सिंहस्थ और चौरासी महादेवों की अमृत यात्रा..!!
उज्जैन....वह भूमि जहाँ समय स्वयं शिव के चरणों में विश्राम करता है। यह वह नगरी है जहाँ हर श्वास में “हर हर महादेव” की प्रतिध्वनि सुनाई देती है, जहाँ हर धूलकण में भस्म की सुगंध बसती है। यह नगरी केवल भौगोलिक अस्तित्व नहीं, बल्कि आत्मा की एक अवस्था है—जहाँ भक्त, भस्म, और ब्रह्म एकाकार हो जाते हैं।कहा जाता है कि यहाँ काल भी महाकाल के सामने विनीत हो जाता है। यही वह उज्जैन है जो सदियों से साधना, सनातन और समर्पण का प्रतीक बनी हुई है।
सिंहस्थ – जब क्षिप्रा अमृत बन जाती है
जब सिंहस्थ महाकुंभ का शुभ काल आता है, तो उज्जैन मानो स्वर्ग का प्रतिरूप बन जाती है। क्षिप्रा के तट पर साधु-संतों की पंक्तियाँ, अखाड़ों की ध्वजाएँ, और दीपों की पंक्तियों से आलोकित घाट—यह दृश्य केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा का पुनर्जन्म है।
क्षिप्रा की लहरों में जब चाँदनी उतरती है, तो वह जल नहीं, अमृत प्रतीत होता है। चारों ओर नगाड़ों की गूँज, शंखों का नाद और हज़ारों ओठों से एकसाथ उठता मंत्र—
“ॐ नमः शिवाय!”
तब अनुभव होता है कि यह मानवता की नहीं, देवत्व की सभा है—जहाँ नश्वरता अमरत्व को छूती है।
अष्टचौरासी महादेव यात्रा – मोक्ष का द्वार
सिंहस्थ का सबसे विलक्षण आयाम है ,अष्टचौरासी महादेव यात्रा—वह अमृत यात्रा जिसमें उज्जैन के ८४ पवित्र शिवलिंगों के दर्शन किए जाते हैं।
पुराणों में उल्लेख है कि यह ८४ शिवलिंग ८४ लाख योनियों के प्रतीक हैं। प्रत्येक शिवलिंग जन्म-मरण के एक चक्र का प्रतिनिधि है।
जो साधक श्रद्धा, भक्ति और शुद्ध संकल्प के साथ इन सभी महादेवों का दर्शन करता है, उसे संसार के चक्रव्यूह से मुक्ति प्राप्त होती है। यह केवल दर्शन नहीं—यह एक तप है, एक आत्मानुशासन, एक चैतन्य यात्रा है।
महाकालेश्वर – जहाँ काल का भी अंत होता हैं
यात्रा आरंभ होती है महाकालेश्वर से—जहाँ दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के सम्मुख भक्त का अहंकार गल जाता है। प्रभातकाल में जब भस्म आरती के साथ ध्वनियाँ उठती हैं, जब राख से शिव का श्रृंगार होता है, तो ऐसा लगता है जैसे समय ने स्वयं अपने प्रवाह को रोक दिया हो।
महाकाल के गर्भगृह से निकलते ही भक्त के भीतर एक मौन उतर आता है—वह मौन जो शब्दों से नहीं, केवल अनुभूति से जाना जा सकता है।
पवित्र पदयात्रा – हर कदम एक प्रार्थना
महाकाल से निकलकर आरंभ होती है वह दिव्य पदयात्रा—जो शरीर की नहीं, आत्मा की यात्रा है।कभी क्षिप्रा के किनारे चलते हुए, जहाँ जल की हर लहर “ॐ” का उच्चारण करती लगती है; कभी संदीपनि आश्रम की ओर, जहाँ स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान प्राप्त किया; कभी गढ़कालिका शक्तिपीठ में, जहाँ देवी की ऊर्जा हृदय के भीतर अग्नि सी जाग उठती है।
प्रत्येक पड़ाव पर एक नया शिवस्वरूप सामने आता है—कभी करुणा का, कभी संहार का, तो कभी पूर्ण शांति का।
अद्भुत शिवस्वरूप – रहस्य और रक्षण
यात्रा के मध्य कहीं नागचन्द्रेश्वर का मंदिर है, जिसकी प्रतिमा वर्ष में केवल एक दिन—नागपंचमी को ही दर्शन देती है। एक ही पाषाण से निर्मित शिव-पार्वती और नाग की वह मूर्ति—मानो सृष्टि का संतुलन स्वयं बोल उठे। कहीं ऋणमुक्तेश्वर हैं, जिनके दर्शन से कर्म और सांसारिक दोनों ऋण मिट जाते हैं।
कहीं मंगलनाथ हैं—ज्योतिष के मंगल ग्रह के अधिपति—जहाँ से ब्रह्मांड की ऊर्जा पृथ्वी पर उतरती है। और अंत में कालभैरव—महाकाल के रक्षक—जिन्हें मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है। वह क्षण जब भैरव उस प्रसाद को अदृश्य रूप में ग्रहण करते हैं, भक्त की आँखों में आश्चर्य और आस्था दोनों उतर आते हैं। हर शिवलिंग एक कथा है—किसी ऋषि की तपस्या का परिणाम, किसी साधक की सिद्धि का प्रमाण, किसी शक्ति की अभिव्यक्ति।
थकान में भी आनंद – आत्मा का उत्सव
यह यात्रा श्रमसाध्य है। धूल, धूप, भीड़, पसीना—सब कुछ साथ चलता है। फिर भी हर भक्त मुस्कुराता है। क्योंकि वह जानता है—शरीर थकता है, आत्मा नहीं। हर शिवलिंग पर माथा टेकते ही मन का भार हल्का हो जाता है। यह थकान नहीं—यह तृप्ति है। यह दर्द नहीं—यह दान है। यह यात्रा चलकर नहीं, समर्पण से पूरी होती है। जब साधक अंततः पुनः महाकाल के चरणों में लौटता है, तो आँखें भर आती हैं। आँसुओं में वेदना नहीं—विरक्ति होती है।हृदय में आनंद नहीं—शांति होती है।मानो समय ने स्वयं उस भक्त को अपने नियमों से मुक्त कर दिया हो।
भीतर का शिव – सच्ची यात्रा आत्मा की
८४ महादेवों की यह परिक्रमा केवल बाह्य यात्रा नहीं है। यह आत्मदर्शन की यात्रा है—भीतर के शिव से मिलने की यात्रा।हर शिवलिंग हमारे भीतर के किसी भाव, किसी शक्ति, किसी कर्म का प्रतीक है। जब हम बाहर के शिव को प्रणाम करते हैं, तो हम भीतर के शिवत्व को जाग्रत करते हैं।
यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि मोक्ष बाहर नहीं, भीतर है। शिव कहीं और नहीं, स्वयं हम हैं।और जब यह अनुभूति हो जाती है, तब जीवन का हर क्षण, हर श्वास स्वयं एक साधना बन जाता है। सिंहस्थ की अमृत-यात्रा और चौरासी महादेवों का यह दर्शन केवल परंपरा नहीं—यह चेतना का उत्सव है।
यह हमें याद दिलाता है कि जहाँ श्रद्धा है, वहाँ शिव हैं। जहाँ भक्ति है, वहाँ मुक्ति है। और जहाँ उज्जैन है—वहाँ अनंत काल तक शिव का निवास है।
ॐ नमः शिवाय।
हर हर महादेव।
जय महाकाल।
जय उज्जयिनी।
जय सिंहस्थ।