़ती है। मन की शक्ति बढ़ने से दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास बढ़ता है। 

अपनी व्यापकता के कारण 'ऊँ' मन्त्र समस्त मन्त्रों का शिरोमणि हैं। इसके अभाव में प्रत्येक मन्त्र क्षीण माना जाता हैं और किसी भी मन्त्र में इसे जोड़ देने से(उसका 'प्रणव' सहित पाठ करने से) उसकी प्रभाव क्षमता बढ़ जाती हैं। मन्त्र शास्त्र की उक्ति 'मन्त्राणां' प्रणव सेतु का आशय किया जा सकता है। छान्दोग्य उपनिषद् में लिखा हैं समस्त स्थावर जंगम प्राणियों और पदार्थों का रस (कारण) पृथ्वी हैं। पृथ्वी का रस जल है।

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जल का रस- औषधियाँ और औषधियों का रस(कारण) मानव-तन हैं मानव तन का रस वाणी, वाणी का सार ऋचा, ऋचा का सार सोम और सोम का सार उद्गीथ अर्थात् ओंकार है।'

वैदिक- वाग्मय में समस्त कर्मकाण्डों का प्रारम्भ और उनकी व्याख्या- व्यवस्था 'ॐ' से प्रभावित हैं ॐ ब्रह्मलीनता का बोधक, समाधि एवं मुक्ति की अवस्था में पहुँचाने में समर्थ और अनेक वैज्ञानिक चमत्कारों का जनक हैं।

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'ऊँ' की साधना, उपासना, चिन्तन, मनन और जप सब कुछ कल्याणकारी है। 'ॐ' का जप करने से देव-दर्शन, आध्यात्मिक चेतना और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती हैं। संसारी-जनों की लौकिक इच्छा-पूर्ति में भी यह मन्त्र परम सहायक होता हैं इसका साधना विधान बहुत ही सरल हैं केवल अडिग-आस्था, बस! अपने इष्ट देवता का चित्र कहीं पवित्र स्थान में लगाकर, उसकी धूप-दीप से पूजा करने के उपरान्त स्थिर मन से, पूर्ण– तन्मयता के साथ माला पर 'ऊँ' का जप करना चाहिए। 

दैनिक-चर्या के रूप में यदि के समय, इस मन्त्र का 11 या पूजा 21 माला नित्य फेर ली जाय, तो थोड़े ही दिनों बाद साधक को इसके प्रभाव का अनुभव हो जाता हैं।

इस शब्द की महिमा अव्यक्त है। Om नाभि, हृदय और आज्ञाचक्र को जगाता है। इसे प्रणव साधना भी कहा जा सकता है।

प्रत्येक मंत्र से पहले इसका पाठ किया जाता है। योग साधना में इसका बहुत महत्व है। व्यर्थ मानसिक कलह, तनाव और नकारात्मक विचार दूर होने पर मन की शक्ति बढ़ती है। मन की शक्ति बढ़ने से दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास बढ़ता है। 

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ओम का व्यापक प्रयोग वैश्विक शांति को ध्वनि देने की उनकी अद्भुत क्षमता को प्रमाणित करता है। Om जिसका दूरगामी प्रभाव होता है, वह अंतर्ज्ञान का विस्फोट मात्र है। जो निरंतर प्रयोग से संभव है। भारत के ऋषि इसे Om कहते हैं।

'ओम नमः शिवाय' भगवान शिव का पंचाक्षरी महामंत्र है। ओम-मंत्र को ओंकार मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। Om आदि मन्त्र है, बीज मन्त्र है। ऐसा कहा जाता है कि जब ब्रह्मांड का निर्माण हुआ था तब एक ध्वनि उत्पन्न हुई थी। यह आवाज ओंकार की थी। यह भी कहा जाता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति इसी ध्वनि से हुई थी। प्रणव का अर्थ ब्रह्मांड की रचना भी है।

ओम से ही पूरी सृष्टि बनी, ओम से ही यह सृष्टि जीवित है और जब महाप्रलय आएगी तो यह पूरी सृष्टि ओम में विलीन हो जाएगी।

"गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, मैं ओंकार हूं।"

Om- अनंत की ध्वनि है, Om-Om- सभी मंत्रों और वेदों का सार है। Om संपूर्ण ब्रह्मांड और संपूर्ण विश्व को समाहित करता है।

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मांडुक्य उपनिषद ओम और इसकी व्याख्या करता है। परब्रह्म परमात्मा का नाम वही ओम या ओंकार है। Om पूर्ण ब्रह्म अविनाशी परमात्मा है। जो वर्तमान, भूत और भविष्य से परे है वही ओम है।

सत्य का नाम वही ओंकार है। भारतीय आध्यात्मिक जगत का रहस्य ओंकार में निहित है। ओंकार को एक शब्द के रूप में पहचानना या उसका वर्णन करना एक गलती है, क्योंकि ओंकार एक शब्द नहीं है, क्योंकि हर शब्द का एक अर्थ होता है। ओंकार बोध की बात है। इसे ध्वनि कहना भी एक लाचारी है। 

कोई भी ध्वनि उत्पन्न करने के लिए दो वस्तुओं का आपस में टकराना पड़ता है, जबकि ओंकार की ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है। ओंकार अनाहद नाद है जो बिना किसी प्रकार की टक्कर के उत्पन्न होने वाली ध्वनि है।

ॐ ध्वनि हृदय को शुद्ध करती है, योग में बाधाओं को दूर करती है और कौशल प्रदान करती है। इस ओंकार की सिद्धि इतनी प्रबल है कि कोई भी वस्तु इससे दूर नहीं रहती। इसके जाप से मन एकाग्र हो जाता है। यह रास्ता दिखाता है, रक्षा करता है, लक्ष्य की ओर ले जाता है और जन्म और मृत्यु के चक्र से भी मुक्त करता है।

ओंकार सर्वशक्तिमान है। ओंकार में स्वर्ग-मृत्यु और रसातल अर्थात् ब्रह्मांड का रूप समाहित है।



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