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84 महादेव आलेख श्रृंखला 5: श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव..सृष्टि के अनादि स्रोत, जहाँ से ब्रह्मांड का आरंभ हुआ

सार

अनंत ज्योति के प्रतीक- जहाँ आरंभ भी शिव हैं और अंत भी शिव..!!

janmat

विस्तार

जब सृष्टि का कोई आकार नहीं था, जब न दिशा थी, न काल, न वायु, न अग्नि, न जल, न पृथ्वी- तब भी जो विद्यमान थे, वे ही अनादिकल्पेश्वर महादेव हैं।

वे वह परम सत्य हैं, जो न उत्पन्न होते हैं, न लुप्त होते हैं; जो अजर-अमर, अनंत और अविनाशी हैं।उज्जैन के पवित्र महाकाल वन में स्थित यह दिव्य स्थल सृष्टि के आदि रहस्य का उद्घोष करता है- वह स्थल जहाँ से ब्रह्मांड की प्रथम तरंग उठी, और जहाँ अंततः समस्त सृष्टि पुनः विलीन हो जाती है।

अनादि ज्योति का रहस्य- जहाँ सब कुछ शिव है.शिवपुराण में भगवान रुद्र स्वयं माता पार्वती से कहते हैं- “हे देवी! जब कुछ भी नहीं था, तब भी यह लिंगस्वरूप मैं ही था।अग्नि, वायु, आकाश, दिशाएँ, देवता, असुर, गंधर्व, पिशाच- सबका आरंभ इसी लिंग से हुआ।”
यह वचन उस दिव्य सत्य का उद्घोष है कि अनादिकल्पेश्वर लिंग केवल एक पाषाण नहीं, बल्कि परम तत्व का साक्षात प्रतीक है- वह शक्ति जो कल्पों से भी पूर्व प्रकट हुई थी।

यह वही अदृश्य केंद्र है, जहाँ से सृष्टि की तरंगें प्रस्फुटित होती हैं और प्रलय के समय उसी में लय पाती हैं।देव, दानव, मनुष्य, पितर, ऋषि- समस्त चर-अचर जगत इसी आदि चेतना से उत्पन्न हुआ और उसी में स्थित है।

एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हुआ।तभी आकाशवाणी हुई- “महाकाल वन में एक दिव्य लिंग विराजमान है, जिसका नाम कल्पेश्वर है।जो उसके आदि और अंत का दर्शन कर लेगा, वही सर्वोच्च माना जाएगा।”दोनों देवता अपनी सम्पूर्ण शक्ति सहित उस दिव्य लिंग के रहस्य को जानने निकल पड़े।

ब्रह्मा ऊपर की ओर गए, विष्णु नीचे की ओर।अनगिनत कल्पों तक वे खोजते रहे- किंतु न आदि मिला, न अंत।तब उन्हें अनुभव हुआ कि शिव स्वयं अनंत हैं- वे न आरंभ हैं, न अंत; वे ही काल के पार कालेश्वर हैं।यही वह क्षण था जब ब्रह्मा-विष्णु के अहंकार का आवरण हट गया और सत्य का प्रकाश प्रकट हुआ।

एक अन्य कथा में कहा गया है कि जब ब्रह्मा अपनी सृजन शक्ति पर गर्वित हुए, तब दिव्य वाणी ने उन्हें भी महाकाल वन में कल्पेश्वर लिंग के दर्शन का आदेश दिया।किन्तु वे असफल रहे।यह घटना ब्रह्मा के लिए विनम्रता का उपदेश बन गई- कि सृजन भी शिव की इच्छा से ही संभव है, और शिव की महिमा से बड़ा कोई नहीं।

उज्जैन के चौरासी शिवालयों में श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव का स्थान अत्यंत विशिष्ट है।

महाकाल मंदिर के दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित यह प्राचीन मंदिर श्रद्धा, स्थापत्य और अध्यात्म- तीनों का अद्भुत संगम है।मंदिर का गर्भगृह लगभग सौ वर्ग फीट क्षेत्र में निर्मित है, जिसमें डेढ़ फीट ऊँचा लाल-भूरे रंग का प्राचीन शिवलिंग विराजमान है।

छः फीट लंबी जलाधारी पर पंचमुखी सर्प का आच्छादन शिवलिंग को अलौकिक आभा प्रदान करता है।पास ही छः फीट ऊँचा त्रिशूल है, जिस पर भगवान गणेश और माता पार्वती की सुंदर आकृतियाँ अंकित हैं।

गर्भगृह के सामने नंदी महाराज की प्राचीन प्रतिमा अपने प्रभु की ध्यानमग्न मुद्रा में स्थित है, मानो अनंत काल से "ओं नमः शिवाय" का जप करती हो।

शिवपुराण में कहा गया है- “जो श्रद्धा से अनादिकल्पेश्वर का दर्शन करता है, वह राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त करता है।”

यह शिवलिंग हमें स्मरण कराता है कि सृष्टि का हर आरंभ और हर अंत उसी परमात्मा से जुड़ा है।अहंकार चाहे ब्रह्मा जैसा क्यों न हो, अंततः उसे झुकना ही पड़ता है- क्योंकि शिव ही मूल सत्य हैं। अनादिकल्पेश्वर महादेव का दर्शन यह बोध कराता है कि विनम्रता, भक्ति और समर्पण ही मोक्ष का पथ हैं।

महाकाल दर्शन के साथ इस दिव्य शिवलिंग का स्पर्श साधक को शिवत्व की अनुभूति कराता है- वह अनुभव जो शब्दों से परे, केवल आत्मा में अनुभव किया जा सकता है।

अनादिकल्पेश्वर महादेव केवल एक पाषाण लिंग नहीं, बल्कि वह ब्रह्मांड का शाश्वत रहस्य हैं।

वे उस चेतना के प्रतीक हैं जो कालातीत है, जो नश्वरता से परे है, जो सृजन और संहार दोनों का मूल स्रोत है।जहाँ आरंभ भी शिव हैं और अंत भी शिववहीं अनादिकल्पेश्वर महादेव हैं।

उनकी उपासना में मनुष्य अपने भीतर के अहंकार को त्यागकर आत्मा के अनंत स्वरूप से एकाकार होता है और तभी उसे ज्ञात होता है- “न हि आरंभो न च अंतो, केवलं शिवः सर्वं अस्ति।”

(न कोई आरंभ है, न अंत- केवल शिव ही सर्वत्र हैं।)