सच्चा व्यक्ति वही व्यक्ति है जो सुख और दुख को समान भाव से ग्रहण करे। उन्हाेंने कहा मनुष्य को हर कर्म भगवान को समर्पित करना चाहिए। यदि मनुष्य इस धारणा से कर्म करेगा तो उसकी ममता धीरे-धीरे क्षीण होती जाएगी और उसका मन निर्मल और शुद्ध होने के साथ-साथ उसमें भक्तिरस भी उत्पन्न होगा।
सुख और दुख को एक भाव से कैसे स्वीकार किया जा सकता है? :By अतुल विनोद
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