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कार्यकाल के बढ़ते साल हमेशा होते बेमिसाल

सार

सीएम डॉ. मोहन यादव के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने पर जश्न तो बनता है. सोलह साल के विनर मुख्यमंत्री के स्थान पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया..!!

janmat

विस्तार

    उनके मंत्रिमंडल में कई सीनियर मिनिस्टर हैं. गवर्नेंस की लीगेसी में यह दो साल काफी महत्वपूर्ण हैं.  विकास की निरंतरता कायम है. बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक विवाद के व्यवस्था की गाड़ी चल रही है. नई चाल के साथ पुरानी योजनाएं चल रही हैं. विकास की गति समय के साथ बढ़ती ही है. 

    डॉ. मोहन यादव को मंत्री से प्रमोट कर मुख्यमंत्री बनाया गया है. इसके पहले डायरेक्ट मुख्यमंत्री बनाए गए थे. जिन्होंने सोलह साल का कार्यकाल पूरा किया. चुनावी विक्ट्री का क्रेडिट उनको गया, लेकिन सीएम का पद मोहन यादव को दिया गया. मोदी के मन में एमपी भले ही चुनावी नारा था, लेकिन बाद में यही सीएम की यूएसपी साबित हुई. पहले दिन से ही यह निष्कर्ष था, कि मोहन यादव को नेतृत्व ने चुना है. नेतृत्व के राजनीतिक विश्वास के मामले में वह सबसे आगे हैं. राजनीतिक रूप से शासन और संगठन में मुख्यमंत्री की धमक साफ दिखती है. 

    राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन मोहन यादव के मामले में इसलिए इसकी गुंजाइश अब तक नहीं बनी, क्योंकि यह स्पष्ट संदेश है कि उन पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का पूरा विश्वास है. संगठन में नए अध्यक्ष के चयन में भी उनकी अहम भूमिका रही. विश्वास होना और उसे लंबे समय तक बनाए रखना राजनीति की सबसे बड़ी चुनौती है. इसमें मोहन यादव अब तक सफल दिखाई पड़ रहे हैं.

    सरकार संचालन की अपनी रीति और शैली है. जब सोलह साल में यह नहीं बदली तो दो साल में तो बदलने का सवाल नहीं. विकास की स्वाभाविक गति जारी है. राज्य की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं है, कि बहुत सारे नए प्रोजेक्ट लिए जा सकें. फिर भी चुनावी जीत का आधार लाड़ली बहना योजना में दी जाने वाली हर माह की राशि को मोहन यादव ने बढ़ाया है. यही योजना बीजेपी की जीत का आधार मानी जाती है. अगले चुनाव में भी यह योजना निर्णायक साबित हो सकती है.

    मोहन यादव सख्त मिजाज के व्यक्ति माने जाते हैं. उनकी स्टाइल लल्लो-चप्पो वाली नहीं दिखती. साफ-साफ बात कहना कई बार विवाद भी पैदा करती है. भाषण शैली में उनकी भाषा और प्रेजेंटेशन जमीनी और साफगोई भरा होता है. उनका सख्त लहजा ब्यूरोक्रेसी को कई बार परेशान करता है.

    राजनीति साधने और सधने का खेल है. लेकिन मोहन यादव इस नजरिए से थोड़े अलग दिखते हैं. वह ब्यूरोक्रेसी को साधते नहीं बल्कि जरूरत के मुताबिक बदलने से परहेज नहीं करते.

    अब तक के कार्यकाल में सीएमओ के ही कई रूप सामने आ चुके हैं. जनसंपर्क जैसे शासन के आंख-कान विभाग में चौथे विभागाध्यक्ष वर्तमान में काम कर रहे हैं.  वह परंपराओं को तोड़ने से भी नहीं घबराते. इसी विभाग में परंपरा को तोड़ते हुए पहली बार डिप्टी कलेक्टर को अपर संचालक के रूप में पदस्थ किया गया है. इस प्रयोग की सफलता या असफलता वक्त के साथ साबित होगी.

