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उत्तर प्रदेश: इस बार मुकाबला घमासान, पर रोचक -राकेश दुबे 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 27 Jul

सार

उत्तरप्रदेश में चुनावी युद्ध रोचक लेकिन घमासान होता दिखाई दे रहा है. अखिलेश यादव की रैलियों में जिस तरह भीड़ आई उससे भाजपा भी चेत गई हैं. प्रियंका गांधी का नारा ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ से ज्यादा महिलाओं को 50 प्रतिशत टिकट देने की घोषणा तक पहुँच गया है,फिर भी कांग्रेस कैसे लड़ाई लड़ेगी, संदेह है..?

janmat

विस्तार

उत्तरप्रदेश में चुनावी युद्ध रोचक लेकिन घमासान होता दिखाई दे रहा है | कांग्रेस ने 50 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का पैंतरा चल दिया है, तो भाजपा और सपा राम मन्दिर को केंद्र में रखकर अपने दांव चलने को उतारू हैं | मायावती अब बहुजनों के साथ ब्राह्मण वोटों को लुभाने की पुरजोर कोशिश में हैं | उत्तरप्रदेश में ये चुनाव घमासान और रोचक होंगे | अखिलेश जीते तो राम मंदिर पर बुलडोजर चलवा दे’|’ भाजपा नेता उत्तर प्रदेश के हिंदुओं को इसी बात से चेताते फिर रहे हैं| अखिलेश मंदिरों में पूजा-अर्चना कर रहे हैं, ‘ब्राह्मण भगवान’ परशुराम की मूर्तियां लगवा रहे हैं और कहते हैं कि राम मंदिर बन गया, तो दर्शन करने अवश्य जाऊंगा| इस बार चुनाव कई दृष्टियों से घमासान है| 

अभी तो अखिलेश यादव की रैलियों में जिस तरह भीड़ आई उससे भाजपा भी चेत गई हैं| मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में दिखता है| मायावती के अब तक प्रचार में नहीं निकली हैं इससे बसपा की तस्वीर के रंग साफ नहीं है| प्रियंका गांधी का नारा ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ से ज्यादा महिलाओं को ४० प्रतिशत टिकट देने की घोषणा तक पहुँच गया है |फिर भी कांग्रेस कैसे लड़ाई लड़ेगी ,संदेह है|नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित भाजपा के बड़े नेता चुनाव की घोषणा होने और सभाओं-रैलियों पर रोक लगने से पहले ही उत्तर प्रदेश के तूफानी दौरे कर चुके हैं| उत्तर प्रदेश में अरबों-खरबों रुपये की विकास योजनाओं का सपना भी भाजपा के खाते में है | विकास योजनाओं के जरिये ‘प्रश्न प्रदेश’ को ‘उत्तर प्रदेश’ बनाने के प्रयास की बात भाजपा का मुख्य फोकस है| भाजपा की असली चुनावी तुरुप धार्मिक ध्रुवीकरण और मंदिर की राजनीति ही है| योगीजी ने खुलेआम कहा है कि ‘मुकाबला अस्सी बनाम बीस है|’ इशारा साफ बीस प्रतिशत [?] की ओर ही है मुकाबले में आक्रामक हिंदू नेता की छवि है|अयोध्या में राम मंदिर और काशी में विश्वनाथ मंदिर कॉरीडोर का उद्घाटन और इनके सजीव प्रसारण के साथ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सामूहिक दौरा भाजपा की रणनीति के अंग हैं |

भाजपा नेता बार-बार याद दिला रहे हैं कि उनकी सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद-३७० को समाप्त किया, पाकिस्तानी आतंकवाद को करारा जवाब दिया| ये नेता समाजवादी पार्टी को मुस्लिम परस्त और आतंकियों के मददगार के रूप में पेश करते हैं| कांग्रेस और बसपा पर उनके हमले अब कम हो गये हैं| समाजवादी पार्टी मुख्य निशाने पर है जिससे हिंदुओं के मन में सपा की छवि हिंदू-विरोधी एवं मुस्लिम-हितैषी की बनी रहे| यही कारण है कि ‘अब्बाजान,’ ‘कब्रिस्तान’ और ‘जिन्ना’ का बार-बार उल्लेख किये बिना भाजपा नेताओं के भाषण पूरे नहीं हो रहे |

