भानपुरा: देश की प्राचीन परंपरा और आध्यात्मिक विरासत को थामे हुए भानपुरा ज्योर्तिमठ अवान्तर पीठ आज एक ऐसे विवाद के केंद्र में है, जिसने प्रशासन, पुलिस और रिकॉर्ड विभाग की कार्यशैली पर सीधे सवाल खड़े कर दिए हैं।
पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने खुद अदालत में उपस्थित होकर आरोप लगाया--
“पीठ की जमीन तक को फर्जी साधु बनाकर हड़प लिया गया, कागज़ चोरी हुए, मुझपर हमले हुए… और प्रशासन ने पाँच साल में एक भी सुविधा नहीं दी।”
जमीन पर सबसे बड़ा खेल—“नकली सुंदरानंद” बनाकर फर्जी रजिस्ट्री
शंकराचार्य ने बताया कि पीठ की कृषि भूमि, जो वर्षों से मटके संत सुंदरानंद के नाम दर्ज थी,
उसी नाम पर एक नकली व्यक्ति खड़ा कर दिया गया,
और उससे फर्जी रजिस्ट्री करवा कर नामांतरण भी करा लिया गया।
• फर्जी व्यक्ति पेश किया गया
• जाली, कूटरचित और अवैध कागज़ तैयार किए गए
• और इन्हीं पर भरोसा कर राजस्व विभाग ने नामांतरण स्वीकार कर लिया
यह पूरा खेल “भूमि कब्ज़ा–केंद्रित सुनियोजित साजिश” बताया गया है।
शंकराचार्य बोले -“2019 को पदस्थापन हुआ, पर सरकार ने आज तक मुझे शंकराचार्य मानकर कोई सुविधा नहीं दी”
ज्ञानानंद तीर्थ के अनुसार-
5 मई 2019 को उनका जन्मगुरु शंकराचार्य के रूप में वैधानिक पद-स्थापन हुआ था।
लेकिन न राज्य सरकार और न केंद्र सरकार ने आज तक
एक भी शंकराचार्य-स्तर की सुविधा, न सुरक्षा, न प्रोटोकॉल—किसी भी रूप में उपलब्ध कराया।
“पद मिल गया, पर सम्मान और अधिकार आज भी कागज़ों में लटके हैं।”
कई राज्यों में हमले—लेकिन FIR की एक भी सत्यापित कॉपी नहीं मिली
यह आरोप सबसे गंभीर है।
शंकराचार्य ने कहा
• उन पर कई राज्यों में हमले हुए
• लेकिन आज तक उनकी सत्यापित कॉपियाँ तक नहीं मिलीं
• मार्च 2020 में पुलिस में दर्ज शिकायत की प्रमाणित कॉपी भी प्रशासन ने “लापता” कर दी
यानी शिकायतें दर्ज हुईं पर कार्रवाई शून्य
पीठ परिसर में लगातार चोरियाँ—हस्ताक्षर तक चोरी किए गए
उन्होंने सामने रखा कि
• उनके हस्ताक्षर चोरी किए गए
• पीठ परिसर से महत्वपूर्ण दस्तावेज़ गायब हुए
• जमीन खरीद और उतिरमान से जुड़े मूल रिकॉर्ड तक चोरी हो गए
ये सभी रिपोर्ट दर्ज कराई गईं पर किसी भी दस्तावेज़ पर कार्रवाई का एक पंक्ति तक नहीं।
अदालत में माँग: जमीन की मूल स्थिति बहाल की जाए, फर्जी दस्तावेज़ शून्य घोषित हों
• प्रतिवादी किसी भी तरह का बिक्री, गिरवी, निर्माण या ऋण भूमि पर न करें
• फर्जी दस्तावेज़ों पर आधारित हर कार्रवाई को शून्य घोषित किया जाए
• जमीन की असली कानूनी स्थिति बहाल की जाए
• और पीठ की संपत्ति पर स्थायी निषेधाज्ञा जारी की जाए
क्या मामला सिर्फ़ ज़मीन का है?
एक वैध रूप से पदस्थापित शंकराचार्य…
जिन पर हमले हुए…
जिनके दस्तावेज़ चोरी हुए…
जिनकी शिकायतें दबाईं गईं…
और पाँच साल में जिन्हें “शंकराचार्य” लिखकर एक भी सुविधा तक नहीं मिली
यह पूरा मामला सिर्फ एक पीठ का विवाद नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता, रिकॉर्ड विभाग की संवेदनहीनता और पुलिस की खामोशी का सबसे खतरनाक उदाहरण है।
गणेश पाण्डेय