    एमपी में गवर्नेंस का यह बीजेपी एरा चल रहा है. कमलनाथ का कार्यकाल छोड़ दिया जाए तो दो  दशकों से ज्यादा समय से भाजपा शासन कर रही है. यह एक फैशन बन गया है, कि मुख्यमंत्री के कार्यकाल के हिसाब से सरकारों की उपलब्धियां को आंका जाता है. इस पैमाने पर ही तुलना होती है. लोकतंत्र में तुलना के आधार पर बेहतर को ही चुना जाता है. 

    यह सब सरकार में स्वाभाविक रूप से होता रहता है. इसमें कोई नयापन नहीं है. शिवराज सिंह चौहान के हर साल के कार्यकाल पर ऐसी ही औपचारिकता की जाती थी. यहां तक भी संभव है, की सरकारी योजनाओं और उपलब्धियां के दस्तावेज के नाम भी एक जैसे हो इस बार दो साल के अवसर पर जो प्रकाशन निकाले गए हैं, उनके शीर्षक “नई रहे नए अवसर” ‘जिलों की विकास गाथा, विकास और सेवा के दो वर्ष सफलता की कहानी नाम दिए गए हैं. हर सीएम के समय ऐसे ही नाम दिए जाते हैं. योजनाएं भी वही, नाम भी वही, उपलब्धियां भी वही, केवल सीएम का फेस बदल जाता है. यह सरकारी व्यवस्था है. 

    यही सरकारी प्रक्रिया है, रेल मंत्री बदलने से रेलगाड़ी नहीं बदल जाती. उसका रूप रंग तो नहीं बदल जाएगा. उसके चलने का तरीका और स्पीड भी वही रहेगी.  ब्यूरोक्रेसी की रेलगाड़ी भी अपने ढर्रे और गति से ही चलती है. गवर्नेंस में सीएम का विजन कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र में ही स्थापित होता है.

    इस दृष्टि से भी मोहन यादव का एप्रोच सफल माना जाएगा. उन्होंने संघ के हिंदू एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम किया है. कृष्ण पाथेय और राम वन गमन पथ को उनकी प्राथमिकता यही बताती है. राज्य में गीता भवनों का निर्माण भी उनकी बड़ी सफलता है. 

    मोहन यादव ने अपने गृह क्षेत्र उज्जैन में विकास को नई दिशा दी है. सिंहस्थ का आयोजन भी उन्हीं के कार्यकाल में होना है. इसकी तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं. बिना किसी विवाद के सिंहस्थ महापर्व को संपन्न करना, मोहन यादव के व्यक्तित्व को चार चांद लगाएगा.

     मुख्यमंत्री का कार्यकाल पांच साल के लिए होता है. हर साल पर उपलब्धि का आंकलन सरकारी व्यवस्था है. इसे एक राजनीतिक इवेंट के रूप में मनाया जाता है. असली कार्यकाल तो पांच साल बाद चुनावी विनर ही अपनी उपलब्धि साबित कर पाता है.

    मोहन यादव का हंसमुख चेहरा और मनमोहक स्टाइल अनूठी है. व्यक्ति के रूप में उनका रहन-सहन आम लोगों को प्रभावित करता है. अभी हाल ही में सीएम ने अपने बेटे का विवाह सामूहिक विवाह समारोह में संपन्न कर केउदाहरण पेश किया है. यह वही नेता कर सकता है जो बड़े पद पर जाने के बाद भी अपने मूल में जीता है.

    मुख्यमंत्री बनने से ज्यादा उस पद को ईमानदारी से चलाना चुनौती पूर्ण होता है. राज्य के लोगों से कनेक्ट के मामलों में मोहन यादव काफी आगे हैं. उनका अब तक का कार्यकाल शीर्ष नेतृत्व के विश्वास पर खरा उतरते दिखता है.