सपा कोशिश में हैं कि भाजपा की यह चाल किसी तरह सफल न हो|२०१७ के चुनाव में भाजपा के हिंदू ध्रुवीकरण के जवाब में मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश सपा ने की थी| तब उनकी सरकार ने कब्रिस्तानों की चारदीवारी के लिए अनुदान जारी किये थे, आतंकवादी गतिविधियों के अभियुक्त ‘निर्दोष’ मुसलमान युवकों को रिहा कराया और हाईस्कूल-इंटर पास करनेवाली मुस्लिम लड़कियों के लिए वजीफे घोषित किये| भाजपा ने इन फैसलों से उन्हें हिंदू विरोधी साबित करने में सफलता भी पायी ‘कब्रिस्तान बनाम श्मशान’ के ताने कस कर नरेंद्र मोदी ने तालियां भी लूटी थीं|

अब अखिलेश मंदिरों में जा रहे हैं, बाबरी ढांचा गिराये जाने का कोई उल्लेख नहीं कर रहे, बल्कि राम मंदिर बनने पर दर्शन करने की बात कर रहे हैं| ‘भगवान परशुराम’ की मूर्ति लगवा कर कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा उन्हें हिंदू-विरोधी साबित न कर सके यह भाजपा से नाराज ब्राह्मणों को खुश करने की उनकी कोशिश है| यादवों के अलावा मुसलमान वोट उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन इस बार वे मुसलमानों को खुश करने की कोई ऐसी कोशिश नहीं कर रहे कि वो नजर आये| इसी कारण उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से गठबंधन नहीं किया| इससे हिंदुओं में सपा के विरुद्ध ध्रुवीकरण तेज ही होता, मुस्लिम आबादी के बीच सपा का चुपचाप प्रचार अभियान चल रहा है. वे मानते हैं कि भाजपा को हराने के लिए मुसलमानों के पास समाजवादी पार्टी ही एकमात्र विकल्प है|

राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए इस बार अखिलेश ने न केवल अपने ‘बागी’ चाचा शिवपाल यादव की पार्टी को गले लगा लिया, बल्कि पिछड़ी जातियों के अन्य छोटे-छोटे दलों से भी चुनाव समझौता करने की पहल की| भाजपा ने २०१४ से अति पिछड़ी और अति दलित जातियों को जोड़ने की जो पहल की है, उसके मुकाबले के लिए अखिलेश ने भी गैर-यादव अन्य पिछड़ी जातियों की कम से कम पांच छोटी पार्टियों से चुनाव समझौता किया है|पश्चिम में जयंत चौधरी उनके सहयोगी हैं|. दलित जातियों में सेंध लगाने के लिए उन्होंने मायावती से खिन्न और बसपा से बहिष्कृत कई दलित नेताओं को सपा में शामिल किया है| कांग्रेस और बसपा के कई नेताओं के अलावा भाजपा के चंद असंतुष्ट नेता भी सपा में शामिल हो गये हैं| मीडिया में भाजपा का वृहद विज्ञापन अभियान सपा के विरुद्ध ही केंद्रित है|

भाजपा के पास मोदी की लोकप्रियता और योगी की कट्टर हिंदू नेता की छवि के अलावा अमित शाह समेत स्टार प्रचारकों की बड़ी फौज है| कोरोना काल में डिजिटल प्रचार में भी भाजपा बहुत आगे है| मुलायम सिंह यादव की अनुपस्थिति में अखिलेश अकेले दम पर इस विशाल सेना के खिलाफ डटे हैं| इस बार मुकाबला घमासान और रोचक है|